Guru Chandal Yoga: अनिष्ट की आशंका पैदा करता है गुरु चांडाल योग
नई दिल्ली। वैदिक ज्योतिष में कई तरह के शुभ-अशुभ योगों का जिक्र मिलता है। इनमें सबसे अधिक चर्चा होती है गुरु चांडाल योग की। जैसा कि नाम से ही जाहिर है इस योग के कुंडली में होने से व्यक्ति के जीवन में कई तरह की अनिष्टकारी घटनाएं होती रहती हैं। जिस व्यक्ति की कुंडली में यह योग होता है उसका जीवन कभी स्थिर नहीं रहता। गुरु ज्ञान एवं बुद्धि के दाता हैं, वहीं राहु छाया ग्रह है। यह ग्रह कुंडली के जिस भाव में बैठता है उसका बुरा फल मिलता है। जन्म कुंडली में जब गुरु के साथ राहु एक ही स्थान में बैठ जाए तो इस युति को गुरु चांडाल योग कहते हैं। जब दोनों ग्रह कुंडली के अलग-अलग भाव में बैठकर एक-दूसरे को पूर्ण दृष्टि से देखते हों तब भी गुरु चांडाल योग बनता है।
जीवन में हमेशा अस्थिरता बनी रहती है
चांडाल योग के कारण जातक के जीवन में हमेशा अस्थिरता बनी रहती है। उसका चरित्र भ्रष्ट हो जाता है और ऐसा व्यक्ति अनैतिक अथवा अवैध कार्यों में संलग्न हो जाता है। इस दोष के निर्माण में बृहस्पति को गुरु कहा गया है तथा राहु को चांडाल माना गया है। किसी कुंडली में राहु का गुरु के साथ संबंध जातक को बहुत अधिक भौतिकवादी बना देता है जिसके चलते वह जातक अपनी हर इच्छा को पूरा करने के लिए गलत कार्यों से धन अर्जित करने में भी परहेज नहीं करता। हालांकि ऐसे योग में यदि गुरु प्रबल हो तो जातक की किस्मत पलट भी सकती है। वह धनवान जरूर बनता है।
जन्म कुंडली के अलग-अलग भावों में इस ग्रह का अलग-अलग प्रभाव होता है। आइए जानते हैं किस भाव में गुरु चांडाल योग का क्या प्रभाव होता है:
गुरु चांडाल योग
- जन्म कुंडली के प्रथम भाव यानी लग्न में गुरु और राहु एक साथ बैठकर गुरु चांडाल योग बना रहे हों तो व्यक्ति संदिग्ध चरित्र वाला होता है। ऐसा व्यक्ति न केवल अनैतिक संबंधों में रुचि लेता है बल्कि हर सच्चे-झूठे कार्य करके धन अर्जित करता है। ऐसा व्यक्ति धर्म को ज्यादा महत्व नहीं देता।
- द्वितीय भाव धन स्थान में गुरु चांडाल योग बन रहा हो और गुरु बलवान हो तो व्यक्ति धनवान तो होता है, लेकिन यह पैसों का बुरी तरह अपव्यय करता है। यदि गुरु कमजोर हो तो जातक नशे का आदी होता है। ऐसे व्यक्ति की अपने परिवार से नहीं बनती है।
- तृतीय भाव में गुरु व राहु के होने से जातक साहसी व पराक्रमी होता है। गुरु के बलवान होने पर जातक लेखन कार्य में प्रसिद्ध पाता है और राहु के बलवान होने पर व्यक्ति गलत कार्यों में कुख्यात हो जाता है। वह जुएं जैसे कार्यों में धन गंवाता है।
- कुंडली के चौथे भाव में गुरु चांडाल योग बनने से व्यक्ति बुद्धिमान व समझदार होता है। लेकिन यदि गुरु कमजोर हो तो व्यक्ति पारिवारिक कार्यों में रुचि नहीं लेता। सुख शांति अभाव होता है और व्यक्ति मानसिक रूप से विचलित रहता है।
- यदि पंचम भाव में गुरु चांडाल योग बन रहा हो और बृहस्पति नीच का है तो संतान को कष्ट होता है। ऐसे व्यक्ति की संतानें पथभ्रष्ट होकर अनैतिक कार्यों में संलग्न हो जाती है। उनकी शिक्षा में रूकावटें आती हैं। राहु यदि गुरु से अधिक बलवान है तो व्यक्ति अस्थिर विचारों वाला होता है।
- षष्ठम भाव में यह योग बन रहा हो और गुरु प्रबल हो तो व्यक्ति उत्तम स्वास्थ्य का मालिक होता है। छठा भाव स्वास्थ्य का स्थान होता है। यदि राहु बलवान है तो व्यक्ति कई तरह की शारीरिक परेशानियों से जूझता रहता है। उसे कमर के नीचे के रोग परेशान करते हैं।
- सातवां भाव दांपत्य सुख का स्थान होता है। यदि इस भाव में गुरु चांडाल योग बना हुआ है और गुरु पर अन्य शत्रु ग्रहों की दृष्टि है तो व्यक्ति का वैवाहिक जीवन कष्टकर होता है। यदि इस योग में राहु बलवान है तो जीवनसाथी से तालमेल का अभाव रहता है।
- यदि अष्टम भाव में गुरु चांडाल योग बन रहा हो और गुरु कमजोर है तो जीवनभर दुर्घटनाओं की आशंका बनी रहती है। बार-बार चोट लगती है और इलाज में खर्च अधिक होता है। राहु अत्यंत प्रबल हो तो ऐसा व्यक्ति आत्महत्या तक का कदम उठा सकता है।
- यदि नवम भाव में गुरु चांडाल योग बन रहा हो और गुरु कमजोर हो तो व्यक्ति नास्तिक किस्म का होता है। अपने माता-पिता से इसका विवाद बना रहता है। ऐसे व्यक्ति को सामाजिक जीवन में अपमानजनक परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है।
- दशम भाव कर्म स्थान होता है। यदि इस भाव में गुरु चांडाल योग बन रहा हो तो व्यक्ति में नैतिक साहस की कमी होती है और इसे पद, प्रतिष्ठा पाने में बाधाएं आती हैं। बिजनेस और जॉब में बार-बार बदलाव होता है। गुरु बलवान होने पर परेशानियों से कुछ हद तक राहत मिल जाती है।
- एकादश भाव में गुरु चांडाल योग बने और राहु बलवान हो तो व्यक्ति गलत तरीके से धन अर्जित करता है। धन पाने के लिए ऐसा व्यक्ति कुछ भी करने के लिए तैयार रहता है। ऐसे व्यक्ति के मित्रों की संगत अच्छी नहीं रहती और खुद भी गलत कार्य करने लगता है।
- द्वादश भाव में बनने वाला गुरु चांडाल योग व्यक्ति को धोखेबाज बनाता है। ऐसा व्यक्ति धर्म की आड़ में लोगों को धोखा देता है। खर्च करने की प्रवृत्ति अधिक रहती है। गुरु के बलवान होने पर व्यक्ति अति कंजूस प्रकृति का होता है।
संतान को कष्ट
व्यक्ति नास्तिक किस्म का होता है
क्या उपाय करें
गुरु चांडाल योग में राहु के कारण गुरु अपना शुभ प्रभाव नहीं दिखा पाता है। यदि चांडाल योग गुरु या इसके मित्र ग्रह की राशि में बन रहा हो तो राहु को शांत करने के उपाय करना होते हैं ताकि राहु का बुरा प्रभाव कम हो और गुरु का शुभ प्रभाव बढ़े। इसके लिए राहु के वैदिक मंत्रों का जाप करवाया जाता है। इसके बाद कुल मंत्र संख्या का दशांश हवन करवाना होता है। यदि यह दोष गुरु की शत्रु राशि में बन रहा हो तो राहु और गुरु दोनों की शांति के उपाय किए जाते हैं। इसके लिए नियमित रूप से गाय को चारा खिलाना और हनुमान आराधना जैसे उपाय भी किए जाते हैं।
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