Dusshera 2017: क्या है विजयादशमी के पर्व का महत्व, जानिए शुभ मुहूर्त और तिथि
लखनऊ। हिन्दू पंचांग के अनुसार अश्विन शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को दशहरे का पर्व मनाया जाता है। श्रीरामचन्द्र जी ने अपनी पत्नी सीता को रावण के कैद से मुक्त कराने के लिए श्रीराम ने 10 दिनों तक रावण से युद्ध किया था। दसवें दिन श्रीराम ने रावण का वध करके लंका पर विजय प्राप्त की थी। विजय की खुशी के उपलक्ष्य में दशहरा का पर्व बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है।
दुर्गा पूजा की समाप्ति का प्रतीक
दशहरा नौं दिन चलने वाली दुर्गा पूजा की समाप्ति का प्रतीक भी है। देवी दुर्गा ने लोगों की रक्षा के लिए महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था। नवरात्र के दौरान मॉ दुर्गा और देवी चामुंडेश्वरी की पूजा की जाती है, जिन्होंने लोगों की रक्षा के लिए महिषासुर और असुरों की सेना को चामुंडा की पहाडि़यों में युद्ध कर पराजित किया था।
Dussehra 2017: देश में दुर्गा-पूजा की धूम, दशहरे के लिए भी तैयार भारत
- इस वर्ष दशहरे का पर्व 30 सितम्बर दिन शनिवार को मनाया जायेगा। दशमी तिथि 29 सितम्बर की रात्रि 11 बजकर 50 मि0 से प्रारम्भ हो जायेगी और रात्रि 1 बजकर 30 मिनट तक रहेगी।
- दशहरे का विजय मुहूर्त-
- 2 बजे से अपरान्ह 2 बजकर 55 मि0 तक।
- अपरान्ह पूजा का समय-1 बजकर 23 मि0 से 3 बजकर 47 मि0 तक।
दशहरे का महत्व
मान्यता है कि दशमी तिथि को श्रीराम ने रावण से युद्ध करके विजय हासिल की थी। संध्या बेला का समय विजय काल होता है। विजय दशमी के दिन नीलकण्ठ का दर्शन शुभ माना जाता है। विजय काल में शमी वृक्ष का विधिवत पूजन करने का विधान है एवं इसी काल में राजचिन्ह, हाथी, घोड़े, अस्त्र-शस्त्र आदि का पूजन किया जाता है, जिसे शास्त्रों में लोहाभिसारिक कर्म कहते है। इस दिन लोग शस्त्र पूजा या कोई नया कार्य प्रारम्भ करते है। जैस-अक्षर लेखन आरम्भ, नया व्यापार, बीज बोना, सगाई करना, वाहन आदि खरीदना।
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दशहरा साढ़े तीन मुहूर्तो में आता है
दशहरा साढ़े तीन मुहूर्तो में आता है, इस दिन बिना मुहूर्त देखें कोई भी नया कार्य प्रारम्भ किया जा सकता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन जो कार्य आरम्भ किया जाता है, उस कार्य में विजय हासिल होती है। प्राचीन काल में राजा लोग विजय की प्रार्थना के लिए रण यात्रा निकालते थे। महाराष्ट्र में इस अवसर पर सिलंगण के नाम से सामाजिक महोत्सव के रूप में भी इसको मनाया जाता है।