#chhathpuja: जानिए छठी मईया की कथा, जो सुनती है हर पुकार
नई दिल्ली। सूर्य उपासना का महापर्व छठ का आगाज आज नहाय खाय के साथ आरंभ हो गया, लोगों में इस पर्व को लेकर जबरदस्त उत्साह देखा जा रहा है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से सप्तमी की तिथि तक भगवान सूर्यदेव की अटल आस्था का पर्व छठ पूजा मनाया जाता है। इस पर्व को लेकर काफी कथाएं प्रचलित हैं। इस व्रत का उल्लेख महाभारत काल में भी मिलता है तो इसके संदर्भ में एक और कहानी प्रचलित है और वो है राजा प्रियवद की। बिहार के औरंगाबाद जिले के देव स्थित प्रसिद्ध सूर्य मंदिर के मुख्य पुजारी सच्चिदानंद पाठक के मुताबिक राजा प्रियवद को कोई संतान नहीं थी, तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनाई गई खीर दी।
इसके प्रभाव से उन्हें पुत्र तो हुआ परंतु वह मृत पैदा हुआ। प्रियवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त भगवान की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई और कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं। राजन तुम मेरा पूजन करो तथा और लोगों को भी प्रेरित करो। राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा शुक्ल पक्ष की षष्ठी को हुई थी और तब से छठ पूजा होने लगी।
सूर्य की शक्तियों का मुख्य स्रोत उनकी पत्नी ऊषा और प्रत्यूषा
मालूम हो कि छठ व्रत के दौरान व्रती सूर्य की आराधना करते हैं, सूर्य की शक्तियों का मुख्य स्रोत उनकी पत्नी ऊषा और प्रत्यूषा हैं। वास्तव में सूर्य के साथ-साथ दोनों शक्तियों की संयुक्त आराधना होती है। प्रात:काल में सूर्य की पहली किरण (ऊषा) और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण (प्रत्यूषा) को अघ्र्य देकर दोनों का नमन किया जाता है।
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