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ज्योतिष से जानिए भूमि की परीक्षा कैसे करें?

By पं. अनुज के शुक्ल
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भूमि के प्रकार ढलान, शुभाशुभ एंव पृष्ठादि पर विचार करने के बाद भूमि की परीक्षा करना आवश्यक है। जो भूमि ठोस नहीं होती है, वह भवन निर्माण के लिए उपयुक्त नहीं होती है। वस्तुतः गृह का निर्माण करने से पूर्व भूमि का परीक्षण कर लेना अपरिहार्य होता है।

भूमि परीक्षण से यह ज्ञात होता है कि भूमि झिरझिरी या ढीली तो नहीं है। झिरझिरी, ढीली व पोली भूमि गृह निर्माण के लिए हितकारी नहीं होती है। भवन की नींव के लिए ठोस आधार तैयार किया जाता है। जो ठोस आधार व ठोस भूमि पर ही अच्छी तरह तैयार किया जा सकता है।

भूमि परीक्षण के दो प्रकार है-

भूमि परीक्षण का पहला तरीका-

प्लाट की उत्तर दिशा में एक हाथ गहरा व चैड़ा गडढा खोंदे और गड्ढे में से सारी मिट्टी निकालकर कुछ देर बाद निकाली हुयी मिट्टी को पुनः गड्ढे में भरें।

1-यदि यह मिट्टी गड्ढा भरने पर बच जाती है अर्थात अधिक निकलती है तो समझ लें कि यह भूमि भवन निर्माण हूेतु श्रेष्ठ है।

2-शेंष नहीं बचती है अर्थात उतनी ही मिट्टी में गडढा भर जाता है तो समझना चाहिए कि यह भूमि मध्यम प्रकार की है।

3- यदि निकाली हुयी मिट्टी से गड्ढा पूरी तरह भर न पाये तो यह समझना चाहिए कि यह भूमि निकृष्ठ है अर्थात इस भूमि पर निर्माण करना उपयुक्त नहीं है।

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भूमि परीक्षण का दूसरा तरीका

भूमि परीक्षण का दूसरा तरीका

जिस भूमि का परीक्षण करना है उस भूमि में 1 हाथ लम्बा और चैड़ गड्ढा खोदकर उसकी मिट्टी निकाल दें तत्पश्चात उस गड्ढे में पूरा उपर तक पानी भर दीजिए। तदनन्तर उत्तर दिशा की ओर सौ कदम चलिए और यदि घड़ी हो तो 5 मिनट बाद लौटकर देखिए-

1- यदि गड्ढे में जितना पानी भरा था उतना ही रहे तो भूमि श्रेष्ठ है।

2- यदि गड्ढे में आधा जल शेष बचे तो भूमि मध्यम श्रेणी की मानी जायेगी।

3- यदि गड्ढे में जल पूर्णतः सूख गया है और नाममात्र को भी नहीं बचा है, तो वह भूमि निकृष्ठ अर्थात अशुभ है।

श्रेष्ठ या मध्यम श्रेणी की भूमि पर भवन निर्माण करना हितकारी माना जाता है। निकृष्ठ भूमि भवन निर्माण कदापि नहीं करना चाहिए। निकृष्ठ भूमि पर भवन निर्माण नहीं करवाना चाहिए। क्योंकि यह भूमि अशान्त होने के कारण सुख एंव सौभाग्य का क्षय करके दुःखों कहर बरपाती है।

भूमि के प्रकार व फल-

भूमि के प्रकार व फल-

भूमि की दिशाओं में लम्बाई, चैड़ाई व उॅचाई के आधार पर भी भूमि की गुणवत्ता और शुभता का विचार करके भवन-निर्माण हेतु भूूिम का चयन करना चाहिए। इस दृष्टिकोण से भूमि के चार प्रकार बताये गये है।

1-गजपृष्ठा भूमि।
2- कूर्मपृष्ठा भूमि।
3- दैत्यपृष्ठा भूमि।
4- नागपृष्ठा भूमि।

गजपृष्ठा भूमि

गजपृष्ठा भूमि

दक्षिणे पश्चिमे चैव नैर्ऋत्ये वायुकोणके।

एषूच्चं यत्र भूमो सा गजपृष्ठााभिधीयते।।

वासस्तु गजपृष्ठायां धनधान्यप्रदायकः।

आयुवृद्धिकरो नित्य कर्तुः संजायते ध्रुवम्।।

गजपृष्ठा भूमि

गजपृष्ठा भूमि

वह भूमि जो दक्षिण-पश्चिम (नैर्ऋत्य कोण) और उत्तर-पश्चिम (वायव्य कोण) में उन्नत (ऊॅची) हो उसे गजपृष्ठा भूमि कहते है। इस भूमि पर निवास करने से भवन के मुखिया का आर्थिक विकास होता है। घर के सभी सदस्यों का मानसिक व सामाजिक मान-सम्मान में वृद्धि होती है।

कूर्मपृष्ठा भूमि-

कूर्मपृष्ठा भूमि-

मध्य उच्चं भवेद्यत्र नीचं चैव चतुर्दिशम्।

कूर्मपृष्ठा च सा भूमि कथिता गजकोत्तभैः।।

वासश्च कूर्मपृष्ठायां नित्यमुत्साहवर्धकः।

धन धान्यदिकं तस्य जायते च यशः सुखम।।

कूर्मपृष्ठा भूमि

कूर्मपृष्ठा भूमि

जो भूमि मध्य में उन्नत (ऊॅची) और चारों ओर अवनत (नीची) हो तों उस भूमि को कूर्मपृष्ठा भूमि कहते है। इस भूमि पर निवास करने से उत्साह, धन-धान्य, यश और सुख व सौभाग्य की वृद्धि होती है।

दैत्यापृष्ठा भूमि-

दैत्यापृष्ठा भूमि-

पूर्वाग्नि-शुम्भकोणेषु स्ािलमुच्चं यदा भवेत।
पश्चिमे यत्र नीचं सा दैत्यपृष्ठाभिधीयते।।
वासस्तु दैत्यपृष्ठायां सदा कलहकारकः।
पशुपुत्र धनदीनां हानिर्भवति गेहिनः।।

जो भूमि पूर्व, आग्नेये, ईशान कोण में (ऊॅची) हो और पश्चिम दिशा में अवनत (नीची) हो तो उसे दैत्यपृष्ठा भूमि कहते है। दैत्यपृष्ठा भमि पर भवन निर्माण करने से घर में नित्य कलह, पशु, पुत्र तथा धन आदि की हानि होती रहती है। ऐसी भूमि पर निवास करना हितकर नहीं होता है।

नागपृष्ठा भूमि-

नागपृष्ठा भूमि-

पूर्वपश्चिमयोर्दीर्घा योच्चा दक्षिणसौम्ययौः।
नागपृष्ठा च सा प्रोक्ता निन्दिता पूर्वसूरिभिः।।
तत्र वासो गृहेशस्य धनधान्यादिहानिकृत।
रिपुभीतिकदश्चैव तस्मात्तां परिवर्जयेत।।

ऐसी भूमि जो पूर्व-पश्चिम दिशा की ओर लम्बी हो, दक्षिण व उत्तर में अवनत (नीची) हो तो उस नागपृष्ठा भूमि कहते है। नागपृष्ठा भूमि पर भवन निर्माण करने से धन-धान्य की हानि होती है। शत्रु का सदैव भय बना रहता है। बीमारियों का प्रकोप भी ऐसी भूमि पर रहन वाले लोगों को होता है। इस प्रकार की भूमि पर भवन निर्माण कर रहना हानि कारक ही सिद्ध होता है।

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English summary
Vedic astrology can help us find out whether buying property is possible on the basis of reflections in the horoscope.
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