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Hydroponic Farming : पिता को कैंसर हुआ तो लाखों की नौकरी छोड़ खेती से जुड़े चंदन, जानिए सक्सेस स्टोरी

अमेरिका में सात साल रहने के बाद उत्तर प्रदेश की धरती पर इनोवेटिव फार्मिंग कर रही युवाओं की जोड़ी- प्रखर और चंदन वार्ष्णेय नए तरीके से खेती कर रही है। दोनों ने कैंसर से बचने के लिए कीटनाशक मुक्त सब्जी उगाने का फैसला लिया।

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संभल (उत्तर प्रदेश), 10 मई : आम तौर पर खेती का काम मिट्टी में ही किया जाता रहा है। हालांकि, विज्ञान के प्रसार के बीच अब पानी पर खेती की जा रही है। जी हां, सुनने में ये भले चौंकाने वाली बात लगे, लेकिन उत्तर प्रदेश के संभल में रहने वाले युवाओं ने इसे सच साबित कर दिखाया है। हाइड्रोपॉनिक फार्मिंग कर रही युवाओं की जोड़ी, चंदन और प्रखर वार्ष्णेय युवाओं को सफलता की राह दिखा रहे हैं। पिता के कैंसर की बीमारी से पीड़ित होने के बाद चंदन ने प्रखर के साथ मिलकर हाइड्रोपॉनिक फार्मिंग शुरू की।

hydroponics

एक इंटरव्यू में प्रखर ने बताया कि राजीव गांधी कैंसर संस्थान में जांच के दौरान डॉक्टरों ने चंदन के पिता को बताया कि सब्जियों में कीटनाशक के प्रयोग और उसका अत्यधिक सेवन कैंसर का संभावित कारण है। उन्होंने कहा कि चंदन के पिता तंबाकू या शराब का सेवन नहीं करते थे, लेकिन कीटनाशकों के इस्तेमाल से हुई कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी के बाद उन्होंने पेस्टिसाइड फ्री फल और सब्जी के मकसद से हाइड्रोपॉनिक फार्मिंग की शुरुआत की।

50-60 लाख रुपये का निवेश

50-60 लाख रुपये का निवेश

इनोवेटिव तरीके से खेती कर लाखों की आमदनी के बारे में प्रखर ने बताया कि उन्होंने हाइड्रोपॉनिक फार्मिंग का कोर्स करने के बाद उन्होंने अपने भाई चंदन के साथ मिलकर 14,500 प्लांट्स का शुरुआती सेटअप तैयार किया। उन्होंने कहा कि खेती किसानी के विशेषज्ञ (एग्रोनॉमिस्ट) के मार्गदर्शन में उन्होंने हाइड्रॉपॉनिक खेती शुरू की। प्रखर ने बताया कि शुरुआत में 50-60 लाख रुपये का निवेश हुआ। पूरा प्लांट सोलर पावर से संचालित है।

पानी में पौधे अच्छे से विकसित होते हैं

पानी में पौधे अच्छे से विकसित होते हैं

पेस्टिसाइड मुक्त फूड बनाने की पहल करने पर प्रखर ने बताया कि कई स्टडी में यह सामने आया है कि पानी में पौधों की ग्रोथ बेहतर होती है। उन्होंने कहा कि मिट्टी में पौधों के लिए जरूरी पोषक तत्वों (न्यूट्रिएंट) का प्रभावी नियंत्रण चैलेंजिंग होता है। उन्होंने कहा कि पानी में पौधों को उगाने से पौधों के लिए जरूरी न्यूट्रिएंट बेहतर तरीके से उनकी जड़ों से होते हुए पूरे पौधे में जाते हैं, जिससे पौधे अच्छे से विकसित होते हैं। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सटे नोएडा (NOIDA) से 150 किलोमीटर दूर यूपी के ही संभल में हाइड्रोपॉनिक खेती कर रहे प्रखर ने बताया कि इंटरनेट के दौर में जानकारी जुटाना आसान हो गया है। उन्होंने कहा कि ट्रेडिशनल खेती कर रहे लोगों को भी हाइड्रोपॉनिक फार्मिंग के बारे में जानना चाहिए। उन्होंने कहा कि टारगेट ग्राहकों की एनालिसिस के बाद खेती शुरू की जा सकती है।

कौन सी बीज से होती है हाइड्रोपॉनिक फार्मिंग

कौन सी बीज से होती है हाइड्रोपॉनिक फार्मिंग

हाइड्रोपॉनिक फार्मिंग के लिए नॉन जीएमओ सीड्स का प्रयोग होता है। इस पर प्रखर ने बताया कि नॉन जीएमओ सीड की तुलना में जीएमओ (जेनेटिकली मोडिफाइड ऑर्गनिज्म)सीड का प्लांट सेहत की नजर से ज्यादा फायदेमंद है। उन्होंने बताया कि हाइड्रोपॉनिक फार्मिंग इजराइल की तकनीक है। उन्होंने ऑनलाइन कोर्स की मदद से हाइड्रोपॉनिक खेती की बारीकियां सीखीं। जीएमओ (जेनेटिकली मोडिफाइड ऑर्गनिज्म) बीज नीदरलैंड से इंपोर्ट किया जाता है। इस तकनीक में फसल के जीन्स को लैब में तैयार किया जाता है। उदाहरण के लिए जल्दी सड़ने वाले टमाटर को टिकाऊ बनाने के लिए वैज्ञानिक तरीके कुछ बदलाव किए जाते हैं। लैब में टमाटर के जीन में अपने सहूलियत के मुताबिक बदलाव किए जाते हैं। हालांकि, जीएमओ और नॉन जीएमओ बीज के प्रयोग पर कई तरीकों के तर्क दिए जाते हैं। कुछ लोगों का दावा है कि नॉन जीएमओ सीड सेहत के लिए अच्छा माना जाता है।

छह महीने में निकला ऑपरेशनल कॉस्ट

छह महीने में निकला ऑपरेशनल कॉस्ट

प्रखर ने बताया कि शुरुआत में सभी पौधों को लगाने के बाद मार्केट डिमांट की स्टडी की गई। इसके मुताबिक पौधों को लगाने का फैसला लेते हैं। शुरुआती चुनौतियों के बारे में प्रखर बताते हैं कि चेरी टोमैटो को लगाने में चैलेंज फेस करना पड़ा, जिसके बाद उसे दूसरी जगह पर शिफ्ट करना पड़ा। लागत, लॉजिस्टिक्स, मेंटेनेंस और मुनाफे के बारे में उन्होंने कहा कि मार्च, 2021 में हाइड्रोपॉनिक खेती शुरू करने के बाद सितंबर तक ऑपरेशनल कॉस्ट आराम से निकाल ले रहे हैं। पूंजी के इंतजाम पर एक सवाल के जवाब में प्रखर ने बताया कि बैंकों से इस पर ज्यादा मदद नहीं मिली, शायद हाइड्रोपॉनिक के बारे में जानकारी के अभाव के कारण बैंक लोन देने में असुरक्षित महसूस करते हैं।

कैसे शुरू हुई 'पानी वाली खेती' का यात्रा

कैसे शुरू हुई 'पानी वाली खेती' का यात्रा

अपनी शुरुआती यात्रा के बारे में प्रखर ने बताया कि उनके भाई सात सात अमेरिका में रहे। पिता को कैंसर होने के बाद उन्होंने मई, 2021 में भारत लौटे। बकौल प्रखर, अमेजन कंपनी के सीनियर मैनेजमेंट में सात साल तक नौकरी करने के बाद उन्होंने इस्तीफा दिया और हाइड्रोपॉनिक खेती शुरू की। उन्होंने खुद के बारे में बताया कि शुरुआत में वे पेट्रोल पंप चलाते थे। पिता की ज्वेलरी की दुकान थी। ऐसे में उन्हें आर्थिक संकट का सामना नहीं करना पड़ा।

सरकार से कैसे मिलेगी मदद

सरकार से कैसे मिलेगी मदद

हाइड्रोपॉनिक की लागत काफी अधिक है। ऐसे में पूंजी के लिए बैंक लोन या सरकार की ओर से सब्सिडी या आर्थिक मदद का सवाल प्रासंगिक है। नेशनल हॉर्टिकल्चर बोर्ड (NHB) की वेबसाइट पर उत्पादन और फसल पैदा होने के बाद प्रबंधन के माध्यम से वाणिज्यिक बागवानी के विकास संबंधी गाइडलाइन मौजूद हैं। इसके मुताबिक सरकार, क्रेडिट लिंक्ड बैक-एंडेड सब्सिडी (Credit linked back-ended subsidy) देती है। भारत के सामान्य क्षेत्र में (पूर्वोत्तर से अलग) परियोजना की कुल लागत का 20% जो अधिकतम 25 लाख रुपये होता है। पूर्वोत्तर भारत पहाड़ी और शेड्यूल्ड इलाकों में 30 लाख की मदद सरकार की ओर से (NE Region, Hilly and Scheduled areas) दी जाती है। खुली हवा में संरक्षित खेती के तहत पूंजीगत और उच्च मूल्य वाले फसल- खजूर, जैतून और केसर की खेती के लिए 50 लाख रुपये की अधिकतम सीमा के साथ परियोजना लागत का 25% सरकार देती है।

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English summary
Duo of prakhar chandan varshney doing innovative hydroponic farming in Sanbhal and NOIDA, Uttar Pradesh.
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