सुबह उठकर सबसे पहले क्या करना चाहिए, क्या कहता है धर्म?
लखनऊ। हम इस भूमण्डल पर उत्पन्न होकर वैदिक विधान एवं भारतीय संस्कृति व आचार-पद्धित के अनुसार यदि अपनी दैकिन क्रियायें अनुशासित होकर सम्पादित करें तो हमें इस जीवन में अपार आनन्द की अनुभूति अवश्य होगी। सामान्य रूप से दैनिक क्रियाओं को नियत समय पर उचित तरीके से सम्पादित करने पर ही अभीष्ट फल की प्राप्ति होगी। दैनिक क्रियाओं में क्रमानुसार सबसे महत्वपूर्ण क्रिया ब्राह्म मुहूर्त में अर्थात सूर्योदय से डेढ़ घण्टे पूर्व उठना आवश्यक है। नीतिशास्त्र के अनुसार मनुष्य को इन 6 दुर्गणों से बचना चाहिए। सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय सोने सोने, मैले वस्त्र धारण करने, मैले दांत रखने, अधिक भोजन करने व कटु वचन बोलने से मनुष्य को जीवन के सच्चे आनन्द की अनुभूति नहीं मिलती है।
प्रातःकाल उठकर बिस्तर पर ही बैठकर अपने दोनों हाथेलियों को सामने फैलाकर निम्न श्लोक पढ़ते हुये कर दर्शन करने चाहिए।
कराग्रे
बसते
लक्ष्मीः,
कर
मध्ये
सरस्वती।
करमूले
स्थितो
ब्रह्मा,
प्रभाते
कर
दर्शनम्।।
अर्थात
कर
के
अग्र
भाग
में
लक्ष्मी,
मध्य
में
सरस्वती
तथा
हथेली
के
मूल
में
ब्रह्मा
जी
का
निवास
होता
है।
अतः
प्रातः
उठते
ही
ही
अपनी
हथेलियों
के
अग्र
भाग
में
लक्ष्मी,
मध्य
में
सरस्वती
तथा
मूल
में
ब्रह्मा
जी
का
ध्यान
करते
हुये
उपरोक्त
मन्त्र
को
पढ़ते
हुये
कर-दर्शन
करना
चाहिए।
पृथ्वी
पर
पैर
रखने
से
पूर्व
पृथ्वी
माता
से
क्षमा
प्रार्थना
करना
प्रातःकाल
उठकर
शैय्या
पर
से
पृथ्वी
पर
पैर
रखने
से
पूर्व
माता
पृथ्वी
की
वन्दना
और
क्षमा
याचना
करनी
चाहिए।
निम्न
मन्त्र
से-
समुद्र
वसने
देवि,
पर्वतस्तनमण्डले।
विष्णुपत्नीं
नमस्तुभ्यं
पादस्पर्शम्
क्षमस्व
मे।।
अर्थात
हे
विष्णु
प्रिये
वसुन्धरे,
आपके
समुद्र
वसन
और
पर्वत
स्तन
है,
आपको
नमन
है।
मेरे
पादस्पर्श
को
आप
क्षमा
करें।
यह
मन्त्र
पढ़ते
हुये
भूमि
पर
पैर
रखने
से
पूर्व
भूमि
को
हाथ
से
स्पर्श
कर
प्रणाम
करें,
उसके
बाद
नासिक
से
जो
स्वर
चल
रहा
हो,
वही
पैर
सबसे
पहले
पृथ्वी
पर
रख
कर
पृथ्वी
माता
का
अभिवादन
तथा
क्षमा
याचना
करनी
चाहिए।
फिर
हाथ-मुॅह
धोकर,
कुल्ला
कर
गौ-गणपति
आदि
माॅगलिक
मूर्ति
का
दर्शन
अपने
इष्टदेव
को
प्रणाम
कर
निम्न
श्लोकों
द्वारा
प्रातः
स्मरण
करें-
प्रातः
स्मरणम्
गणनाथमनाथ-बन्धुं।
सिन्दूरपूर
परिपूरित-गण्डयुग्मम्।।
उदण्ड-विघ्न
परिखण्डन-चण्डदण्ड।
माखण्डलादि-सुरनायक-वृन्दवन्द्यम्।।
ब्रह्मामुरारिस्त्रिपुरान्तकारी
भानुःशशी
भूमिसुतो
बुधश्च।
गुरूश्च
शुक्रः
शनि
राहु
केतवः
कुर्वन्तु
सर्वे
मम
सुप्रभातम्।।
शान्ताकारं
भुजंगशयनं
पद्नाभं
सुरेशं।
विश्वाधारं
गगन
सदृशं
मेघवर्णं
शुभांगम्।।
लक्ष्मीकान्तं
कमल
नयनं
योगिभिः
ध्यानगम्यं।
वन्दे
विष्णुं
भवभयहरं
सर्वलोकैकनाथम्।।
इस
प्रकार
भगवान
भास्कर,
गुरूदेव,
गोमाता,
तुलसी
जी
को
प्रणाम
करके
शौच
को
जाना
चाहिए।
मौन
होकर
शौच-क्रिया
करनी
चाहिए।
शौचालय
में
दक्षिण
या
पश्चिम
की
ओर
मुख
करके
शौच
करना
श्रेष्ठ
रहता
है।
शौचालय
में
समाचार
पढ़ना
व
अपने
को
व्यस्त
रखना
अनुचित
एवं
स्वास्थ्य
के
लिए
हानिकाराक
है।
शौच
से
निवृत
होकर
साबुन
से
अच्छे
से
हाथ
धोकर
फिर
दातून
या
मंजन
करें।
फिर
उसके
बाद
स्नान
ध्यान
व
पूजन
करके
अपने
दैनिक
कर्म
की
शुरूआत
करनी
चाहिए।
अगर
आप
ऐसा
करेंगे
तो
स्वस्थ्य
रहेंगे
और
आप
मां
लक्ष्मी
सदैव
कृपा
बनी
रहेगी।
नोट-शौच के बाद 12 कुल्ले, लघुशंका के बाद 4 कुल्ले तथा भोजन के बाद 16 कुल्ले करने चाहिए। कुल्ले का जल सदैव बांए भाग में डालना चाहिए।