क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

जानिए देव नदी गंगा को क्यों आना पड़ा था धरती पर?

By पं. गजेंद्र शर्मा
Google Oneindia News

नई दिल्ली। गंगा, परम पावनी दैवीय नदी, जिसके स्पर्श मात्र से पापियों के समस्त पाप धुल जाते हैं। भारत में जिसे आज भी सिर्फ एक नदी ना मानकर मां गंगा के नाम से पुकारा जाता है। मां गंगा, जिसके तट पर सदियों से जाने कितने पुण्य कर्म संचित होते आए हैं।

मां गंगा ने क्यों दी थी अपने ही सात पुत्रों को मृत्यु!मां गंगा ने क्यों दी थी अपने ही सात पुत्रों को मृत्यु!

शिव की जटाओं में वास करने वाली स्वर्ग की देवी गंगा का जन्म कैसे हुआ, क्यों है वह ऐसी परम पावनी और किस पाप के कारण उसे धरती पर अवतरण लेना पड़ा, आइए जानते हैं-

गंगा के जन्म की गाथा असुर राज बलि के यज्ञ और भगवान विष्णु के वामन अवतार से जुड़ी है। पुराणों में उल्लेख मिलता है कि महाशक्तिशाली असुर राजा बलि ने अपने बल से तीन लोकों पर अधिकार कर लिया और उसके बाद एक महायज्ञ का आयोजन किया। स्वभाव से महादानी राजा बलि ने यज्ञ में हर किसी को अपनी इच्छा के अनुरूप दान मांगने के लिए निमंत्रित किया।

भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया

भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया

ऐसे में देवताओं के कल्याण के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और राजा बलि से अपने तप और ध्यान के लिए तीन पग भूमि की मांग की। बलि द्वारा याचना स्वीकार किए जाने पर उन्होंने महाविराट स्वरूप धारण किया और दो पगों में पृथ्वी, पाताल और स्वर्गलोक नाप लिए। इस महाविराट स्वरूप को देखकर बलि ने जान लिया कि स्वयं नारायण पधारे हैं और उसने तीसरा पग रखने के लिए सहर्ष अपना सिर आगे कर दिया। भगवान विष्णु ने उसके सिर पर पग रखकर उसे मोक्ष प्रदान किया।

मोहक कन्या प्रकट हुई

मोहक कन्या प्रकट हुई

इसी भूमि नापने के क्रम में गंगा की उत्पत्ति का रहस्य छिपा है। कहा जाता है कि जब भगवान विष्णु ने भूमि नापने के लिए अपना पग स्वर्ग पर रखा, तब ब्रह्मा जी ने उनके पैर धोने के लिए झट से अपना कमंडल आगे कर थोड़ा सा जल लिया। विष्णु भगवान के पैर के अंगूठे का प्रक्षालन हो सका और उसकी एक बूंद कमंडल में गिरी। उसी कमंडल से एक महाचंचल, महासुंस्कारी, मोहक कन्या प्रकट हुई, वही गंगा थीं।

 नटखट शैतानियों से वह सभी देवों की प्रिय थीं

नटखट शैतानियों से वह सभी देवों की प्रिय थीं

गंगा अपने जन्म के साथ ही मधुर गायन और नृत्य का वरदान लेकर आई थीं। अपनी नटखट शैतानियों से वह सभी देवों की प्रिय थीं, इसी के साथ अपने मधुर नृत्य और गायन से भी वे सबका मन मोह लेती थीं। देवता और ऋषिगण अक्सर ही गंगा का गायन और नृत्य सुनने-देखने आया करते थे। इसी क्रम में एक बार देवताओं के साथ ऋषि दुर्वासा भी गंगा का नृत्य देखने आए। महर्षि दुर्वासा के क्रोध से देवलोक भी कांपता था, पर गंगा उनके बारे में कुछ नहीं जानती थीं।
काल का योग ऐसा हुआ कि जैसे ही गंगा ने तीव्र और मोहक नृत्य प्रारंभ किया, वैसे ही तेज हवा चलने लगी।

दुर्वासा का क्रोध

दुर्वासा का क्रोध

सभी अपने कपड़े संभालने में लग गए, पर चंचल हवा के वेग से महर्षि दुर्वासा की धोती खुलकर उड़ गई। महर्षि दुर्वासा के क्रोध से परिचित सभी देव अपनी हंसी दबाकर बैठे रहे, पर नादान गंगा स्वयं को ना रोक सकीं और ठहाका मारकर हंस पड़ीं। गंगा की हंसी से दुर्वासा का क्रोध सारी सीमाएं लांघ गया। गुस्से में तमतमाते हुए उन्होंने श्राप दिया कि मुझे समस्या में देखकर भी मेरी मदद ना कर हंसने वाली मूर्ख लड़की! तेरा आचरण किसी भी तरह देवलोक के अनुकूल नहीं है। तूने मानवोचित कर्म किया है, तो अब से मानवों के बीच ही जाकर रह। तू देवलोक में निवास करने के योग्य नहीं है।

और गंगा को धरती पर आना पड़ा...

और गंगा को धरती पर आना पड़ा...

अब गंगा को समझ में आया कि उनसे कितनी बड़ी भूल हो गई है। उन्होंने ऋषि के पैर पकड़ लिए और रोते हुए अज्ञानतावश हुए अपराध की क्षमा मांगी। गंगा के आंसुओं से पिघलकर महर्षि दुर्वासा ने कहा कि मेरा श्राप किसी भी स्थिति में लौटाया नहीं जा सकता। तुम्हें धरती पर जाना ही होगा, पर धरती पर जाकर भी तुम कभी मलिन नहीं होगी। तुम्हारा मान देवताओं के समान ही रहेगा और तुम्हें स्पर्श करने वाला, तुमपर श्रद्धा रखने वाला हर पाप से मुक्त हो जाएगा। इस तरह गंगा के धरती पर अवतरण की भूमिका बनी।

Comments
English summary
This is the story of Ganga coming on earth, its really interesting, please have a look.
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X