Amalaki Ekadashi Vrat 2023: आज है आमलकी एकादशी व्रत, जानिए कथा और महत्व
आमलकी एकादशी के दिन भगवान विष्णु-लक्ष्मी का पूजन किया जाता है। व्रत करके दिनभर निराहार रहा जाता है। एकादशी के व्रत की कथा जरूर पढ़ें या सुनें।
Amalaki Ekadashi Vrat 2023: फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की आमलकी एकादशी आज है। इस एकादशी पर इस बार तीन शुभ संयोगों का त्रिसंयोग योग है। आज मां लक्ष्मी का दिन यानी शुक्रवार भी है तो वहीं दोपहर 3.44 बजे से पुष्य नक्षत्र रहेगा और सायं 6.44 बजे तक सौभाग्य योग भी है। इसके अलावा सर्वार्थसिद्धि योग भी दोपहर 3.44 बजे तक रहेगा। इतने सारे संयोगों में आने के कारण यह एकादशी सुखों के साथ सौभाग्य में भी वृद्धि करने वाली है, साथ ही व्रत करने से सर्वत्र सिद्धि भी प्राप्त होगी। इस एकादशी को मथुरा-वृंदावन में रंगभरी एकादशी भी कहा जाता है।
आमलकी एकादशी का महत्व
आमलकी एकादशी के दिन भगवान विष्णु-लक्ष्मी का पूजन किया जाता है। व्रत करके दिनभर निराहार रहा जाता है। एकादशी के व्रत की कथा जरूर पढ़ें या सुनें। इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने का विधान भी है। इस वृक्ष की जड़ में शुद्ध जल में कच्चा दूध और मिश्री मिलाकर अर्पित करें। इससे सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है। महाशिवरात्रि और होली के बीच आने वाली इस एकादशी को रंगभरी एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन भगवान शिव और मां पार्वती को अबीर-गुलाल लगाकर उनके साथ होली खेलें। इससे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
आमलकी एकादशी व्रत की कथा
प्राचीन समय में वैदिक नामक एक नगर था। उस नगर में चैत्ररथ नामक चंद्रवंशी राजा राज्य करता था। वह उच्चकोटि का विद्वान तथा धार्मिक प्रवृत्ति का राजा था। उस राज्य के सभी लोग विष्णु भक्त थे। वहां के छोटे-बड़े सभी निवासी प्रत्येक एकादशी का उपवास करते थे।
आनंदपूर्वक एकादशी का व्रत किया
एक बार फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की आमलकी एकादशी आई। उस दिन राजा और प्रत्येक प्रजाजन, वृद्ध से लेकर बालक तक ने आनंदपूर्वक एकादशी का व्रत किया। राजा अपनी प्रजा के साथ मंदिर में आकर पूजन करने लगा। उस मंदिर में रात को सभी ने जागरण किया। रात के समय उस जगह एक बहेलिया आया। वह महापापी तथा दुराचारी था। अपने कुटुंब का पालन वह जीव हिंसा करके करता था। वह भूख-प्यास से अत्यंत व्याकुल था। भोजन पाने की इच्छा से वह मंदिर के एक कोने में बैठ गया। उस जगह बैठकर वह भगवान विष्णु की कथा तथा एकादशी माहात्म्य सुनने लगा। इस प्रकार उस बहेलिए ने सारी रात अन्य लोगों के साथ जागरण कर व्यतीत की। प्रात:काल सभी लोग अपने-अपने निवास पर चले गए। वह बहेलिया भी अपने घर चला गया और वहां जाकर भोजन किया।
वह घोर नरक का भागी था
कुछ समय बाद बहेलिए की मृत्यु हो गई। उसने जीव हिंसा की थी, इस कारण वह घोर नरक का भागी था, परंतु उस दिन आमलकी एकादशी का व्रत तथा जागरण के प्रभाव से उसने राजा विदुरथ के यहां जन्म लिया। उसका नाम वसुरथ रखा गया। बड़ा होने पर वह चतुरंगिणी सेना सहित तथा धन-धान्य से युक्त होकर दस सहस्त्र ग्रामों का संचालन करने लगा। वह तेज में सूर्य के समान, कांति में चंद्रमा के समान, वीरता में भगवान विष्णु के समान तथा क्षमा में पृथ्वी के समान था। वह अत्यंत धार्मिक, सत्यवादी, कर्मवीर और विष्णुभक्त था।
वन में एक वृक्ष के नीचे सो गया राजा
एक बार राजा वसुरथ शिकार खेलने गया। वह वन में रास्ता भटक गया और दिशा का ज्ञान न होने के कारण उसी वन में एक वृक्ष के नीचे सो गया। रात में वहां डाकू आए और अकेला देखकर वसुरथ की ओर दौड़े। वे राजा को पहचान गए। वह डाकू कहने लगे किइस दुष्ट राजा ने हमारे माता-पिता, पुत्र-पौत्र आदि समस्त संबंधियों को मारा है तथा देश से निकाल दिया। अब हमें इसे मारकर अपने अपमान का प्रतिशोध लेना चाहिए। वे डाकू राजा पर टूट पड़े और हथियारों से प्रहार करने लगे। डाकू आश्चर्यचकित, क्योंकिउनके हथियारों का राजा पर कोई प्रभाव नहीं हो रहा था। हथियारों के वार राजा के लिए फूलों के समान होते जा रहे थे। कुछ समय पश्चात वे हथियार पलटकर डाकुओं पर ही प्रहार करने लगे।
अनेक डाकुओं को मृत देखा
उसी समय राजा के शरीर से एक दिव्य देवी प्रकट हुई। वह देवी अत्यंत सुंदर थी तथा सुंदर वस्त्रों तथा आभूषणों से अलंकृत थी। उसकी भृकुटी टेढ़ी थी। उसकी आंखों से क्रोध की भीषण लपटें निकल रही थीं। उसने देखते-ही-देखते उन सभी डाकुओं का समूल नाश कर दिया। नींद से जागने पर राजा ने वहां अनेक डाकुओं को मृत देखा। वह सोचने लगा किसने इन्हें मारा? इस वन में कौन मेरा हितैषी रहता है? राजा वसुरथ ऐसा विचार कर ही रहा था कितभी आकाशवाणी हुई_ \'हे राजन! इस संसार में भगवान विष्णु के अतिरिक्त तेरी रक्षा कौन कर सकता है!\' इस आकाशवाणी को सुनकर राजा ने भगवान विष्णु को स्मरण कर उन्हें प्रणाम किया, फिर अपने नगर को वापस आ गया और सुखपूर्वक राज्य करने लगा। यह सब आमलकी एकादशी के व्रत का प्रभाव था, जो मनुष्य एक भी आमलकी एकादशी का व्रत करता है, वह प्रत्येक कार्य में सफल होता है और अंत में वैकुंठ धाम को पाता है।
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