OBC Reservation in UP: हाईकोर्ट के फैसले के बाद बैकफुट पर योगी सरकार
UP नगर निकाय चुनाव में इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा ओबीसी आरक्षण रद्द करने के फैसले के बाद योगी सरकार दबाव में है। दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी ने इस मुद्दे पर भाजपा को ओबीसी विरोधी बताते हुए इसे भाजपा की साजिश बताया है।
OBC Reservation in UP: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने उत्तर प्रदेश सरकार को बिना ओबीसी आरक्षण के ही नगर निकाय चुनाव 31 जनवरी से पहले कराने का आदेश दिया है। कोर्ट ने यह आदेश सुप्रीम कोर्ट के वर्ष 2010 ट्रिपल टेस्ट के फैसले को आधार बनाते हुए दिया है। कोर्ट ने लोकसभा-विधानसभा चुनाव की तर्ज पर केवल एसटी-एससी आरक्षण के आधार पर चुनाव कराने के निर्देश दिये हैं। इस आदेश के बाद भाजपा सियासी मोर्चे पर चौतरफा घिर गई है।
योगी सरकार इस मामले में बैकफुट पर है तो उसका सबसे बड़ा कारण है कि नगर विकास विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों ने समय रहते निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण संबंधी खामियों को सुधारने में कोई रूचि नहीं दिखाई। दूसरे राज्यों से सबक लेकर आरक्षण पर ट्रिपल टेस्ट के लिये पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग का गठन कराने का भी कोई प्रयास नहीं किया गया।
नगर निकाय में आरक्षण संवैधानिक नहीं बल्कि राजनीतिक व्यवस्था है। इसी को आधार बनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कृष्णराव गवली बनाम महाराष्ट्र सरकार के मामले में ओबीसी आरक्षण के लिए ट्रिपल टेस्ट का फैसला दिया था। ट्रिपल टेस्ट में एक आयोग गठित करना होता है, जो ओबीसी की आर्थिक, शैक्षणिक एवं जनसंख्या को परखता है। इसी आधार पर चुनाव में ओबीसी आरक्षण लागू होता है।
हाईकोर्ट के फैसले के बाद उत्तर प्रदेश सरकार के पास फिलहाल सुप्रीम कोर्ट जाने का एकमात्र विकल्प है, लेकिन वहां से बहुत राहत मिलने की उम्मीद नहीं है, क्योंकि हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के ट्रिपल टेस्ट के फैसले को आधार बनाकर ही निर्णय दिया है। ऐसे में सरकार सुप्रीम कोर्ट से ट्रिपल टेस्ट के लिये समय मांगने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है।
उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण के बिना चुनाव कराना भाजपा के लिये आत्महत्या करने जैसा होगा। लिहाजा हाईकोर्ट के फैसले के बाद भी भाजपा ऐसा कोई रिस्क नहीं लेगी। 2014 के बाद से भाजपा का सबसे बड़ा वोट बैंक गैर-यादव ओबीसी ही रहा है। ओबीसी वोटरों की बदौलत ही भाजपा यूपी में 2014 लोकसभा, 2017 विधानसभा, 2019 लोकसभा तथा 2022 विधानसभा के चुनाव में विपक्षी दलों को रौंदने में सफल रही है।
भाजपा के इसी गैर-यादव ओबीसी के जनाधार को तोड़ने की कोशिश में सपा समेत अन्य विपक्षी दल उसे ओबीसी विरोधी साबित करने की कोशिश में जुट गये हैं। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने तो यूपी में भाजपा के ओबीसी चेहरा केशव प्रसाद मौर्य पर भी हमला बोला है कि मौर्य खुद भले ही पिछड़े हैं, लेकिन वह पिछड़ों के हितों की रक्षा नहीं कर सकते हैं। भाजपा के सहयोगी दल भी कोर्ट के फैसले से खुश नहीं हैं।
उत्तर प्रदेश से पहले महाराष्ट्र, बिहार, मध्य प्रदेश एवं झारखंड सरकार भी नगर निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर फंस चुकी है। चारों राज्य अलग-अलग तरीके से ओबीसी आरक्षण की मुश्किल से निकलने में सफल रहे। माना जा रहा है योगी सरकार भी कोई राह निकाल लेगी। योगी ने ऐलान किया है कि ओबीसी आरक्षण लागू किये बिना यूपी में निकाय चुनाव किसी भी कीमत पर नहीं होंगे।
2024 के आम चुनाव से पहले नगर विकास विभाग के मंत्री एवं अधिकारियों की लापरवाही से बैठे-बिठाये विपक्ष को बड़ा मुद्दा मिला गया है। गैर-यादव ओबीसी को जोड़ने में लगी सपा के हाथ ऐसा हथियार लगा है, जिसके सहारे वह भाजपा की धार को कुंद करने में जुट गई है। खतौली में गैर-यादव ओबीसी जातियों का वोट गठबंधन को मिलने के बाद से सपा लगातार भाजपा पर हमलावर है।
भाजपा को शीर्ष पर पहुंचाने में ओबीसी वर्ग का महत्वपूर्ण योगदान है। वर्तमान भाजपा नेतृत्व ने वार्ड से लेकर केंद्र तक की राजनीति को पिछड़ों के इर्द-गिर्द ही रखा है। खुद योगी सरकार के 52 सदस्यीय मंत्रिमंडल में 18 मंत्री ओबीसी वर्ग से आते हैं। ऐसे में भाजपा आसानी से यह मुद्दा विपक्ष के हाथ नहीं लगने देगी, लेकिन जब तक ओबीसी आरक्षण पर समाधान नहीं निकलता, विपक्षी दल सरकार एवं भाजपा पर हमलावर रहेंगे।
उत्तर प्रदेश में 762 नगरीय निकाय हैं, जो उत्तर प्रदेश की लगभग 25 फीसदी आबादी को प्रभावित करते हैं। 17 नगर निगम, 200 नगर पालिका परिषद तथा 545 नगर पंचायत हैं, जिनमें 5.50 करोड़ से ज्यादा आबादी निवास करती है। निकायों में भाजपा सबसे ज्यादा ताकतवर मानी जाती है, जिसमें सवर्णों के साथ गैर-यादव ओबीसी वोटरों का बड़ा योगदान है। लिहाजा ओबीसी आरक्षण के बिना चुनाव संभव नहीं दिखता है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हों या नगर विकास मंत्री एके शर्मा दोनों ने स्पष्ट कहा है कि ओबीसी आरक्षण लागू किये बिना सरकार निकाय चुनाव नहीं करायेगी। अन्य विकल्पों पर भी विचार किया जा रहा है। इस बीच यह तय है कि योगी सरकार की किरकिरी कराने वाले नगर विकास विभाग के कई अधिकारियों पर गाज गिराने की तैयारी चल रही है। विभागीय मंत्री एवं अधिकारियों की लापरवाही ने भाजपा को मुश्किल में डाल दिया है।
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कोर्ट के फैसले के बाद स्पष्ट है कि नगर निकाय चुनाव का समय से हो पाना संभव नहीं है। वर्ष 2017 में 27 अक्टूबर को निकाय चुनाव की अधिसूचना जारी हुई थी, जिसके बाद तीन चरणों में चुनाव हुआ था। मतगणना 1 दिसंबर को हुई थी। इस बार सरकार ने 5 दिसंबर को सीटों का आरक्षण जारी किया था तथा जनवरी में चुनाव की तैयारी थी, लेकिन कोर्ट के फैसले के बाद अब माना जा रहा है कि चुनाव अप्रैल या मई में ही हो पायेंगे।
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(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)