इंडिया गेट से: वहाबी मानसिकता का हिंसक विस्तार
वहाबी इस्लाम है क्या और यह कैसे शुरू हुआ, विस्तार से समझिए
नई दिल्ली: वैसे कहने को इस्लाम को शान्ति का धर्म कहा जाता है लेकिन दुनिया भर के देश इस्लाम की हिंसा और कट्टरवादिता से जूझ रहे हैं। कट्टरपंथी मुसलमान न तो तार्किक बात करना चाहते हैं, न तार्किक बात सुनने को तैयार होते हैं। नूपुर शर्मा का उदाहरण हमारे सामने है। नूपुर शर्मा ने मोहम्मद पैगंबर का अपमान नहीं किया था, हदीस में लिखी बात कही थी। लेकिन देश भर में मुसलमानों ने सड़कों पर आ कर "सर तन से जुदा" के नारे लगाए। सिर्फ नारे ही नहीं लगाए, बल्कि उदयपुर में सर तन से जुदा कर के दिखा भी दिया।
इसी कट्टरवादिता के दबाव में मुस्लिम देशों ने भारत पर इतना दबाव बना दिया कि भारत को झुकना पड़ा। जबकि इस्लामिक स्कालरों का मानना है कि नूपुर शर्मा ने कुछ नया नहीं कहा था, न ही कुछ असत्य कहा था। वही कहा था, जो हदीस में लिखा हुआ है। यूट्यूब पर ऐसे हजारों वीडियो उपलब्ध हैं, जहां मुस्लिम स्कालर मोहम्मद पैगंबर और आयशा की शादी पर बात करते हुए दिखाई देते हैं। लेकिन वही बात कोई गैर इस्लामिक कह देता है, तो वे सर तन से जुदा करने पर उतारू हो जाते हैं।
अब हम दूसरी तरफ आते हैं। एम.एफ. हुसैन कई दशकों तक हिन्दू देवी-देवताओं की नग्न व अश्लील पेंटिंग बनाता रहा। उस के खिलाफ कट्टरपंथी हिन्दुओं ने इक्का-दुक्का प्रदर्शन के सिवा कुछ नहीं किया। ज्ञानवापी मस्जिद के भीतर जब हिन्दू धर्म से संबंधित प्रतीक चिन्ह और शिवलिंग मिला तो मुस्लिमों ने सोशल मीडिया पर कैसी-कैसी अश्लील टिप्पणियाँ की थीं। आप सोशल मीडिया पर जा कर देख लीजिए भारत के मुसलमान हिन्दू देवी-देवताओं के बारे में कैसी कैसी बातें लिख रहे हैं। हिन्दू उसे देख कर अनदेखा कर देता हैं।
हाल ही में मोहम्मद जुबेर नाम का एक मुस्लिम युवक गिरफ्तार किया गया है। वह खुद को फैक्ट चेकर कहता है, फेक्ट चेक की एक साईट भी चलाता है, लेकिन उसके सारे फेक्ट चेक उस के धर्म और उसकी विचारधारा के हिसाब से ही होते हैं। नूपुर शर्मा के खिलाफ भी उसी ने अपने ट्वीट के माध्यम से मुस्लिम जगत को भड़काया। जबकि वह खुद सोशल मीडिया पर हिन्दू देवी देवताओं के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियाँ करता रहता है। उसने हनुमान जी, गणेश जी, भगवान राम, शिवलिंग आदि पर अनेक भड़काऊ पोस्ट किए हैं। लेकिन हिन्दू उसे देख कर हमेशा अनदेखा करते रहे। नूपुर शर्मा के मुद्दे पर देश और दुनिया को हिंसा की आग में झोंकने की उसकी भूमिका सामने आई और लोग उस पर कार्रवाई की मांग करने लगे, तो उस ने अपना ट्विटर हेंडल और फेसबुक अकाउंट ही बंद कर दिया।
कट्टरपंथी मुसलमान दूसरे धर्म के आराध्यों के बारे में अपमानजनक टिप्पणी को अधिकार मानते हैं। लेकिन अपने पैगंबर के बारे में सच्ची बात भी गैर मुस्लिम के मुंह से नहीं सुन सकते। यह प्रवृति सिर्फ भारतीय मुसलमानों में नहीं है, दुनिया भर के मुसलमानों में है। मुस्लिम देशों में गैर मुसलमानों को अपने धर्म का पालन नहीं करने दिया जाता। लेकिन गैर मुस्लिम देशों में वहां की मूल आबादी का जीना हराम कर रखा है। तो यह क्या वास्तव में इस्लाम का असली रूप है या इस्लाम का बिगड़ा हुआ रूप है। असल में यह इस्लाम का वहाबी रूप है, जो इस्लाम पर हावी हो गया है। वहाबी इस्लाम पूरी दुनिया को मुसलमान बनाने, जो इस्लाम को न माने उसे मौत के घाट उतारने और अंतत: पूरी दुनिया में शरीयत का राज स्थापित करना चाहता है। दुनिया पर कब्जा करने और गैर मुसलमानों को नेस्तनाबूद करने वाले हिंसक कट्टरवादी वहाबी इस्लाम से सारे मुसलमान भी सहमत नहीं हैं।
आप के लिए यह जानना जरूरी है कि भारत के सारे सुन्नी मुसलमान वहाबी इस्लाम में विशवास नहीं रखते हैं, जिनका उद्देश्य एक दिन भारत पर इस्लामिक राज स्थापित करना है। लेकिन आज़ादी के बाद की मुस्लिम पीढी वहाबी आन्दोलन के प्रभाव में आ रही है। जो सर तन से जुदा के सिर्फ नारे नहीं लगाती है, अरब और अफगानिस्तान की तरह सर तन से जुदा करती भी है। भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान के ज्यादातर मुसलमान भले ही खुद को किसी भी इस्लामिक फिरके से जुडा बताएं, लेकिन उनकी मानसिकता वहाबी बन चुकी है। भारत पाकिस्तान और बांग्लादेश की तरह कतर, सउदी अरब और यूएई के ज्यादातर मुस्लिम भी वहाबी हैं। सउदी अरब के लगभग 92 प्रतिशत लोग वहाबी हैं।
वहाबी इस्लाम है क्या और यह कैसे शुरू हुआ। इस्लाम को पश्चिम के प्रभाव से मुक्त करने के लिए अब्दुल वहाब नज्दी नाम के अरबी कबीलाई ने 1810 के आसपास तथाकथित सुधारवादी आन्दोलन शुरू किया था। तब तक तुर्की मक्का मस्जिद की देखरेख करता था, अब्दुल वहाब ने एक अन्य कबीलाई गिरोह के साथ मिल कर मक्का पर हमला कर दिया। वहां मौजूद तुर्की के सभी 300 सेवादारों को मक्का काबा के भीतर ही मार दिया और सऊदी अरब पर कब्जा कर लिया। समझौते के तहत दूसरा गिरोह सउदी अरब पर राज करने का अधिकारी हो गया और वहाब ने खुद शरीयत को लागू करने की जिम्मेदारी ली। अब्दुल वहाब के नाम से इस आन्दोलन का नाम वहाबी आन्दोलन रखा गया। वहाबी आन्दोलन का लक्ष्य किसी भी तरह से पूरी दुनिया में शरीयत का शासन स्थापित करना है।
भारत में वहाबी आन्दोलन का संस्थापक सैयद अहमद बरेलवी था। भारतीय उपमहाद्वीप में अहले-हदीस के संस्थापक और देवबंदी विचारधारा के प्रवर्तक के रूप में सैयद अहमद बरेलवी को जाना जाता है जिसने आधुनिक युग में जिहाद की प्रवृति को फिर से बढ़ावा दिया। उसका जन्म 1786 में रायबरेली शहर के एक नामी-गिरामी परिवार में हुआ था, जो खुद को पैगम्बर हजरत मुहम्मद का वंशज मानता था। सैयद अहमद बरेलवी 1821 ई. में मक्का गया था, जहां उसकी अब्दुल वहाब से मुलाक़ात हुई। अहमद बरेलवी अब्दुल वहाब के विचारों से प्रभावित हो कर एक कट्टर हमलावर मुस्लिम"के रूप में भारत वापस लौटा। यह 1821 की बात है, जब भारत में ब्रिटिश राज स्थापित हो रहा था। सैयद अहमद बरेलवी का लक्ष्य भारत में फिर से इस्लामिक शासन स्थापित करना था। उनका मानना था कि भारत को "दार-उल-हर्ब" (दुश्मनों का देश) नहीं बल्कि भारत को "दार-उल-इस्लाम" (इस्लाम का देश) बनाना है और जो इस के रास्ते में जो भी आए उस के साथ युद्ध करना है। यानी भारत को इस्लामिक देश बनाने के रास्ते में जो भी खड़ा हो, उसे खत्म कर देना है।
भारत में इस्लामिक राज स्थापित करने के लिए सैयद अहमद ने तीन सूत्रीय योजना बनाई। पहली- मुसलमानों की अपनी सशस्त्र सेना बनाना। दूसरी-भारत के हर कोने में उचित नेता को चुनना। तीसरी - जिहाद के लिए भारत में ऐसी जगह चुनना जहाँ मुस्लिम अधिक संख्या में रहते हों ताकि वहाबी आन्दोलन जोर-शोर से पूरे देश में फैले। सैयद अहमद ने बाकायदा इस्लामिक फ़ौज बनाई, जिस ने बंगाल में अंग्रेजों के साथ और पंजाब में सिख शासकों के साथ युद्ध किए। पंजाब में सिखों के साथ युद्ध में वह खुद मारा गया, लेकिन वहाबी आन्दोलन चलता रहा, जिस का एक रूप हम ने बाद में खिलाफत आन्दोलन के रूप में और फिर डायरेक्ट एक्शन के रूप में भी देखा , जिस में लाखों हिन्दुओं को मार दिया गया था। कुछ इतिहासकार यह कह कर हिन्दुओं को गुमराह करते हैं कि वहाबी आन्दोलन हिन्दुओं के खिलाफ नहीं था, अगर ऐसा होता तो आज़ादी के बाद भारत में वहाबी आन्दोलन खत्म हो जाता। लेकिन क्योंकि आजादी के बाद भारत दार-उल-इस्लाम नहीं बना। इसलिए सउदी अरब के धन से आज भी भारत को दार -उल -इस्लाम बनाने के लिए हिन्दुओं के खिलाफ हिंसक आन्दोलन चल रहा है। हर बार वह नए-नए रूप में सामने आ रहा है और भारत के मुस्लिम युवक वहाबी विचारधारा से जुड़ रहे हैं।
2014 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनना भारत को दारुल-इस्लाम बनाने में बड़ी रुकावट बन गया है, इसलिए वहाबी आन्दोलन की नए तरीके से शुरुआत की गई है। पीएफआई मुसलमानों की अपनी सेना गठित कर चुकी है। केरल, बंगाल, कर्नाटक और राजस्थान में पीएफआई ने शरीयत का राज स्थापित करने की योजना पर काम शुरू कर दिया है। नूपुर शर्मा को मुद्दा बना कर राजस्थान के उदयपुर में पहले हिन्दू का सर कलम किया गया है। लेकिन यह पहली वारदात नहीं है, 2014 के बाद यह पांचवी वारदात है, जिस में हिन्दू का सर कलम किया गया है। हैरानी यह है कि वहाबी मानसिकता फैलती जा रही है और केंद्र व राज्य सरकारें पीएफआई संगठनों की हर वारदात को मामूली घटना के रूप में ले रही हैं।
(इस लेख में व्यक्त विचार, लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में दी गई किसी भी सूचना की तथ्यात्मकता, सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं।)
ये भी पढ़ें- इंडिया गेट से: तीस्ता सीतलवाड़: सेक्युलरवाद की आड़ में धन संग्रह और खतरनाक साजिशें