UP Police: आखिर ठंडी क्यों पड़ गयी अतीक गैंग के खिलाफ यूपी पुलिस की कार्रवाई?
उमेश पाल की दिनदहाड़े हत्या के बाद जिस तरह पुलिस ने अतीक अहमद गैंग के शूटरों के खिलाफ कार्रवाई शुरु की थी, वह अचानक से ठंडी क्यों पड़ गयी? क्या पर्दे के पीछे कोई खेल हो गया जो मामला ठंडे बस्ते में चला गया?
UP Police: उमेश पाल की हत्या हुए बीस दिन से ज्यादा बीत चुके हैं, लेकिन अतीक के बेटे असद समेत उसकी गैंग के हार्डकोर शूटर अब तक पुलिस की पकड़ से दूर हैं। पुलिस अब तक उनका सुराग नहीं लगा पाई है। यह हालात तब है, जब सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस कांड के आरोपियों को मिट्टी में मिलाने का ऐलान सदन के भीतर किया था।
इस हत्याकांड में समय बीतने के साथ यह सवाल भी उठने लगे हैं कि क्या पुलिस के भीतर से कोई अतीक गैंग की मदद कर रहा है? क्या जानबूझकर स्थानीय पुलिस स्तर से इसमें देरी की जा रही है, ताकि मामला पूरी तरह से ठंडा पड़ जाये और आरोपी सरेंडर कर दें? उत्तर प्रदेश पुलिस का इतिहास देखें तो इन सवालों में कोई अतिशयोक्ति नजर नहीं आ रही है।
कानपुर का बिकरू कांड एक उदाहरण है। इसमें सामने आया था कि स्थानीय थाना विकास दुबे की मदद के लिए मुखबिरी से लेकर पुलिस कार्रवाई की सूचना उस तक पहुंचा रहा था। थानेदार विनय तिवारी और दारोगा केके शर्मा ने तो पूरी कार्रवाई की जानकारी विकास दुबे तक पहुंचाई थी। एसआईटी जांच में इन दोनों के अलावा छह अन्य पुलिसकर्मियों पर भी विकास की मदद के आरोप लगे थे।
विनय तिवारी और केके शर्मा को बर्खास्त कर दिया गया, लेकिन विकास की मदद करने वाले चार दारोगा अजरह इशरत, कुंवर पाल सिंह, विश्वनाथ मिश्रा, अवनीश कुमार तथा दो सिपाही अभिषेक कुमार एवं राजीव कुमार को केवल न्यूनतम वेतनमान की सजा देकर छोड़ दिया गया। अब बिकरू कांड के इतिहास के बाद उमेश पाल हत्याकांड में इस तरह के सवाल उठने लगे हैं।
आखिर क्यों नहीं पुलिस और प्रयागराज एसटीएफ की टीम अतीक के बेटे असद, कुख्यात गुड्डू मुस्लिम, मोहम्मद गुलाम, साबिर और अरमान तक पहुंच पा रही है? क्या इन शूटरों को सेफ पैसेज देने के लिये देर की जा रही है? क्या यूपी पुलिस का खुफियातंत्र पूरी तरह से नकारा हो चुका है? क्या अतीक का नेटवर्क इतना मजबूत है कि पुलिस भी उसे नहीं भेद पा रही है?
ऐसे कई सवाल हैं, जिनके जवाब नही मिल पा रहे हैं। बरेली जेल में जिस तरीके से अतीक के भाई असरफ को सुविधा दी जा रही थी, उससे भी साबित होता है कि अपराधियों का नेटवर्क सिस्टम में कितना मजबूत है। इसके पहले चित्रकूट जेल में मुख्तार के लड़के अब्बास अंसारी को जिस तरह की सुविधा दी जा रही थी, उससे भी उत्तर प्रदेश का जेल प्रशासन संदेह के घेरे में है।
प्रयागराज पुलिस ने उमेश हत्याकांड में शामिल कार चालक अरबाज और शूटर विजय चौधरी उर्फ उस्मान का एनकाउंटर करके वाहवाही लूटी थी, लेकिन अब इनामी शूटरों की फरारी लोगों के मन में संदेश पैदा कर रही है, वह भी तब जब इस तरह की खबरें आ रही हैं कि अतीक अहमदाबाद जेल से प्रयागराज के किसी सफेदपोश नेता के संपर्क में है।
यह स्थिति तब है, जब समूचे सिस्टम को पता है कि योगी आदित्यनाथ और उनकी सरकार बीते छह सालों से अपराधियों को लेकर जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाती रही है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि कौन सफेदपोश नेता या पुलिस अधिकारी है, जो अतीक और उसके शूटरों की मदद कर रहा है? अतीक ने प्रयागराज से जुड़े किस नेता को गुजरात की जेल से फोन करके मदद मांगी थी?
गौरतलब है कि इसके पहले समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव भी अतीक अहमद के परिवार के पक्ष में बयान देकर पुलिस पर दबाव बनाते नजर आये थे। राम गोपाल ने कहा था कि एक दो दिन में अतीक के बेटे की हत्या हो सकती है। घटना के असली आरोपी नहीं मिल रहे हैं, ऊपर से दबाव है, जो पकड़ में आयेगा उसको मार देंगे।
इस बयान के बाद पुलिस और प्रशासनिक कार्रवाई ठंडी पड़ गई। उमेश पाल की हत्या के बाद अतीक के करीबियों एवं मददगारों के मकान पर बुलडोजर चला, जिसमें गन हाऊस संचालक सफदर अली, मोहम्मद जफर, राजू हत्याकांड के आरोपी अब्दुल कवि का मकान शामिल है। इस हत्याकांड में शामिल शूटरों के घर पर भी बुलडोजर चलना था।
पुलिस और प्रशासन ने होली के नाम पर बुलडोजर को रोक दिया। अधिकारियों ने कहा था कि होली बाद गुड्डू मुस्लिम और अन्य आरोपियों के घरों पर बुलडोजर चलेगा, लेकिन होली बीत जाने के बाद भी बुलडोजर शांत है। माना जा रहा है कि सफेदपोश नेता के पास अतीक का फोन आने के बाद इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है।
उमेश पाल हत्याकांड में शूटरों का पुलिस के हाथ नहीं लगना सरकार की छवि पर बट्टा लगा रही है। पुलिस का अतीक के शूटरों तक नहीं पहुंच पाना उसके खुफियातंत्र पर भी सवाल है, जो दूसरे मामलों में अपराधियों के अपराध करने की सूचना पहले दे देता है, और पुलिस घेरेबंदी कर लेती है, जवाबी कार्रवाई में एक मारा जाता है और एक अंधेरे का लाभ उठाकर भाग जाता है।
उमेश हत्याकांड में तो अतीक अहमद के बेटे समेत पांचों हार्डकोर अपराधी दिनदहाड़े भाग निकले हैं। पुलिस ने पांचों अपराधियों पर पांच-पांच लाख का ईनाम रखकर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली है। अब देखना है कि पुलिस का नेटवर्क इन शूटरों की तलाश कर पाता है या अतीक अहमद का नेटवर्क उन्हें बचा लेता है।
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