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भारतीय मुस्लिम महिलाओं के लिए मुल्ला मौलवी से ज्यादा दमनकारी है सेकुलर-लिबरल गैंग की सोच

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निश्चय ही भारतीय मुसलमानों के लिए यह दुर्भाग्यपूर्ण समय है। ठीक ऐसे समय में जब जिस ईरान ने सबसे पहले मुस्लिम महिलाओं के लिए हिजाब को अनिवार्य किया था, वहां इसको उतारकर फेंका जा रहा है तब भारत के सुप्रीम कोर्ट में इस बात पर बहस हो रही है कि मजहबी आजादी के नाम पर कैसे इसे मुस्लिम लड़कियों और महिलाओं के सिर से उतरने न दिया जाए। हिजाब के पक्ष में बहस भी वो लोग कर रहे हैं जो अपने आप को भारत का सबसे सेकुलर और लिबरल सोच वाला बताते हैं।

hijab

ईरान में गुलामी तो भारत में आजादी कैसे हो गया हिजाब?
हिजाब की अनिवार्यता सबसे पहले ईरान ने लागू की थी। शिया इमाम अयातोल्लाह खोमैनी ने 1979 में ईरान के सेकुलर शासन के खिलाफ जो विद्रोह किया था, उसे इस्लामिक क्रांति का नाम दिया गया था। इमाम अयातोल्लाह खोमैनी के नेतृत्व में शाह पहलवी का 'सेकुलर शासन' खत्म कर दिया गया था। शाह पहलवी के बाद खोमैनी ईरान के नये सुप्रीम लीडर घोषित हुए। ईरान के शासन में इस फेरबदल को ही ईरान की क्रांति कहा जाता है। इस क्रांति के बाद खोमैनी ने ईरान में इस्लामिक कानून व्यवस्था लागू कर दी जिसमें महिलाओं के लिए 'हिजाब' अनिवार्य कर दिया था, जिसका अब चालीस साल बाद ईरान में विरोध हो रहा है।

बीते कुछ सालों से ईरान में नौजवान लड़कियां लगातार इसके खिलाफ कोई न कोई पहल करती रहती हैं और चर्चा में भी आती है। उनका तर्क है होता है कि उनके शरीर पर किसी मौलाना का हुक्म नहीं चलेगा इसलिए वो तय करेंगी कि उन्हें सिर ढंकना है या खुला रखना है। पिछले हफ्ते ईरान की राजधानी तेहरान में एक 22 साल की लड़की महशा अमीनी की मौत हो गयी थी। असल में ईरान में यह देखने के लिए कि लड़कियां या महिलाएं ठीक से हिजाब पहन रही हैं या नहीं, उसके लिए मोरल पुलिस होती है। तेहरान में इसी मोरल पुलिस से महशा अमीनी की झड़प हो गयी थी। मोरल पुलिस का कहना था कि महशा अमीनी ने हिजाब ठीक से नहीं पहना था। इसीलिए उसे मारा पीटा गया। इस अफरा तफरी के माहौल में महशा को हार्ट अटैक आ गया। उसे अस्पताल ले जाया गया जहां वह कोमा में चली गयी और उसकी मौत हो गयी।

महशा अमीनी की मौत के बाद एक बार फिर ईरान में हिजाब की अनिवार्यता के खिलाफ प्रदर्शन शुरु हो गये। महशा अमीनी के गृह नगर सक्केज से लेकर तेहरान तक हिजाब की तानाशाही के खिलाफ प्रदर्शन चल रहे हैं और इसकी अनिवार्यता को खत्म करने की मांग हो रही है। लेकिन ठीक इसी समय में भारत में क्या हो रहा है? भारत के सुप्रीम कोर्ट में देश के जाने माने सेकुलर लिबरल वकील मसलन कपिल सिब्बल, प्रशांत भूषण, दुष्यंत दवे, संजय पारेख जैसे लोग सुप्रीम कोर्ट में दलीलें दे रहे हैं कि मुस्लिम लड़कियों के सिर से हिजाब न उतारा जाए। यह उनका धार्मिक अधिकार है।

हिजाब क्या होता है?
सबसे पहले ये समझने की जरूरत है कि हिजाब होता क्या है? असल में हिजाब शब्द कुरान में आता है जिसका उल्लेख पर्दा या ओट के संबंध में होता है। इसलिए इस्लामिक जानकार इसका अलग अलग अर्थ लेते हैं। कुछ तो इसका अर्थ आंखों की शर्म ओ हया तक भी करते हैं जबकि अधिकांश इस्लामिक जानकार इसे औरत व मर्द के बीच पर्दे के रूप में देखते हैं।

स्वयं सऊदी अरब में हिजाब का वैसा चलन नहीं है जैसी शुरुआत ईरान में खोमैनी की इस्लामिक क्रांति के बाद हुई। सिर को कपड़े से बांधकर अपने सारे बालों को एक खास तरह से छिपाने का चलन इंडोनेशिया से शुरु हुआ। ऐसा संभवत: इसलिए हुआ क्योंकि इंडोनेशिया में बुर्का का प्रचलन नहीं रहा कभी। उनकी जो अपनी पारंपरिक भेषभूषा है उसमें उनको यह इस्लामिक निशानी के तौर पर उपयुक्त लगा। 1979 में खोमैनी ने भी महिलाओं द्वारा सिर को कपड़े से एक खास तरीके से बांधने को हिजाब कहा। इसी का चलन इक्कीसवीं सदी में भारत में बहुत तेजी से हुआ। आज से पंद्रह बीस साल पहले तक भारत में इस्लामिक परिधान के रूप में हिजाब कोई चलन नहीं था। लेकिन इधर के एक डेढ़ दशक में मुस्लिम लड़कियों के लिए हिजाब का चलन ही नहीं बढ़ा लेकिन एक अभियान सा बन गया।

इसका एक कारण ईरान की इस्लामिक क्रांति थी तो दूसरा कारण भारत में हदीसों (मुसलमानों के पैगंबर के जीवन से जुड़ी बातों) का प्रचार भी था। आज का जो इस्लाम भारत में दिख रहा है वह हदीसों के प्रचार के कारण है। दो दशक पहले तक आम मुसलमानों में हदीसों का इतना प्रचार नहीं था इसलिए इस्लाम में पहनावा, खान पान, जीवनशैली, दाढी टोपी का वैसा जोर नहीं होता था जैसा आज हो गया है। भारत में मुगल काल में भी इस्लामिक पहनावों मसलन, हिजाब, बुर्का, अबया को लेकर वैसा दुराग्रह नहीं था जैसा इक्कीसवीं सदी में बढ़ा है।

कोर्ट में हिजाब का हिसाब किताब
कर्नाटक में कट्टरपंथी इस्लामिक संस्था पॉपुलर फ्रंट आफ इंडिया से जुड़े छात्र संगठन कैम्पस फ्रंट ऑफ इंडिया से जुड़ी मुस्लिम छात्राओं ने इसी साल जनवरी में यह कहकर कर्नाटक में विवाद पैदा कर दिया था कि अगर स्कूलों में उन्हें हिजाब पहनने से रोका जाएगा तो वो स्कूल नहीं आयेगीं। मामला इतना बढा कि कोर्ट चला गया और 10 फरवरी 2022 को कर्नाटक हाईकोर्ट ने लंबी सुनवाई के बाद हिजाब को इस्लाम का अनिवार्य अंग मानने से इंकार कर दिया और स्कूलों में हिजाब पहनने पर अंतरिम रोक लगा दी। इस पूरी बहस के दौरान मुस्लिम पक्षकार यह साबित ही नहीं कर पाये कि सिर को एक खास अंदाज में बांधने को ही हिजाब कहा जाता है जो इस्लाम का हिस्सा है।

कर्नाटक हाईकोर्ट के इसी फैसले को चुनौती देते हुए कैम्पस फ्रंट ऑफ इंडिया की उन्हीं छात्राओं की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल हुईं जिन्होंने कर्नाटक में हिजाब पर हंगामा किया था। स्वाभाविक है सामने भले कोई दिखे लेकिन पीछे चरमपंथी इस्लामिक संगठन पॉपुलर फ्रंट आफ इंडिया सक्रिय है। उसने सुप्रीम कोर्ट के सबसे मंहगे वकीलों को इसके लिए नियुक्त किया है जिसमें सबसे प्रमुख कपिल सिब्बल हैं। कपिल सिब्बल पहले भी केरल की हादिया वाले केस में पॉपुलर फ्रंट आफ इंडिया की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में खड़े हो चुके हैं।

इस बार कपिल सिब्बल के साथ राजीव धवन, प्रशांत भूषण, दुष्यंत दवे, कोलिन गोंसाल्विस, मीनाक्षी अरोड़ा, संजय पारिख जैसे मंहगे वकीलों की फौज है। 5 सितंबर से सुप्रीम कोर्ट के दो जजो की बेंच हिजाब मामले पर नियमित सुनवाई कर रहा है। हिजाब के पक्ष में खड़े कथित सेकुलर और लिबरल वकील मजहबी आजादी के नाम पर लगातार मुस्लिम लड़कियों की गुलामी बरकरार रखने के पक्ष में तर्क दे रहे हैं। इनकी बहसों में सारी दलीलें बस इतनी है कि मुस्लिम महिलाएं और लड़कियां मर्दवादी इस्लामिक व्यवस्था में बनी रहनी चाहिए। स्वतंत्रता, आत्म निर्णय, आत्म सम्मान और स्वाभिमान जैसे शब्द महिलाओं के लिए इस्लाम में हराम हैं इसलिए भारत के कानून और संविधान को भी मुस्लिम महिलाओं के लिए ऐसे प्रयास नहीं करने चाहिए।

ये सेकुलर लिबरल वकील भी सुप्रीम कोर्ट में उसी अकीदे, जन्नत, जहन्नुम और 'संविधान से मिली धार्मिक आजादी' वाले कुतर्क कर रहे हैं जैसा कोई सड़कछाप मुल्ला अपनी तकरीरों में करता है। मानवीय मूल्य, महिला की गरिमा, उसका अपना आत्मनिर्णय का अधिकार जैसी सारी सेकुलर लिबरल बातें इन लोगों की बहस से गायब है। अगर कुछ मौजूद है तो सिर्फ यह कि हिजाब की वही मर्दवादी इस्लामिक व्यवस्था भारत में बनाकर रखी जाए जिसका ईरान में मुस्लिम लड़कियों द्वारा तीव्र विरोध हो रहा है।

बहरहाल, अभी सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई जारी रहेगी। अब कर्नाटक सरकार के वकील इस मामले में अपना पक्ष रखेंगे। सुप्रीम कोर्ट सारी सुनवाई पूरी हो जाने के बाद कोई फैसला देगा या फिर यह मामला बड़ी बेंच को सौंप दिया जाएगा, यह कहना मुश्किल है। लेकिन इतना तो स्पष्ट हो गया है कि हिंदू मुस्लिम विभाजन की राजनीति करनेवाली सेकुलर लिबरल बिरादरी हिजाब मामले में एक बार फिर एक्सपोज हो रही है। ये कथित प्रगतिशील लोग अपने क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थ के लिए मुस्लिम बच्चियों को मध्ययुगीन व्यवस्था से बाहर निकलकर समय के साथ नहीं चलने देना चाहते। मुस्लिम लड़कियों और महिलाओं को लेकर इनकी सोच मुल्ला मौलवी की मर्दवादी व्यवस्था से ज्यादा कट्टर और दमनकारी है। भारत की मुस्लिम लड़कियों और महिलाओं का यही दुर्भाग्य है।

(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)

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English summary
thinking of liberal gang oppressive for Indian Muslim women than Maulvi
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