Hindenburg and Adani: क्या अडानी के व्यापार पर सवाल, भारत पर हमला है?
हिंडनबर्ग ने भारत की बहुराष्ट्रीय कंपनी अडानी ग्रुप पर एक रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट के बाद अडानी ग्रुप के शेयरों में तेजी से गिरावट आयी है। ऐसे में यह कहना कि अडानी पर सवाल देश पर हमला है, कितना सही होगा?
अडानी समूह पर हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के बारे में सबसे बुनियादी बात यह समझनी चाहिए कि यह दो देशों नहीं बल्कि दो कंपनियों की कहानी है। एक ओर अडानी समूह है जिस पर शेयर मैनिपुलेशन का आरोप है तो दूसरी ओर वह कंपनी हिंडनबर्ग है जो स्वयं स्टॉक मार्केट में शार्ट सेलर का कारोबार करती है। शार्ट सेलिंग वह कारोबार होता है जिसमें शामिल लोग एवं कंपनियां किसी कंपनी के स्टॉक की कीमतें घटने पर फायदे में रहती हैं।
अडानी समूह पर हिंडनबर्ग के सवाल अपनी जगह हैं लेकिन सवाल तो उस हिंडनबर्ग पर भी उठता है जिसने अडानी समूह के खिलाफ अपनी रिपोर्ट जारी की है। जो कंपनी खुद किसी अन्य कंपनी के शेयर को कमजोर करने का कारोबार करती हो, उसकी रिपोर्ट पर किसी आम निवेशक को कितना भरोसा करना चाहिए? अमेरिका में उसके खिलाफ शार्ट सेलिंग के जरिए धोखाधड़ी के आरोपों की जांच चल रही है। फिर भी हिंडनबर्ग की रिपोर्ट का असर हुआ और दुनिया के तीसरे नंबर के धनी बन चुके गौतम अडानी शुक्रवार को 21 वें नंबर पर पहुंच गये। अडानी समूह का बाजार पूंजी लगभग दस लाख करोड़ कम हो चुका है।
जैसा कि हिंडनबर्ग ने स्वयं अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि अडानी ग्रुप के शेयर के दाम 85 प्रतिशत तक नीचे आयेंगे, तो आशंका इस बात की है कि अभी अडानी की संपत्ति और नीचे आयेगी। इन सबके बीच अडानी समूह की ओर से उनके सीएफओ जुगशिंदर सिंह ने कहा कि यह भारत के खिलाफ हमला है। जुगशिंदर ने हिंडनबर्ग के हमले की तुलना जलियांवाला बाग की गोलीबारी से करते हुए कहा कि वहां भी एक विदेशी ने हमारे ऊपर हमला बोला था, यहां भी एक विदेशी हमारे ऊपर हमला बोल रहा है।
भारत का कोई व्यापारिक समूह अपने आपको भारत भक्त कहे तो इसमें कोई गलत बात नहीं है। लेकिन अडानी समूह के सीएफओ का यह कहना कि अडानी पर हमला भारत पर हमला है, कहीं से उचित नहीं है। सात साल पहले शुरु हुआ हिंडनबर्ग भले ही एक स्टॉक मार्केट मैनुपुलेटर हो लेकिन यह जानते हुए भी उसकी रपटों पर दुनियाभर में भरोसा किया जाता है। वो जब किसी कंपनी पर रिसर्च करते हैं, तो वह इतना व्यापक होता है कि उस पर दुनियाभर के निवेशक भरोसा करते हैं। यही कारण है कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद अडानी समूह को शेयर मार्केट में तगड़ा झटका लगा है।
अडानी समूह पर दो साल की रिसर्च के बाद 24 जनवरी को हिंडनबर्ग ने जो रिपोर्ट जारी की उसमें साफ तौर पर कहा कि कैसे दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा अमीर कॉरपोरेट जगत की सबसे बड़ी ठगी कर रहा है। हिंडनबर्ग ने अडानी समूह पर जो भी आरोप लगाये उसके लिए उसने प्रमाण भी प्रस्तुत किये। सबसे बड़ा आरोप था कि शेयर मार्केट में अडानी समूह अपने शेयर को मैनिपुलेट करके कीमतें बढा रहा है। इसकी बदौलत मात्र तीन साल में उसका बाजार मूल्य 100 अरब डॉलर बढ गया। अडानी समूह की सात प्रमुख कंपनियों के शेयर में 819 प्रतिशत का उछाल आया जो अप्रत्याशित है।
हिंडनबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि अडानी समूह ने शेयर मार्केट में शेल कंपनियों के जरिए यह अप्रत्याशित वृद्धि दर्ज की है। इनमें एक कंपनी का नाम इलारा कैपिटल का है जो मारिशस में एक शेल कंपनी के रूप में अडानी परिवार की ही एक कंपनी के रूप में दर्ज है। इस कंपनी के पास अडानी ग्रुप के 3 बिलियन डॉलर के शेयर हैं। यह कंपनी अडानी ग्रुप के शेयर को खरीदकर शेयर मार्केट में अडानी समूह के शेयर का अपमार्केट बनाये रखने का काम करती है। इसके मालिक गौतम अडानी के ही भाई विनोद अडानी हैं।
हिंडनबर्ग का कहना है कि इन शेल कंपनियों के जरिए ही अडानी परिवार खुद अपनी कंपनियों के शेयर खरीदता है ताकि शेयर बाजार में अडानी समूह का बाजार मूल्य उच्च स्तर पर बना रहे। ऐसा होने पर जहां एक ओर आम निवेशक भी अडानी समूह के स्टॉक खरीदकर रखता है वहीं दूसरी ओर इसी अपमार्केट और बाजार पूंजीकरण के बल पर अडानी समूह नये नये कर्जे लेता है। इसी प्रक्रिया से अडानी के बाजार मूल्य में 100 अरब डॉलर का अप्रत्याशित उछाल आया है जिसे हिंडनबर्ग कॉरपोरेट वर्ल्ड की सबसे बड़ी ठगी बता रहा है।
हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद अडानी समूह ने 413 पन्नों की रिपोर्ट के जरिए हिंडनबर्ग को जवाब भी दिया लेकिन उन सवालों का स्पष्ट जवाब नहीं दिया जो हिंडनबर्ग ने उठाये थे। उनके सवालों का जवाब देने की बजाय अडानी समूह ने राष्ट्रवाद का कार्ड खेलकर सहानुभूति लेने की कोशिश की। इस पर पलटवार करते हुए हिंडनबर्ग ने दोबारा 29 जनवरी को एक रिपोर्ट जारी की और कहा कि "राष्ट्रवाद किसी फ्रॉड को ढकने का आवरण नहीं हो सकता।"
अडानी समूह के जवाब पर हिंडनबर्ग ने कहा कि "अपने जवाब में (अडानी समूह ने) संभावित मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश की है और हमारे सवालों का जवाब देने की बजाय राष्ट्रवाद को हवा दी है। उनके जवाब में दावा किया गया है कि हमारी रिपोर्ट "भारत पर सुनियोजित हमला" है। संक्षेप में, अडानी समूह ने अपने जबरदस्त उत्थान और अपने अध्यक्ष, गौतम अडानी की संपत्ति को भारत की सफलता के साथ मिलाने का प्रयास किया है।"
निश्चित रूप से किसी कंपनी की सफलता को भारत की सफलता नहीं कहा जा सकता। कम से कम हिंडनबर्ग की यह बात सोलह आने सच है। अमेरिका जैसे देश में जो अपने बड़े कॉरपोरेशन के जरिए दुनियाभर में राज करता है, वहां भी ऐसी धारणा नहीं पाली जाती कि किसी कंपनी की सफलता अमेरिका की सफलता है। भारत जैसे देश में जिसकी जनसंख्या 140 करोड़ है और आय की भीषण असमानता मौजूद है वहां किसी एक कंपनी या व्यक्ति की सफलता और असफलता को भारत की सफलता या असफलता से जोड़ना गलत है।
क्या अडानी समूह ने शेयर मार्केट में कथित तौर पर जो मैनिपुलेशन किया उसमें पूरे भारत का कोई हाथ है? क्या किसी राष्ट्र को अपने गौरव की खातिर किसी कंपनी के फ्रॉड और मैनिपुलेशन का बचाव करना पड़ेगा? अगर अडानी समूह में इतनी ही राष्ट्रभक्ति है तो फिर शेयर बाजार में अपने ही परिवार की शेल कंपनियों के माध्यम से मैनिपुलेशन के जरिए देश के आम निवेशकों को क्यों धोखे में रखा? क्या यह अडानी समूह की देशभक्ति कही जाएगी?
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अडानी का कारोबार और उस पर हिंडनबर्ग के सवाल दोनों ही शुद्ध व्यावसायिक मसले हैं। इन पर सवाल राष्ट्र पर हमले की तरह प्रचारित नहीं करना चाहिए। संयोग से सरकार ने भी इसको इस रूप में देखने की बजाय अडानी समूह पर निगरानी बढा दी है। सेबी ने अडानी समूह की जांच के लिए एक कमेटी बना दी है और एलआईसी तथा एसबीआई ने भी अपने निवेश को सुरक्षित रखने के उपाय शुरु कर दिये हैं।
लेकिन इन सबसे बड़ा सवाल हमारे लिए दूसरा है। क्या अडानी इज इंडिया और इंडिया इज अडानी वाली सोच को बढावा देना चाहिए? किसी एक कंपनी की ग्रोथ को इंडिया की ग्रोथ बताना चाहिए? अडानी हों या कोई और, अगर किसी भी कंपनी को लेकर यह सोच विकसित की गयी तो एक के डूबने पर बहुत से लोगों के डूबने का खतरा पैदा हो जाएगा। वह भारत के लिए ज्यादा बड़ा संकट होगा।
(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)