शत्रु की नई मित्रता में सामाजिक न्याय का योगदान
नई दिल्ली। जो होना ही था वह आखिर हो गया। अटकलें बहुत पहले खत्म हो चुकी थीं जब 6 अप्रैल का ऐलान कर दिया गया था। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में लंबे समय से बगावती तेवर अपनाए रहने वाले बिहारी बाबू के नाम से विख्यात शत्रुघन सिन्हा ने अपनी पार्टी को उसके स्थापना दिवस पर अलविदा कह कर कांग्रेस के साथ नई मित्रता कर ली। लेकिन इसमें यह जरूर हुआ कि अंत-अंत तक भाजपा ने उन्हें निकाला नहीं जैसा कि खुद शत्रुघन सिन्हा अक्सर कहा करते थे कि मैं पार्टी नहीं छोड़ने वाला, पार्टी चाहे तो उन्हें निकाल सकती है। अंततः उनके धैर्य की सीमा समाप्त हो गई और उन्होंने भाजपा से नाता तोड़कर कांग्रेस के साथ नाता जोड़ लिया।
इस नई मित्रता में उस सामाजिक न्याय का उल्लेख भी उन्होंने सार्वजनिक रूप से जिक्र किया जिसके तहत बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता लालू प्रसाद यादव ने उन्हें कांग्रेस में शामिल होने की सलाह दी। नेताओं का पार्टियां छोड़ना और दूसरी पार्टियों में जाना राजनीति में कोई नई बात नहीं रही है। चुनावों के समय तो इसे आम बात माना जाता है। इतना ही नहीं, बहुत सारे नेताओं के बारे में यह भी कहा जा सकता है कि उनके लिए किसी भी तरह से चुनाव जीतना और सत्ता में पहुंचना ही अभीष्ट होता है। इस तरह बहुतों के बारे में यह पता भी नहीं चल पाता कि आखिर वे रातों रात कैसे एक दल से दूसरे दल में चले जाते हैं।
इसके कुछ हालिया उदाहरण भी देखे जा सकते हैं। इसमें सबसे ताजा उदाहरण उत्तर प्रदेश से निषाद पार्टी के नेता प्रवीण निषाद का देखा जा सकता है। वह अभी करीब एक साल पहले ही सपा के टिकट पर चुनाव लड़कर जीते थे। हाल ही में उनकी पार्टी सपा-बसपा-रालोद गठबंधन का हिस्सा भी बनी थी। लेकिन फिर एक दिन अचानक पता चला कि वह गठबंधन से अलग हो गए और नए गठबंधन में शामिल हो गए। ऐसे कितने ही उदाहरण चुनाव के दौरान देखे जाते हैं।
शत्रुघन सिन्हा के बारे में स्थितियां काफी भिन्न कही जा सकती हैं। जैसा कि उन्होंने खुद ही कांग्रेस में शामिल होने के दौरान अपने वक्तव्य में विस्तार से घटनाक्रमों का जिक्र किया। उससे यह पता चलता है कि किसी नेता का आना-जाना केवल आयाराम-गयाराम मात्र ही नहीं होता। उसमें तमाम घटनाक्रमों, चिंतन और परिस्थितियों का भी बड़ा हाथ होता है। उन्होंने नोटबंदी से लेकर जीएसटी तक और युवाओं से लेकर किसानों तक का जिक्र किया, नानाजी देशमुख से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, जसवंत सिंह, यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और सुमित्रा महाजन तक का जिक्र तो किया ही लालू यादव का भी उल्लेख किया जिससे यह पता चलता है कि वह कुछ छिपाना नहीं चाहते अथवा छिपाने के लिए उनके पास कुछ नहीं है। ऐसा करके शायद वह यह साफ करना चाहते हों कि उनके लिए पारदर्शिता का कितना मतलब है जिसका राजनीति और आज के राजनीतिज्ञों में अब बहुत अभाव दिखने लगा है और जिसकी आज के वक्त में बहुत जरूरत है।
भाजपा का साथ छोड़ने के कारणों के बारे में बहुत समझने की फिलहाल जरूरत इसलिए नहीं लगती क्योंकि यह एक तरह से तय हो चुका था। शत्रुघन सिन्हा ने जिस तरह का रुख अख्तियार कर रखा था उससे बहुत पहले से यह साफ था कि भाजपा के साथ उनका साथ अपना कुछ दिन की ही बात रह गई है। इस पर अंतिम मुहर लग गई थी जब उनकी लोकसभा सीट पर भाजपा ने रविशंकर प्रसाद को टिकट दे दिया था। सवाल इस पर अहम है कि आखिर लालू प्रसाद यादव ने उन्हें कांग्रेस में शामिल होने की सलाह क्यों दी होगी।
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लालू प्रसाद यादव और शत्रुघन सिन्हा के बारे में एक बात जगजाहिर रही है कि भले ही दोनों नेता अलग-अलग और धुर विरोधी पार्टियों में रहे हों, लेकिन दोनों के बीच संबंध बहुत गहरे रहे हैं। खुद शत्रुघन सिन्हा ने इसे कभी छिपाया नहीं बल्कि अक्सर इसका प्रदर्शन किया। जब भी इसको लेकर बातें की गईं, उन्होंने स्वीकार भी कि अलग पार्टी में रहना एक बात है और संबंध अलग बात है। इससे किसी को भी यह समझ बनाने में आसानी हो सकती है कि शत्रुघन सिन्हा कुछ अलग किस्म के नेता रहे हैं। लेकिन यहां यह बात भी समझने की हो सकती है कि आखिर लालू यादव ने उन्हें अपने दल में शामिल होने के लिए क्यों नहीं कहा।
लालू यादव के बारे में दो बातें अक्सर राजनीतिक हलकों में कही जाती हैं। पहली यह कि उनके बारे में कोई कितनी भी आलोचना कर सकता है, लेकिन सांप्रदायिकता के खिलाफ मजबूती से खड़ा होने और बड़ा से बड़ा जोखिम उठाने वाले वह एक मात्र नेता रहे हैं शायद उसी की कीमत उन्हें जेल में रह कर चुकानी पड़ रही है। दूसरी ओर यह भी कहा जाता है कि लालू का झुकाव कांग्रेस की ओर हमेशा से रहा है। वह अक्सर कांग्रेस के पक्ष में पहले भी खड़े होते पाए गए हैं।
संभव है वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में उनके मन में यह बात हो कि फिलहाल राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस को मजबूती प्रदान किए जाने की जरूरत हो, इसलिए उन्होंने शत्रुघन सिन्हा को कांग्रेस में जाने की सलाह दी हो। जाहिर है भले ही शत्रुघन बिहार की सीट से सांसद हों, लेकिन उनकी राजनीतिक हैसियत एक राष्ट्रीय नेता जैसी है। संभव है इस सोच के तहत ही लालू यादव ने यह पाया हो कि शत्रुघन के लिए राजद की अपेक्षा कांग्रेस अच्छी जगह होगी। बहरहाल, अब देखना होगा कि यह नई मित्रता कैसी रहती है।
(इस लेख में व्यक्त विचार, लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में दी गई किसी भी सूचना की तथ्यात्मकता, सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं.)
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