Importance of 26/11: 26 नवंबर को घटी चौंकाने वाली घटनाओं की वजह से महत्वपूर्ण हो जाती है यह तारीख
भारतीय इतिहास में 26 नवंबर की तारीख बेहद अहम हो गई है। ठीक 73 साल पहले भारतीय संविधान सभा ने शासन की अपनी व्यवस्था के लिए अपने संविधान को स्वीकार करते हुए राष्ट्र को समर्पित किया था।
ठीक चौदह साल पहले इसी दिन भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई को खून से नहलाने का पाक समर्थित खूनी खेल खेला गया तो भारतीय राजनीति में नई उम्मीद का सपना दिखाते हुए दिल्ली के संसद मार्ग पर नई तरह के दल- आम आदमी पार्टी का गठन हुआ था।
26 नवंबर के दिन संविधान से जुड़ी स्मृतियां जहां गौरवमयी हैं, वहीं मुंबई हमला मानवता को रूला और हिला देने वाली स्मृति का आख्यान है।
आम आदमी पार्टी के गठन को भी एक तरह से सकारात्मक ऐतिहासिक घटना के तौर पर ही देखा गया था। लेकिन क्या वह उन उद्देश्यों को हासिल करने में सफल रही, उसने उन मानवीय मूल्यों को आत्मसात किया, जिसका वादा किया था? पार्टी की एक दशक की इस यात्रा में ऐसे सवाल जरूर पूछे जाएंगे और उनके हिसाब से भी इस पार्टी की विकास यात्रा का मूल्यांकन होगा।
26 नवंबर की तारीख के लिहाज से देखें तो आम आदमी पार्टी का गठन और मुंबई हमला हिला देने वाली घटना है। मुंबई हमले ने देश को सचेत किया कि उसे और अधिक चौकन्ना रहने की जरूरत है तो आम आदमी पार्टी की हालिया सफलताएं भी चौंकाऊं ही हैं। ये सफलताएं पारंपरिक राजनीतिक दलों को चेता रही हैं कि उनकी ही पिच पर उनके ही हथियारों से उन्हें मात देने वाला आ गया है, जो उनके नेतृत्व की तुलना में कहीं ज्यादा चालाक है, लचकदार है और रंगबदलू भी।
मुंबई हमला भारतीय इतिहास की ऐसी लोमहर्षक घटना है, जिससे मानवता कांप उठी थी। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, इस हमले में 166 मासूम लोगों की मौत हुई थी, जबकि तीन सौ से कुछ ज्यादा लोग घायल हुए थे। उनमें से कई पूरी जिंदगी के लिए अपंग भी हो गए।
सबसे दिलचस्प यह रहा कि इस हमले के दौरान एक सिपाही की जांबाजी से गिरफ्तार पाकिस्तानी आतंकी कसाब ने हाथों में कलावा बांध रखा था। इसके पीछे उसकी कोशिश अपनी धार्मिक पहचान को छुपाकर आतंकवाद के पारंपरिक इस्लामिक चेहरे पर हिंदू तिलक लगाना था।
इतिहास में 26/11 के नाम से कुख्यात मुंबई हमले पर तत्कालीन शासकों ने हिन्दू आतंकवाद का रंग चढ़ाने की कोशिश भी की थी। मुंबई हमले के दौरान गृहमंत्रालय में बतौर अवर सचिव तैनात रहे आरवीएस मणि ने एक किताब ही लिख डाली है, 'द मिथ ऑफ हिंदू टेरर'। यह किताब हिंदी में भी 'भगवा आतंक, एक षडयंत्र' नाम से भी प्रकाशित हो चुकी है। इस किताब में मणि हिंदू आतंकवाद को लेकर तत्कालीन शासन व्यवस्था द्वारा गढ़ी गई कहानियों की पोल खोल देते हैं।
गृह मंत्रालय के आतंरिक सुरक्षा विभाग में तब बतौर अवर सचिव तैनात रहे मणि इसके पीछे के कांग्रेसी षड्यंत्र की भी पोल खोलते है। मणि ने लिखा है कि अधिकारियों पर भगवा आतंकवाद को गढ़ने के लिए दबाव बनाया गया। हर आतंकी घटना को हिन्दू संगठन से जोड़ने का सिलसिला चल पड़ा। जांच एजेंसियों को इनकी जांच के लिए खड़ा किया गया। इन एजेंसियों ने राजनीतिक आकाओं के हिसाब से तथ्यों को तोड़ा- मरोड़ा। मौका-ए- वारदात पर जो सबूत मिले, उन्हें मिटाया गया।
आरवीएस मणि लिखते हैं कि आतंकी वारदात से लश्कर और सिमी जैसे संगठनों से जुड़े आंतकवादियों के नामों को हटा दिया गया। नए सबूत पी. चिदंबरम और दिग्विजय सिंह के इशारे पर गढ़े गए। इसके साथ हिन्दू संगठनों से जुड़े लोगों का नाम मालेगांव वारदात में जोड़ा गया।
धीरे-धीरे इसमें समझौता एक्सप्रेस विस्फोट, मक्का मस्जिद और अजमेर शरीफ दरगाह विस्फोट भी जुड़ते गये। फिर साध्वी प्रज्ञा, असीमानंद और कर्नल पुरोहित जैसे लोगों को आरोपी बनाया गया। उन्हें नजरबंद किया गया, फिर उनकी प्रताड़ना शुरू हुई। उन पर दबाव बनाया गया कि वे बम धमाकों की जिम्मेदारी कबूल करें। मगर वे लोग सरकार का झूठ मानने के लिए तैयार नहीं थे।
बहरहाल जांच में मुंबई हमले के षडयंत्र की हकीकत खुली। पाकिस्तान का नाम सामने आया। मुंबई धमाके ने पूरी दुनिया के सामने पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद की पोल खोल दी।
चूंकि भारतीय अर्थव्यस्था वैश्विक स्तर पर अपनी ताकत का अहसास कराने लगी थी, भारत आर्थिक ताकतों के लिए बड़े बाजार के रूप में उभर रहा था, इसलिए दुनियाभर की आर्थिक शक्तियां अक्सर भारत के आर्थिक केंद्र मुंबई में आती-जाती रहती थीं। जिनकी पसंदीदा जगह मुंबई का ताज पैलेस होटल था। जहां दुनियाभर की कारपोरेट हस्तियां जुटती थीं। इसलिए पूरी दुनिया की नजर में यह हमला आया और वह मानवता को शर्मसार करने वाली घटना के तौर पर स्थापित हो गई।
अब बात आम आदमी पार्टी की। अपनी स्थापना के दौरान इस पार्टी ने ऐसे सपने दिखाए थे, मानो अगर उसके हाथ शासन व्यवस्था की कमान मिली तो वह धरती को स्वर्ग ही बना देगी। लेकिन पता चला कि इस पार्टी के आका वक्त की तुलना में तेजी से बदलने वाले हैं। उन्हें उत्कृष्ट शासन व्यवस्था देने की बजाय प्रचार तंत्र के बेहतर इस्तेमाल की महारत हासिल है।
उन्होंने दिल्ली को मॉडल राज्य के तौर पर स्थापित करने का बहुत दावा किया है। लेकिन हकीकत यह है कि उनके शासन काल में दिल्ली की जनसंख्या जितनी तेजी से बढ़ी है, उसका सार्वजनिक परिवहन नहीं सुधरा। 2015 में जब आम आदमी पार्टी ने शासन व्यवस्था संभाली तो दिल्ली परिवहन निगम के बेड़े में 6700 से ज्यादा बसें थीं, जो इन सात सालों में घटकर करीब साढ़े तीन हजार ही रह गई है। उनमें से कई की सीटें टूट चुकी हैं। नई बसें न के बराबर सड़कों पर हैं।
दिल्ली में भ्रष्टाचार को रोकने का बड़ा दावा हुआ, लेकिन हकीकत यह है कि आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं पर आए दिन भ्रष्टाचार के बड़े आरोप लगते हैं। उसके एक मंत्री सत्येंद्र जैन हवाला मामले में तीस मई से ही गिरफ्तार हैं। तिहाड़ जेल से ही वे अपना मंत्रालय चला रहे हैं। अलग तरह की राजनीति करने वाली आम आदमी पार्टी भी बाकी दलों की तरह अपने नेता को ईमानदार बता रही है।
गांधीवाद की वैचारिकी पर काम करने का दावा करने वाली इस पार्टी की सरकार ने दिल्ली में शराब की घरेलू सप्लाई तक की योजना बना डाली। शराबखोरी को बढ़ावा देने का भी उस पर आरोप लगा। उसके खिलाफ जांच हुई और शराब नीति को उसे वापस लेना पड़ा।
बदलाव की राजनीति करने वाली इस पार्टी के एक पार्षद ताहिर पर दिल्ली में दंगे कराने का आरोप लगा। आरोप इतने संगीन हैं कि करीब डेढ़ साल से ताहिर जेल में बंद हैं और उनकी जमानत याचिकाएं खारिज-दर-खारिज हो रही हैं। आम आदमी पार्टी के एक विधायक अमानतुल्लाह खान पर आरोप लगा कि मुख्यमंत्री के सामने दिल्ली के तत्कालीन मुख्य सचिव अंशु प्रकाश की पिटाई की।
आम आदमी पार्टी पर दिल्ली नगर निगम चुनाव में खुलकर पैसे लेकर टिकट बांटने का आरोप तक लगा। उसके एक विधायक अखिलेश पति त्रिपाठी के पीए जेल की इसी आरोप में हवा खा रहे हैं तो एक और विधायक निशाने पर हैं। एक विधायक को तो टिकटार्थियों ने खुलेआम पीट दिया।
मुंबई हमला और आम आदमी पार्टी के गठन में सिर्फ तारीख एक होने की समानता ही नहीं है, बल्कि एक और समानता है। दोनों ने दुनिया को चौंकाया। मुंबई घटना ने दुनिया को चकित किया तो आम आदमी पार्टी ने दिल्ली को।
मुंबई हमले के बाद हिंदू आतंकवाद के कथित षडयंत्र के साथ पाक के नापाक आतंकी हाथ की पोल खुली तो आम आदमी पार्टी की बदलाव की राजनीति का भी खुलासा हो रहा है। दुनिया पाकिस्तान से सतर्क हो गई है। लेकिन आम आदमी पार्टी को लेकर ऐसी कोई बात नजर नहीं आती।
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