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2014 और 2019 का फर्क : ‘मोदी-मोदी’ की गूंज गायब, टाटा बोल रहे हैं बीजेपी के साथी भी

By प्रेम कुमार
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नई दिल्ली। नरेंद्र मोदी के लिए, बीजेपी और एनडीए के लिए 2014 और 2019 में बहुत बड़ा फर्क आ चुका है। तब मोदी को पीएम उम्मीदवार के तौर पर समर्थन करने और बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए में जुड़ने की होड़ थी। आज मोदी और बीजेपी से दूर होने और उन्हें छोड़ने की होड़ है। 2014 में 'मोदी-मोदी' का जयघोष ही एक नारा था, बदलाव की आहट थी। जनता की ओर से नरेंद्र मोदी के लिए जोश और उत्साह का प्रदर्शन था। मगर, अब 2019 में तस्वीर बिल्कुल बदली हुई दिख रही है। वह जोश, वह उत्साह बिल्कुल नज़र नहीं आता। हम सबसे पहले याद करते हैं 2014 का वह माहौल जब एक के बाद एक पार्टियां आकर बीजेपी से जुड़ रही थीं और एनडीए का कुनबा बढ़ता चला जा रहा था।

2014 और 2019 का फर्क : ‘मोदी-मोदी’ की गूंज गायब

2014 से पहले मोदी और बीजेपी के लिए बनी थी ज़बरदस्त फ़िजा
जनता पार्टी का BJP में विलय : 13 सितम्बर 2013 को नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित हुए थे। उसके बाद से ही बीजेपी और उनके सहयोगी दलों में एक जोश और उत्साह दिखने लगा था। 11 अगस्त 2013 को सुब्रह्मण्यम स्वामी ने अपनी जनता पार्टी का बीजेपी में विलय कर लिया। स्वामी खुलकर मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के अभियान में जुट गये।

तमिलनाडु में तीन और महाराष्ट्र में 5 सहयोगी मिले : तमिलनाडु में 1 जनवरी 2014 को एमडीएमके एनडीए में लौट आया। दो और स्थानीय पार्टियां डीएमडीके और पीएमके भी एनडीए के साथ आ मिलीं। जनवरी में ही महाराष्ट्र में स्वाभिमानी पक्ष और राष्ट्रीय समाज पक्ष एनडीए में शामिल हो गये। इस तरह महाराष्ट्र में एनडीए के साथ शिवसेना, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया, स्वाभिमानी पक्ष और राष्ट्रीय समाज पक्ष यानी पांच दल आ गये।

बिहार में कुशवाहा और पासवान का साथ मिला : बिहार में राष्ट्रीय लोक समता पार्टी ने एनडीए का दामन थाम लिया, तो 27 फरवरी 2014 को राम विलास पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी भी एनडीए का हिस्सा हो गयी।

सरकार बनने से पहले ही बाहर से समर्थन का एलान : नरेंद्र मोदी और बीजेपी के लिए माहौल ऐसा था कि चुनाव होने या सरकार बनने से पहले ही बाहर से समर्थन देने के एलान भी होने लगे। महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के नेता राज ठाकरे ऐसा एलान करने वाले पहले ऐसे नेता थे। ऐसे ही दलों में था हरियाणा का इंडियन नेशनल लोकदल जिसका नेतृत्व अभय सिंह चौटाला कर रहे थे। जेपी नारायण के नेतृत्व वाली लोकसत्ता पार्टी ने भी एनडीए को बाहर से समर्थन देने की घोषणा की।

10 साल बाद टीडीपी लौट आया एनडीए में : 2014 में मार्च और अप्रैल आते-आते कई और दल एनडीए के साथ आ जुड़े। इनमें 6 अप्रैल 2013 को टीडीपी का 10 साल बाद एनडीए के साथ आ जुड़ना महत्वपूर्ण घटना रही। 13 मार्च 2013 को ऑल इंडिया एनआर कांग्रेस भी एनडीए में शामिल हो गया। शिवसेना ने भी घोषणा की कि वह केंद्र में एनडीए के साथ रहेगा, भले ही विधानसभा चुनाव अलग-अलग लड़े। इसी तरह झारखण्ड का आजसू भी एनडीए में शामिल हो गया।

2019 में मोदी और बीजेपी के लिए बदल गया है माहौल
मोदी सरकार बनने के बाद से एनडीए छोड़ने वाले दलों की संख्या 14 है। यह संख्या अभी और बढ़ने वाली है। शिवसेना की ओर से एनडीए छोड़ने का एलान भर किया जाना बाकी है। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी भी एनडीए छोड़ने को तैयार बैठी है। माहौल बीजेपी को छोड़ने वाला अधिक है जबकि 2014 में बीजेपी से जुड़ने वाला माहौल था।

चुनाव वर्ष में धक्के पे धक्का : 2019 में आम चुनाव से ठीक पहले 21 जनवरी को गोरखा जन मुक्ति मोर्चा ने एनडीए का साथ छोड़ दिया। न सिर्फ उसने साथ छोड़ा, बल्कि ममता बनर्जी सरकार को समर्थन कर बैठा। दो हफ्ता पहले ही असम गण परिषद ने 7 जनवरी 2019 को एनडीए का साथ छोड़ने की घोषणा की थी। यानी साल की शुरुआत ही एनडीए का साथ छोड़ने की घटनाओं के साथ हुई।

पीडीपी, हम, टीडीपी, आरएलएसपी ने छोड़ा साथ : 2018 में जम्मू-कश्मीर में बीजेपी ने पीडीपी का साथ छोड़ दिया और इस तरह एनडीए से पीडीपी अलग हो गया। इस घटना को अगर छोड़ भी दें तो इससे पहले फरवरी 2018 में जीतन राम मांझी की हम पार्टी ने एनडीए का साथ छोड़ दिया जबकि 16 मार्च 2018 को तेलुगू देशम पार्टी भी एनडीए से अलग हो गया। 10 दिसम्बर 2018 को राष्ट्रीय लोक समता पार्टी ने भी एनडीए से अलग होने की घोषणा कर दी।

एक नज़र उन दलों पर डालें जो मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद और 2019 के आम चुनाव से दो साल पहले एनडीए छोड़कर चले गये

· महाराष्ट्र में स्वाभिमानी पक्ष (2017)
· मिजोरम में मारालैंड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एमडीएफ) (2017)
· केरल में रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी ऑफ केरल (बोल्शेविक) (2016)
· केरल जनपक्ष (2016)
· तमिलनाडु में देशीय मुरपोक्कु द्रविड़ कड़गम (2016)
· केरल कांग्रेस (नेशनलिस्ट) (2016)
· तमिलनाडु में मरुमलारची द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (2014)
· हरियाणा जनहित कांग्रेस (बीएल) (2014)

2014 और 2019 में ये बड़ा फर्क हर कोई महसूस कर रहा है कि बीजेपी अपने नेतृत्व वाले एनडीए में दलों को जोड़ नहीं पा रही है। जो साथ हैं वह विरोध की भाषा बोल रहे हैं। खुद बीजेपी नेताओं के भाषण में उम्मीद और भरोसा दिलाने वाली बातें गायब हैं। नरेंद्र मोदी 5 साल बाद भी कांग्रेस की सरकार को ही कोसते दिख रहे हैं। 5 साल पहले जो उनके भाषण से उम्मीद जगती थी वो बातें अब भाषण से गायब हैं।

बड़ा फर्क ये है कि मोदी-मोदी के नारे से जो फ़िजां तब बना करती थी, जो उत्साह लोगों में होता था, जो तालियां और उन तालियों के रुकने का इंतज़ार हुआ करता था ताकि मोदी बोल सकें - वह माहौल नदारद हो गया है। ये संकेत सत्ता में बने रहने के नहीं हैं। इस संकेत को पहचानने और कुछ करने के लिए बीजेपी के पास समय भी बहुत कम रह गया है।

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English summary
difference between 2014 and 2019 Lok Sabha Elections : Narendra Modi Bjp Congress Rahul gandhi
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