Assembly Elections 2022: क्षत्रप मजबूत होंगे तभी कांग्रेस भाजपा टिकेंगी
हिमाचल और दिल्ली से संदेश है कि भाजपा को भी अपने क्षत्रपों को मजबूत करना पड़ेगा, या मजबूत क्षत्रपों के हाथ में सत्ता और संगठन सौंपना पड़ेगा, सिर्फ मोदी और अमित शाह ही चुनाव जिताने की गारंटी नहीं हो सकते।
गुजरात, हिमाचल प्रदेश की विधानसभाओं और दिल्ली नगर निगम के चुनाव नतीजों ने तीनों पार्टियों को संतुष्ट किया है। गुजरात ने भाजपा को, हिमाचल ने कांग्रेस को और दिल्ली ने आम आदमी पार्टी को।
गुजरात में अब तक की सबसे शर्मनाक हार के बाद भी हिमाचल ने कांग्रेस के लिए भविष्य का रास्ता खोला है, क्योंकि कांग्रेस की अब दो नहीं, बल्कि तीन राज्यों में सरकार होगी। कम से कम एक साल तक, जब तक राजस्थान और छतीसगढ़ में विधानसभा चुनाव नहीं होते।
हिमाचल ने कांग्रेस को एक और संदेश भी दिया है कि नेहरू परिवार के बिना भी पार्टी के क्षत्रप उसे सत्ता में ला सकते हैं। 24 साल के बाद कांग्रेस का अध्यक्ष नेहरू परिवार से बाहर का बना है, और राहुल गांधी या सोनिया गांधी ने हिमाचल में प्रचार भी नहीं किया। प्रियंका गांधी ने जरुर थोड़ा बहुत प्रचार किया, लेकिन जीत में मुख्य योगदान वीरभद्र सिंह की पत्नी और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा सिंह को जाता है, जिन्होंने इससे पहले पिछले साल मंडी का लोकसभा उपचुनाव जीत कर कांग्रेस में जोश भर दिया था।
गुजरात ने जरुर देश को 2024 का संदेश देने के लिए 2002 का मोदी का 127 सीटों का भी रिकार्ड तोड़ दिया। लेकिन हिमाचल प्रदेश और दिल्ली ने भारतीय जनता पार्टी को बड़ा झटका दिया है। वैसा ही झटका जैसा 2018 में कर्नाटक, मध्यप्रदेश, छतीसगढ़ और राजस्थान ने दिया था।
हिमाचल और दिल्ली से संदेश है कि भाजपा को भी अपने क्षत्रपों को मजबूत करना पड़ेगा, या मजबूत क्षत्रपों के हाथ में सत्ता और संगठन सौंपना पड़ेगा, सिर्फ मोदी और अमित शाह ही चुनाव जिताने की गारंटी नहीं हो सकते। बिहार और उतरप्रदेश की दो विधानसभा सीटें विपक्ष से छीनना इसका प्रमाण है कि क्षत्रप भी हार जीत में मायने रखते हैं।
गुजरात के साथ साथ उतर प्रदेश और बिहार ने भी 2024 के लिए भाजपा को सकारात्मक संदेश दिया है। इन तीनों राज्यों में 146 लोकसभा सीटें हैं। उतर प्रदेश में भले ही मैनपुरी लोकसभा सीट सपा जीत गई, लेकिन मुस्लिम बहुल रामपुर विधानसभा सीट पर भाजपा का जीतना बड़ा संदेश है कि हिन्दू की एकजुटता का दायरा बढ़ रहा है।
दूसरी तरफ हिमाचल, जहां भाजपा को विधानसभा में हार का सामना करना पड़ा और दिल्ली में जहां भाजपा को नगर निगम चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है, इन दोनों राज्यों में 11 लोकसभा सीटें हैं। 2019 में सभी 11 सीटें भारतीय जनता पार्टी जीती थी, लेकिन हिमाचल की मंडी लोकसभा सीट उप चुनाव में कांग्रेस जीत गई थी। मंडी लोकसभा सीट के उपचुनाव का नतीजा भाजपा के लिए एक संकेत और संदेश था कि उसे मुख्यमंत्री बदल देना चाहिए था, क्योंकि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर मंडी जिले से ही विधायक थे।
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अगर गुजरात की तरह हिमाचल में भी एक साल पहले बड़ा बदलाव किया होता, तो भाजपा अपनी दुर्गति से बच सकती थी। मंडी लोकसभा सीट हारने के बाद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने इसे सिर्फ मंडी में हार के रूप में देखा और सारा जोर मंडी में लगा दिया। मंडी में तो उन्होंने 10 में से 9 विधानसभा सीटें जीत कर लोकसभा उपचुनाव की हार का बदला ले लिया, लेकिन बाकी सारा प्रदेश हार गए।
मंडी के बाद बिलासपुर को छोड़ कर भाजपा कहीं भी बढत नहीं बना सकी। बिलासपुर भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा का जिला है, लेकिन वहां भी सुरेश चन्देल के कांग्रेस से वापस आने पर ही भाजपा चार में से तीन सीटें जीत पाई। भाजपा के संगठन मंत्री रहे सुरेश चन्देल 2019 में उपेक्षा के चलते कांग्रेस में चले गए थे, लेकिन खुद मोदी के दखल से वह चुनाव से ठीक पहले भाजपा में लौटे और उन्हें बिलासपुर जिले का जिम्मा दिया गया था।
कांगड़ा, जहां विधानसभा की 15 सीटें हैं, शांता कुमार के समय भाजपा का गढ़ हुआ करता था, वहां भाजपा को 15 में से सिर्फ 4 सीटें मिलीं। कांगड़ा ने बताया है कि क्षत्रपों को किनारे लगाने का क्या नतीजा निकलता है। सब से बड़ा झटका केन्द्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर को लगा है, उनका लोकसभा टिकट कट सकता है। उनके जिले हमीरपुर में भाजपा को पांच में से सिर्फ एक सीट मिली है। इसके बाद सिर्फ चंबा ही ऐसा जिला रहा जहां भाजपा को कांग्रेस से एक सीट ज्यादा मिली।
भाजपा को गुजरात और कांग्रेस को हिमाचल मिला, तो आम आदमी पार्टी को दिल्ली मिली है। केजरीवाल गुजरात में चुनाव हार कर भी खुश हैं, क्योंकि गुजरात में मिले 13 प्रतिशत वोटों की बदौलत आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल गया है। केजरीवाल ने वीडियो जारी करके गुजरात का आभार भी जताया कि उसने आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिलाया है।
केजरीवाल की आम आदमी पार्टी कांग्रेस के गले की फांस बन गई है। आम आदमी पार्टी ने राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिल्ली, गोवा, पंजाब और गुजरात में कांग्रेस का बंटाधार करके हासिल किया है। लेकिन दिल्ली नगर निगम उसने कांग्रेस से नहीं, बल्कि भाजपा से छीनी है। इसलिए दिल्ली में केजरीवाल की बढत भाजपा के लिए भी लोकसभा चुनावों की दृष्टि से खतरे की घंटी है।
दिल्ली नगर निगम के चुनाव में भाजपा के चार सांसदों मीनाक्षी लेखी, प्रवेश वर्मा, हंस राज हंस और रमेश विधूड़ी के निर्वाचन क्षेत्रों में आम आदमी पार्टी भाजपा पर भारी पड़ी। हालांकि विधानसभा के मुकाबले आम आदमी पार्टी का वोट प्रतिशत घटा है, लेकिन स्थानीय पार्षदों की विधानसभा और लोकसभा चुनाव जितवाने में अहम भूमिका होती है।
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