Uttarakhand Glacier Flood: एक तिहाई उत्तराखंड खतरे की जद में, कभी भी आ सकती है चमोली जैसी तबाही
Uttarakhand Glacier Flood: उत्तराखंड के चमोली जिले में 7 फरवरी को आई तबाही के बाद अध्ययन में इस हिमालयी क्षेत्र की जो तस्वीर सामने आ रही है वह बेहद डराने वाली है। भूवैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में ये बताया है कि उत्तराखंड की लगभग एक तिहाई तहसील में चमोली जैसी तबाही आ सकती है। वैज्ञानिकों के एक दल ने हिमालयी क्षेत्र की मैपिंग के आधार पर ये दावा किया है कि भारतीय क्षेत्र में इस समय 5000 ग्लेशियल झील मौजूद है। इनमें से उत्तराखंड क्षेत्र में मौजूद 500 ग्लेशियर झीलें ऐसी हैं जिनके फटने की आशंका बनी हुई है।

क्यों आती है तबाही ?
हिमालय क्षेत्र में बारिश, भूस्खलन के चलते मलबा इकठ्ठा होता रहता है जिसके चलते हिमालय की संरचना में बदलाव आता है और पहाड़ पर झीले बन जाती हैं। सर्दियों में ये झीलें एक बार जमती हैं जिसके बाद ये ग्लेशियर का रूप लेने लगती हैं। कच्चे पहाड़ के गिरे मलबे के चलते ये झीलें बहुत मजबूत नहीं होती हैं और धीरे-धीरे इनका आकार बढ़ने लगता है। कभी-कभी इनमें रिसाव शुरू होता है और ये टूट जाती हैं।
7 जनवरी को चमोली जिले में आई आपदा नवनिर्मित डैम और पुल को बहा ले गई थी। इस दौरान तपोवन स्थित दो पॉवर प्रोजेक्ट भी इसकी चपेट में आ गए थे। करीब दो सौ लोग लापता हुए थे जिनमें अभी तक 35 से अधिक शव बरामद हो चुके हैं। वहीं पॉवर प्रोजेक्ट के अंदर फंसे लोगों को निकालने के लिए अभी टीमें लगी हुई हैं।
तपोवन के पास आई आपदा के बाद रैनी गांव से करीब 7-8 किमी ऊपर भी एक झील बनी है जिसमें से रिसाव हो रहा है। ग्लेशयर फटने के बाद आए मलबे के इकठ्ठा हुए मलबे से बनी ये झील अगर टूटती है, तो बचाव दल को भी मुश्किल आ सकती है।
इंडिया टुडे की खबर के मुताबिक उत्तराखंड की 78 में से 26 तहसील यानि एक तिहाई भीषण बाढ़ की जद में है जो पहाड़ों पर ग्लेशियर फटने के चलते आती हैं।

जहां आई थी तबाही उस घाटी क्षेत्र में खतरा ज्यादा
अध्ययन के मुताबिक ग्लेशियर फटने से आने वाली बाढ़ का खतरा सबसे ज्यादा चमोली के उसी घाटी क्षेत्र में है जहां पर वर्तमान में बाढ़ ने प्रलय ढाया है लेकिन झीलों की संख्या के साथ ही उनके आकार में भी वृद्धि हो रही है जिसके चलते कुछ नए क्षेत्रों पर भी भविष्य में इसके असर में आ सकते हैं।
वैज्ञानिकों की टीम ने सैटेलाइट से मिले डेटा के आधार पर यह अध्ययन किया है कि हिमालयी क्षेत्र में किस तरह ग्लेशियरों की संरचना में बदलवा आया है। इस डेटा के अध्ययन के आधार पर वैज्ञानिकों ने हिमालय क्षेत्र में वर्तमान और भविष्य में होने वाली बाढ़ की घटनाओं का अनुमान लगाया है। इसमें वैज्ञानिकों ने इन झीलों से हिमस्खलन के टकराने की संभावना के साथ ही झील के आकार और उसके ढलान को भी आधार बनाया है।
ग्लेशियर बाढ़ के संभावित खतरे और नुकसान को लेकर अध्ययन में जो अनुमान लगाया गया है उसके मुताबिक उत्तरी क्षेत्र स्थित जोशीमठ, भटवारी और धारचुला क्षेत्र में तबाही की आशंका ज्यादा है।

मलबे से बने बांध खतरे की घंटी
अधिक जनसंख्या घनत्व वाला क्षेत्र होने के चलते उत्तराखंड ग्लेशियर बाढ़ को लेकर अधिक संवेदनशील क्षेत्र हैं। उत्तराखंड में जनसंख्या घनत्व 182 व्यक्ति प्रतिवर्ग किमी है जो कि 11 हिमालयी राज्यों में सबसे ज्यादा है। ग्लेशियर फटने का नुकसान वैसे तो हर क्षेत्र को होना है लेकिन रोड और कृषि योग्य भूमि की अपेक्षा हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्ट और इंसानों के लिए ये सबसे ज्यादा तबाही लाएगा।
उत्तराखंड में दो तिहाई से अधिक बांध बाढ़ और भूस्खलन द्वारा इकठ्ठा हुए मलबों से बने हैं औऱ इनके पीछे पानी इकठ्ठा होता रहता है। ये बांध अपेक्षाकृत अधिक कमजोर होते हैं और आसानी से टूट जाते हैं जिनके चलते भारी तबाही आती है। अधिकांश ग्लेशियर झील के फटने के पीछे इन्हीं बांधों का टूटना वजह होती है। ये बांध टूटने के बाद भारी मात्रा में पानी ग्लेशियर में पहुंचता है और ग्लेशियर के फटते ही भारी मात्रा में पानी और मलबा नीचे की तरफ बढ़ता है और रास्ते में आने वाली हर चीज को तहस नहस कर देता है।

पर्यावरण असंतुलन से भी बढ़ रहा खतरा
इसके पीछे पर्यावरण में बढ़ता असंतुलन भी काफी हद तक जिम्मेदार है। पर्यावरण स्थिति में बदलाव के चलते ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है जिसके चलते पहाड़ों पर बर्फ पिघल रही है और इन ग्लेशियरों और पहाड़ों पर बने बांधों पर दबाव बढ़ रहा है। उत्तराखंड के चमोली जिले में तबाही इसका ताजा उदाहरण है। आम तौर पर ग्लेशियर फटने की घटनाएं गर्मियों में या फिर बारिश के समय में होती हैं क्योंकि सर्दियों में हिमालयी क्षेत्र में बर्फ जमती है ऐसे में पानी के बढ़ने की संभावना कम ही रहती है लेकिन चमोली जिले में आई तबाही ने इस बारे में नए सिरे से सोचने पर मजबूर कर दिया है।
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