जब वाराणसी पहुंचकर अटल जी मंच से बोले- यहां राजनीति की बातें नहीं होंगी
वाराणसी। भारत रत्न और देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जिनके निधन के बाद पूरा देश आहत है और 7 दिनों के राजकीय शोक की घोषणा की गई है। कुछ ऐसे ही पहलू हैं जो अनछुए हैं, भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी को लेकर धर्म और आध्यात्म की नगरी काशी से भी उनकी यादें जुड़ी हुई हैं। बार 1994 की है जब अटल जी संसद में नेता प्रतिपक्ष हुआ करते थे। इन दिनों वो कुछ ऐसे मंच थे कहा संगीत और कविता का संगम हुआ करता था। इन्हीं में एक था वाराणसी का आदर्श कॉलेज जो गवाह है उस पल का जिसे काशी के जलतरंग वाद्ययंत्र से लोगों का मन मोह लेने वाले डॉक्टर राजेश्वर आचार्य बताते हैं। निधन के बाद one india से बात करते हुए उन्होंने इस समारोह से जुड़ी बातें बताईं।
काशी
से
हापुड़
बुला
किया
था
सम्मानित
संगीतकार
डॉक्टर
राजेश्वर
आचार्य
बताते
है
कि
उस
समारोह
के
कुछ
छायाचित्र
जो
आज
मेरे
पास
मौजूद
हैं,
उसमें
अटल
वाणी
कहने
वाले
भारत
रत्न
अटल
बिहारी
बाजपेयी
ने
मुझे
सम्मानित
किया
है।
वर्ष
1994
जिसमे
राष्ट्रीय
कला
साधक
संगम
वाराणसी
में
आयोजित
हुआ
था।
जिसमे
संस्कार
भारती
द्वादश
राष्ट्रीय
अधिवेशन
स्मारिका
प्रकाशित
हुई
थी।
इस
स्मारिका
का
विमोचन
खुद
अटल
बिहारी
वाजेपयी
ने
किया।
इस
स्मारिका
मेरे
द्वारा
लिखी
गई
जिसे
वही
इस
कला
साधक
संगम
के
इस
आयोजन
में
देश
भर
के
कलाकारों
ने
अपनी
कला
का
परिचय
देते
हुए
सहभाग
किया।
इस
स्मारिका
में
तत्कालीन
नेता
प्रतिपक्ष
के
रूप
में
अटल
जी
की
भी
कविता
प्रकाशित
हुई।इसके
बाद
हापुड़
में
वर्ष
1995
में
राष्ट्रीय
सहित्यकार
सम्मेलन
में
अटल
जी
ने
मुझे
काशी
के
पल
को
याद
करते
हुए
बुलाया
और
साहित्यकार
के
रूप
में
सम्मानित
करते
हुए
श्रद्धेय
श्री
अटल
जी
तिलक
तथा
अंगवस्त्रं
देकर
सम्मानित
भी
किया
था।
आदर्श
कॉलेज
में
कवि
के
रूप
में
आये
थे
नजर
डॉक्टर
राजेश्वर
आचार्य
अपने
उन
पलों
को
याद
करते
हुए
बताते
है
कि
जब
1994
में
राष्ट्रीय
कला
साधक
संगम
के
समारोह
में
बतौर
मुख्य
अतिथि
के
रूप
में
अटल
जी
आये
तो
उन्होंने
हर
बातों
का
जवाब
संगीत
और
कविता
के
रूप
में
दिया
था।
यही
नहीं
मुझसे
ये
तक
कहा
कि
मै
कुँवारा
हूँ
और
साथ
ही
जिस
कार्यक्रम
में
वो
भाग
लेने
के
लिए
आये
थे
तो
वहां
भाजपा
के
नेताओं
का
जमावड़ा
जुटा
था।
जिसके
बाद
अटल
जी
ने
अपने
कार्यकर्ता
से
मंच
से
सम्बोधित
करते
हुए
कहा
कि
ये
कोई
राजनैतिक
मंच
नहीं
और
ना
ही
यहां
राजनीति
की
बात
होगी।
आज
एक
समारोह
में
मैं
इस
कवि
की
हैसियत
से
आया
हूँ
और
जिन्हें
यहां
आकर
राजनीत
की
बात
करनी
और
सुननी
हो
वो
बाहर
जा
सकते
हैं।
जिसके
बात
उन्हें
वहां
मौजूद
सभी
साहित्यकारों
की
बात
का
जवाब
अपनी
कविता
के
माध्यम
से
ही
दिया।
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