महाभारत काल से जुड़ा है पांचालेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास, जानें आठ काले नागों का रहस्य
कानपुर। वैसे तो पूरे विश्व में भगवान शंकर के कई मंदिर हैं लेकिन कानपुर में बना पांचालेश्वर महादेव मंदिर अपने आप में कुछ खास है। खास हो भी क्यों ना, क्योंकि द्वापर युग में वनवास के दौरान पाण्डवों की पत्नी द्रौपदी (पांचाली) ने इस स्थान पर भगवान भोले नाथ की तपस्या की थी। द्रौपदी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान भोले नाथ आशीर्वाद देने के बाद इसी स्थान पर शिवलिंग के रूप में विराजमान हो गए। तब से यह मंदिर पांचालेश्वर महादेव के नाम से विख्यात हो गया।
कानपुर से करीब 40 किलोमीटर दूर रघुनाथपुर गाँव में स्थित पांचालेश्वर महादेव का इतिहास अनूठा है। द्वापर युग में वनवास के समय पाण्डवों ने यंहा डेरा डाला था। सावन के महीने में द्रौपदी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और वरदान देने के बाद शिवलिंग के रूप में स्थापित हो गए। द्रौपदी को पांचाली कहा जाता था इस कारण शिवलिंग को पाँचालेश्वर कहा जाने लगा।
जानकारों की मानें तो कई साल पहले जंगल में आई बंजारों की टोली ने सुनहरे शिवलिंग को देखकर उसे खोदना शुरू कर दिया था जिससे शिवलिंग खण्डित हो गया। शिवलिंग के खण्डित होते ही उसमे से निकले सर्पों ने बंजारों को डस लिया तब साधुओं की टोली ने तपस्या कर बाबा का क्रोध शांत किया।
माना जाता है कि शिवलिंग के पास आठ काले नाग देखे जाते थे। इस कारण मंदिर निर्माण के समय गुम्मद के अंदर आठ सर्पो की आकृति बनाई गई। आज भी मंदिर के गर्भगृह में सर्प देखे जाते हैं। मंदिर के पुजारी दिनेश त्रिवेदी उर्फ़ कल्लू बाबा का कहना है कि मंदिर में तीन प्रहर भगवान भोलेनाथ की आरती की जाती है। मंदिर के गर्भगृह में रात को दूध रखा जाता है। ऐसी मान्यता है की मंदिर में सर्प आते है इसलिए मंदिर की गाय का दूध रखा जाता है।