यूपी चुनाव: अब वाराणसी कांग्रेस में भी टिकट बंटवारे पर छिड़ा विरोध
कांग्रेस ने यूपी में चुनाव के प्रचार-प्रसार को लेकर टिकट बंटवारे का जिम्मा प्रशांत किशोर और टीम पीके को दिया है। इसी टीम ने सपा के साथ गठबंधन की पहल भी की थी और यूपी में इसे जरूरी बताया था।
वाराणसी। कोई ऐसा दल नहीं है जहां चुनावी समर में असंतोष, पक्षपात और गुटबाजी देखने को नहीं मिल रही हो। यही हाल इस समय राजनीति का नया केन्द्र बने बनारस का हो गया है। मामला शुरू हुआ है शहर उत्तरी की सीट से जहां पार्टी की रीति और नीति वरिष्ठों के गले नहीं उतर रही है। यहां समाजवादी पार्टी के विधायक रहे अब्दुल समद अंसारी को कांग्रेस के सिंबल पर प्रत्याशी बनाया गया है। जिसे लेकर अब सवाल उठने शुरू हो गए हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने 'शीर्ष का निर्णय' कह कर अपना पल्ला झाड़ना शुरू कर दिया है। जिससे आसपास की सीटों पर असर पड़ना लगभग तय माना जा रहा है।
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टिकट बंटवारे में आया रोचक मोड़
कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में चुनाव के प्रचार प्रसार को लेकर टिकट बंटवारे का जिम्मा प्रशांत किशोर और टीम पीके को दिया है। इसी टीम ने सपा के साथ गठबंधन की पहल भी की थी और उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने के लिए इस गठबंधन को जरूरी भी बताया था। उतार-चढ़ाव और राजनीतिक नाटक के बाद ये गठबंधन भी हुआ। एक तरफ समाजवादी पार्टी ने कई ऐसी सीट पर प्रत्याशी घोषित कर दिए जहां वर्तमान में कांग्रेस के विधायक हैं। फिर टिकट कांग्रेस ने जारी किए और 105 सीटों को लेकर सहमति बनी। जिसमे कांग्रेस ने वाराणसी के दक्षिणी, कैंट और उत्तरी पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी। लेकिन शिवपुर और उत्तरी के लिए संशय बना हुआ था। शिवपुर विधानसभा पर अखिलेश ने अपने प्रत्याशी आंनद मोहन यादव की घोषणा पहले ही कर दी थी पर इस टिकट बंटवारे में रोचक मोड़ तब आया जब कांग्रेस ने बनारस के उत्तरी से अपने लिस्ट में सपा के पूर्व विधायक अब्दुल समद अंसारी को अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया।
क्या कांग्रेस में कोई इतना काबिल नहीं कि उत्तरी क्षेत्र से चुनाव लड़े?
दरअसल ये मामला तब गरमा गया जब शिवपुर और उत्तरी को लेकर कांग्रेसी नेताओं को ये पूरा विश्वास था की पार्टी जल्दी ही अपनी दावेदारी घोषित करेगी और शिवपुर में समझौते के अनुरूप सपा से सीट वापस ले ली जाएगी। लेकिन हुआ कुछ उल्टा ही, कांग्रेस की लिस्ट में सपा नेता को घोषित कर दिया गया। जिससे समर्थकों और वरिष्ठ नेताओं में इस बात को लेकर नाराजगी शुरू हो गई की क्या पार्टी में ऐसा कोई नेता नहीं बचा जिसे पार्टी अपना उम्मीदवार घोषित करती? या पार्टी की ओर से कोई नाम नहीं भेजा गया? आखिर टिकट वितरण का आधार क्या था? इसके अलावा और भी कई सवाल हैं जो कांग्रेसी नेताओं के लिए चिंता का सबब बन गई हैं।
उत्तरी क्षेत्र के प्रत्याशी अभी भी हैं सपा के सिपाही
जबकि बीते एक साल से इस सीट पर पूर्व विधायक राबिया कलाम और अजय राय के करीबी शैलेंद्र सिंह की दावेदारी सुर्खियों में रही थी जबकि शिवपुर से अभी तक किसी नेता का नाम सामने नहीं आया है। वहीं इस उतार चढ़ाव के बीच ये बातें भी अब सामने आई हैं कि जिस उम्मीदवार को कांग्रेस अपने सिंबल पर चुनाव लड़ा रही हैं वो पूर्व में समाजवादी पार्टी के बैनर तले विधायक भी रह चुके हैं।
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