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UP Election 2022: उत्तर प्रदेश की चुनावी राजनीति में चल रही है चवन्नी और अठन्नी

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लखनऊ, 02 फरवरी। वैसे तो चवन्नी और अठन्नी का चलन कब का खत्म हो चुका है लेकिन यूपी की चुनावी राजनीति में ये अब भी खनक रही हैं। जबानी जमा-खर्च में कोई चवन्नी उछाल रहा तो कोई अठन्नी। दरअसल हफ्ता भर पहले गृहमंत्री अमित शाह ने जयंत चौधरी को भाजपा के साथ आने का ऑफर दिया था। जयंत चौधरी का सपा से गठबंधन है। इसके बाद राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी ने अपने पॉलिटिकल स्टैंड की मजबूती को दिखाने के लिए कहा था, मैं कोई चवन्नी नहीं कि पल में पलट जाऊंगा।

politics of chawani athanni in uttar pradesh assembly election 2022

जयंत चौधरी के इस बयान के जवाब में योगी सरकार के जल शक्ति मंत्री महेन्द्र सिंह ने कहा, जयंत चौधरी खुद फैसला करें कि वे चवन्नी हैं या अठन्नी। चुनाव के बाद उन्हें अहसास होगा कि उन्होंने कैसा प्रयोग किया था। 2017 में 'दो लड़कों की जोड़ी' (राहुल गांधी, अखिलेश यादव) का नतीजा सबको मालूम है। चवन्नी-अठन्नी की चर्चा के बीच एक सवाल पूछा जा रहा है, चौधरी चरण सिंह जैसे ताकतवर नेता की विरासत संभाल रही पार्टी (रालोद) आज इतनी दुर्गति क्यों झेल रही है ? आज इस पार्टी का न तो कोई सांसद है न ही विधायक ? आखिर ऐसा क्यों ?

चौधरी चरण सिंह की पार्टी आज कहां है ?

चौधरी चरण सिंह की पार्टी आज कहां है ?

भारत के बड़े किसान नेता माने जाने वाले चौधरी चरण सिंह ने अपनी राजनीतिक विरासत बेटे अजीत सिंह को सौंपी थी। चरण सिंह सभी वर्ग के किसानों के नेता थे। राजनीति का आधार समाजवाद था। लेकिन अजीत के जमाने में उनकी पार्टी जाट समुदाय की पार्टी बन गयी। अजीत सिंह सिर्फ जाट नेता बन कर रह गये। उन्होंने समाजवाद से भी नाता तोड़ लिया। हद तो ये हो गयी कि वे कुछ समय तक कांग्रेस में भी रहे। 1996 में अजीत सिंह ने कांग्रेस के टिकट पर बागपत से लोकसभा का चुनाव जीता था। उनकी पार्टी के कई नाम बदले। अंत में राष्ट्रीय लोकदल उनकी राजनीति का आधार रहा। उनकी राजनीति पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक सिमट कर रह गयी। 2009 में अजीत सिंह ने अपने पुत्र जयंत चौधरी को राजनीति में उतारा। जयंत मथुरा से सांसद बने। अजीत सिंह बागपत से जीते थे। पिता-पुत्र दोनों सांसद थे। लेकिन 2014 के आते-आते अजीत सिंह का राजनीतिक सूरज डूबने लगा।

अपने गढ़ में हारे थे अजीत सिंह

अपने गढ़ में हारे थे अजीत सिंह

2014 के लोकसभा चुनाव में अजीत सिंह रालोद के अध्यक्ष के रूप में बागपत से चुनाव मैदान में उतरे थे। बागपत को चौधरी चरण सिंह का किला माना जाता है। भाजपा ने इस सीट पर मुम्बई के पूर्व पुलिस कमिश्नर डॉ. सत्यपाल सिंह को खड़ा किया था। आइपीएस सत्यपाल सिंह बागपत जिले के ही एक किसान परिवार से थे। भाजपा ने एक नया जाट चेहरा अखाड़े में उतार कर मुकाबले का माहौल ही बदल दिया था। उस चुनाव में सपा और रालोद अलग अलग लड़ रहे थे। सपा ने यहां से गुलाम मोहम्मद को खड़ा किया था। चुनाव हुआ तो अजीत सिंह अपने ही गढ़ में बुरी तरह हार गये। सत्यपाल सिंह ने सपा के गुलाम मोहम्मद को दो लाख से अधिक वोटों से हरा दिया। अजीत सिंह तीसरे स्थान पर लुढ़क गये। 2019 के लोकसभा चुनाव में अजीत सिंह ने बागपत सीट अपने बेटे जयंत चौधरी को दे दी थी। वे खुद मुजफ्फरनगर से लड़े थे। मुजफ्फरनगर में अजीत सिंह को सपा, बसपा और कांग्रेस ने संयुक्त प्रत्याशी बनाया था। उस समय कहा जा रहा था कि तीन दलों के समर्थन के कारण अजीत सिंह की जीत निश्चित है। जाट-मुस्लिम समीकरण भी उनके पक्ष में बताया जा रहा था। अजीत सिंह का मुकाबला भाजपा के डॉ. संजीव बालियान से हुआ। इसके बाद भी अजीत सिंह करीब 6 हजार वोट से चुनाव हार गये। अजीत सिंह खुद बड़े जाट नेता थे। उन्हें तीन दलों का समर्थन हासिल था। फिर भी वे हार गये। इस हार ने रालोद को हाशिये पर ढकेल दिया।

जयंत चौधरी का लोकसभा और विधानसभा में खाता जीरो

जयंत चौधरी का लोकसभा और विधानसभा में खाता जीरो

2019 के लोकसभा चुनाव में जयंत चौधरी भी बागपत से विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार थे। यहां सपा, बसपा और कांग्रेस ने उम्मीदवार नहीं दिया था। इसके बाद भी जयंत चौधरी हार गये थे। उन्हें भाजपा के डॉ. सत्यपाल सिंह ने करीब 25 हजार वोटों से हराया था। इस तरह अजीत सिंह और उनके पुत्र जयंत चौधरी लगातार दो चुनाव हार गये। रालोद का कोई उम्मीदवार नहीं जीता। इस तरह से रालोद का लोकसभा से सफाया हो गया। 2017 के विधानसभा चुनाव में रालोद को एक मात्र जीत मिली थी। चौधरी चरण सिंह की सीट रही छपरौली से रालोद के सहेन्दर सिंह रामाला चुनाव जीते थे। वे रालोद के अकेले विधायक थे। चुनाव जीतने के बाद सहेन्दर सिंह रामाला भाजपा में शामिल हो गये। इस तरह रालोद का उत्तर प्रदेश विधानसभा में भी खाता खाली हो गया। तब से रालोद, लोकसभा और विधानसभा में अपनी नुमांइदगी के लिए छटपटा रहा है। रालोद के लिए विचारधारा कभी महत्वपूर्ण नहीं रही। अजीत सिंह कभी वीपी सिंह के सबसे करीबी नेता थे। फिर वे कांग्रेस में गये। नरसिम्हा राव की सरकार में मंत्री रहे। फिर वे भाजपा के साथ हो लिये। अटल बिहारी वाजपेयी की सकार में भी मंत्री रहे। 2022 के विधानसभा चुनाव में रालोद का सपा से गठबंधन है।

2022 में जयंत चौधरी की आस

2022 में जयंत चौधरी की आस

मई 2021 में अजीत सिंह के निधन के बाद जयंत चौधरी को रालोद का अध्यक्ष बनाया गया था। मई 2021 में ही हुए पंचायत चुनाव के बाद मृतप्राय रालोद में एक नयी जान आयी थी। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उसके प्रदर्शन में सुधार हुआ था। उत्तर प्रदेश में जिला पंचायत सदस्य की 3050 सीटें हैं। इनमें से रालोद ने 69 सीटें जीत कर भाजपा, सपा, बसपा और कांग्रेस के बाद पूरे प्रदेश में चौथा स्थान प्राप्त किया था। इस चुनाव में किसान आंदोलन और कोरोना भी एक बड़ा फैक्टर था। मेरठ, शामली, मुजफ्फरनगर, बागपत में रालोद ने बेहतर प्रदर्शन किया था। इस जीत ने उसमें एक नया जोश फूंका था। 2022 के विधानसभा चुनाव में रालोद को जाट किसानों और मुस्लिम समुदाय से बहुत आशा है।

कई सीटों पर रालोद समर्थकों में नाराजगी

कई सीटों पर रालोद समर्थकों में नाराजगी

जयंत चौधरी किसी तरह रालोद को उबारना चाहते हैं। कहा जा रहा है कि इसी मजबूरी में जयंत ने आखिलेश यादव के सामने घुटने टेक दिये हैं। आरोप है कि जयंत ने इस गठबंधन के लिए अपनी परम्परागत सीटें भी सपा को दे दी हैं। कई सीटों पर रालोद के सिम्बल पर सपा के नेता चुनाव लड़ रहे हैं। चौधरी चरण सिंह और अजीत सिंह की पहचान वाली छपरौली सीट जयंत ने सपा को सौंप दी। यहां सपा के प्रत्याशी देने पर भी विवाद हुआ। पहले सपा ने यहां वीर पाल सिंह राठी को उम्मीदवार बनायाथा। जब रालोद ने इसका विरोध किया तो राठी को बदल कर अजय कुमार खड़ा किया गया। जाट बहुत शिवालखास सीट को लेकर भी रालोद समर्थकों में नाराजगी है। हाल ही कुछ वीडियो सार्वजनिक हुए हैं जिससे सपा- रालोद का जातीय गठबंधन (जाट-मुस्लिम) डगमगाने लगा है।

यह भी पढ़ें: '...मुझे तो नहीं बनना हेमा मालिनी', भाजपा के ऑफर पर जयंत चौधरी ने दिया ये जवाब

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English summary
politics of chawani athanni in uttar pradesh assembly election 2022
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