यूपी विधानसभा चुनाव 2017: एक टिकट के लिए चार दिन में बदलीं तीन पार्टियां
शाहनवाज राणा पर लगे आरोपों और ट्रैक रिकॉर्ड को देखने के बाद भी RLD ने उन्हें पार्टी की ओर से उम्मीदवार बनाया है। पार्टी ने जाट और मुस्लिम वोटरों को एकजुट करने के उद्देश्य से यह कदम उठाया है।
मुजफ्फरनगर। यूपी विधानसभा चुनाव में टिकट हासिल करने के लिए नेता तरह-तरह के हथकंडे अपना रहे हैं। कभी समाजवादी पार्टी में अपनी पैठ बनाने वाले और शिवपाल यादव के करीबी कहे जाने वाले शाहनवाज राणा ने टिकट के लिए सियासत के सारे दांव-पेंच आजमा लिए। दिसंबर में मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव के खेमे में दिखने वाले राणा को मुजफ्फरनगर के मीरांपुर से सपा ने टिकट दिया था। लेकिन कांग्रेस के साथ सपा का गठबंधन होने से राणा की नींद उड़ गई और टिकट की अटकलों में उन्होंने तुरंत कांग्रेस का हाथ थाम लिया। इस दलबदल का अंत यहीं नहीं हुआ। जिस सीट के लिए राणा ने कांग्रेस का दामन थामा था वह गठबंधन के गुणा-गणित में सपा के खाते में ही रह गई।
सपा से कांग्रेस और फिर RLD का दामन थामा
कांग्रेस में शामिल होने के बाद शाहनवाज राणा ने कहा, 'मेरा उद्देश्य चुनाव लड़ना नहीं है। मेरा लक्ष्य सांप्रदायिक ताकतों से लड़ना है। सपा और कांग्रेस ने प्रदेश में गठबंधन किया है। कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी है इसलिए मैंने कांग्रेस की सदस्यता ली है।' गठबंधन में सीटों के बंटवारे में जब मीरांपुर सीट सपा के खाते में ही रह गई तो राणा की बेचैनी फिर बढ़ी और कांग्रेस में शामिल होने के 48 घंटे के अंदर ही राणा ने अजित सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल में शामिल होकर फिर टिकट की जोर आजमाइश शुरू कर दी। लेकिन यहां भी राणा की बेचैनी कम नहीं हुई। READ ALSO: वोट के लिए सपा उम्मीदवार ने दिया भड़काऊ भाषण, VIDEO वायरल
2012 में RLD छोड़कर सपा में गए थे
राणा ने 24 घंटे तक इंतजार किया लेकिन RLD की दूसरी लिस्ट में भी उनका नाम नहीं आया और मीरांपुर सीट से मिथलेश पाल को उम्मीदवार बना दिया गया। आखिरकार उन्हें खतौली सीट से चुनाव मैदान में उतारा गया। RLD में शामिल होने के बाद उन्होंने कहा, 'मैं किसानों और मजदूरों की लड़ाई लड़ना चाहता हूं। यह जाति और धर्म से ऊपर है और हमेशा चौधरी चरण सिंह के आदर्शों पर चली है।' राणा ने 2012 में बिजनौर सीट से विधानसभा चुनाव हारने के बाद RLD छोड़कर सपा का दामन थामा था। READ ALSO: मुलायम सिंह यादव के छोटे बेटे प्रतीक यादव ने बताया- कैसे खरीदी 5.28 करोड़ की कार
2007 में BSP से बने थे विधायक
40 वर्षीय शाहनवाज राणा के राजनीतिक करियर पर नजर डालें तो वह बीजेपी को छोड़कर बाकी सभी पार्टियों का हिस्सा रह चुके हैं। राणा 2007 के विधानसभा चुनाव में बिजनौर से बीएसपी के टिकट पर चुनाव जीतकर विधायक बने थे। हालांकि 2011 में रेप के एक मामले में उनका नाम सामने आने के बाद बीएसपी प्रमुख मायावती ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया था। हालांकि राणा ने इस मामले में लगे आरोपों को खारिज किया है और इसे साजिश करार दिया। कुछ समय बाद एक ऑडियो सामने आया जिसमें कथित तौर पर राणा को 12 साल की उम्र में एक हत्या करने की बात कहते सुना गया। हालांकि उन्होंने उसे भी फर्जी करार दिया। READ ALSO: राजनाथ सिंह बोले- वोट के लिए यूपी को सांप्रदायिक आधार पर बांटा जा रहा है
मुजफ्फरनगर दंगों में उछला था इनका नाम
शाहनवाज राणा पर लगे आरोपों और ट्रैक रिकॉर्ड को देखने के बाद भी RLD ने उन्हें पार्टी की ओर से उम्मीदवार बनाया है। पार्टी ने जाट और मुस्लिम वोटरों को एकजुट करने के उद्देश्य से यह कदम उठाया है। राणा का परिवार बिजनेस से जुड़ा है। उनके चाचा कादिर राणा 15वीं लोकसभा में बीएसपी के टिकट पर सांसद बने थे। कादिर राणा की पत्नी सईदा बेगम बीएसपी के टिकट पर बुढाना सीट से चुनाव लड़ रही है। कादिर राणा और शाहनवाज के दूसरे चाचा नूर सलीम राणा, 2013 में हुए दंगों में आरोपी थे। राणा ने कहा, 'सांप्रदायिक ताकतों ने जिले में जो किया है हम किसानों और मजदूरों, हिंदू और मुसलमानों को एकजुट करके वो सब दूर करने की कोशिश करेंगे।' मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा, 'मुलायम सिंह अच्छे इंसान हैं लेकिन अखिलेश मुस्लिमों के साथ नहीं हैं।'