Mainpuri Loksabha by Election: अखिलेश-योगी के बीच वाकई 'पेंडुलम' बनकर रह जाएंगे शिवपाल ?
Mainpuri Loksabha by Election: उत्तर प्रदेश में मैनपुरी में हो रहे लोकसभा उपचुनाव (Mainpuri Loksabha by Election) में राजनीति के कई रंग देखने को मिल रहे हैं। सपा के चीफ और यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) और उनके चाचा शिवपाल यादव (Shivpal Yadav) के बीच बढ़ती नजदीकी ने नई सियासत की शुरूआत कर दी है। इस राजनीति में सीएम योगी की एंट्री ने इसे और रोचक बना दिया है। योगी के उस बयान के बाद माहौल और गरम हो गया जिसमें उन्होंने शिवपाल की स्थिति "पेंडुलम" जैसी बताई थी। हालांकि राजनीतिक विश्लेषक योगी के बयानों के कई मतलब निकाल रहे हैं और शिवपाल की भविष्य की संभावनाओं को भी टटोल रहे हैं। इनका कहना है कि मैनपुरी का चुनाव शिवपाल के राजनीतिक भविष्य का फैसला करेगा।
रिवर फ्रंट घोटाले की जांच में क्या सपा देगी शिवपाल का साथ ?
मैनपुरी लोकसभा चुनाव में शिवपाल-अखिलेश के मिलन के बाद अब सपा में नई तरह की सियासत शुरू होने की सुगबुगाहट तेज हो गई है। राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो शिवपाल को अखिलेश और डिंपल का साथ देने की कीमत सीबीआई और ईडी की जांच का सामना करके चुकानी पड़ सकती है। हालांकि इस दौरान देखना रोचक होगा कि जो सपा इस समय शिवपाल के समर्थन के लिए उनके आगे पीछे घूम रही है और अखिलेश को उनका पैर छूने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है वो मुश्किल दौर में शिवपाल का साथ देते हैं या उन्हें अकेला छोड़ देते हैं।
क्या चाचा शिवपाल का मजबूती से साथ देंगे अखिलेश
रिवर फ्रंट मामले की जांच की अटकलों के बीच अखिलेश ने कहा, "गोमती रिवरफ्रंट से संबंधित प्रत्येक निर्णय को कैबिनेट द्वारा मंजूरी दी गई थी। हम कैबिनेट में सीबीआई और ईडी का सामना करने के लिए तैयार हैं। लेकिन सत्ता में बैठे लोगों को यह नहीं भूलना चाहिए कि वह समय आएगा जब उनके (भाजपा के) फैसलों की भी जांच होगी। हम किसी भी जांच के लिए तैयार हैं। पार्टी किसी भी मुद्दे पर सीबीआई और ईडी का सामना करने के लिए तैयार है। लेकिन उपचुनावों के बीच में इस तरह की कार्रवाई शुरू करना स्वस्थ राजनीति की निशानी नहीं है।
क्या सपा-बीजेपी के बीच "पेंडुलम" जैसे हो जाएंगे शिवपाल
शिवपाल यादव इस समय राजनीति के दोराहे पर खड़े हैं। यहां से उनकी राजनीति किस दिशा में जाएगी इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। राजनीतिक विश्लेषक राजीव रंजन सिंह कहते हैं, " शिवपाल यादव इस समय दोराहे पर खड़े हैं। विधानसभा चुनाव के दौरान भी उन्होंने भावनाओं में आकर अखिलेश की पार्टी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा था। जिसका खामियाजा वह आज तक भुगत रहे हैं। उसके बाद उन्होंने सपा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था लेकिन अब एक बार फिर परिवार प्रेम में उन्होंने अपना रुख बदल दिया है। इससे उनकी क्रेडिबिलिटी पर असर पड़ेगा। इसमें यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या सपा केवल चुनाव में उनका इस्तेमाल कर छोड़ देगी। फिर उनका भविष्य क्या होगा क्योंकि बीजेपी से उनके कथित रिश्ते भी खराब हो रहे हैं क्योंकि इसका इशारा खुद सीएम योगी ने ही कर दिया है।"
लगातार बदल रहे स्टैंड से शिवपाल को कितना होगा नुकसान
शिवपाल यादव ने जब से पीएसपीएल का गठन किया है तब से उनका रुख हमेशा अप्रत्याशित रहा है। कभी वह राष्ट्रपति चुनाव में बीजेपी का साथ देते हैं तो कभी वह अखिलेश के खिलाफ यदुकुल पुनर्जागरण मंच का गठन करते हैं। इतनी कवायद करने के बाद भी वह परिवार प्रेम में फंसकर अखिलेश के खेमे में चले जाते हैं। कुछ दिनों पहले ही उन्होंने बाहुबली नेता डीपी यादव के साथ मिलकर यदुकुल पुनर्जागरण मंच का गठन किया था और मंच से ही यदुवंशियों को एकजुट होने का आह्वन किया था। इतना सबसे के बाद अब उन्होंने फिर अपना स्टेंड बदल दिया है और अब वह दावा कर रहे हैं कि वो परिवार के साथ ही रहेंगे।
2024 से पहले क्या शिवपाल के सामने आएंगी कई मुसीबतें
मैनपुरी उपचुनाव में अखिलेश-शिवपाल के रिश्तों में जो उठापटक देखने को मिल रही है वह क्या शांत हो जाएगा या 2024 तक इसका इंतजार करना पड़ेगा। शिवपाल ही नहीं पूरे यादव परिवार को इस बात का आभास है कि यदि शिवपाल आते हैं तो कई तरह की जांचें शुरू होंगी जिसमें शिवपाल ही नहीं कई बड़े नाम घेरे में आएंगे। उस समय परिवार की एकजुटता देखने लायक होगी। यदि परिवार एकजुट नहीं हुआ तो शिवपाल की मुसीबतें कम होने की बजाए औ बढ़ेंगी। दूसरी ओर शिवपाल के समर्थक भी अब शिवपाल के बार बार स्टेंड बदलने की वजह से परेशानी में हैं। वह खुद भी नहीं समझ पा रहे हैं कि वह सपा के साथ जाएं या फिर किसी दूसरे विकल्प की तालाश करें।
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