बसपा के कांशीराम ने दिया था मुलायम को सपा बनाने का आइडिया, फिर यूपी की राजनीति में हवा हो गए थे जय श्रीराम?
लखनऊ, 1 दिसंबर। 14 अप्रैल 1984, डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की जयंती पर कांशीराम ने बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की थी। 4 अक्टूबर 1992, यह वह तारीख है जब मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी का गठन किया था। कांशीराम का मानना था कि देश में 85 प्रतिशत बहुजन पर 15 प्रतिशत सवर्ण राज करते हैं और उनका शोषण करते हैं। एससी, एसटी और ओबीसी और अल्पसंख्यक को कांशीराम बहुजन कहते थे। उनका कहना था कि सत्ता हासिल करने पर ही बहुजन का भला हो सकता है। 1989 के विधानसभा चुनाव में बसपा को 13 सीट मिली थी जबकि 1991 के चुनाव में पार्टी के खाते में 12 सीट आई थी। यह वह दौर था जब उत्तर प्रदेश में विश्व हिंदू परिषद राम मंदिर निर्माण के लिए आंदोलन कर रहा था और भाजपा के लाल कृष्ण आडवाणी रथयात्रा पर निकले थे। अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिराने की पटकथा लिखी जा रही थी। यह वह दौर था जब मंडल कमीशन की सिफारिशों पर केंद्र की जनता दल सरकार ने ओबीसी को आरक्षण दिया था और इसने वोटों की राजनीति में कांग्रेस को पीछे धकेल दिया था। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के पतन से खाली हुई सियासत की जगह को भरने के लिए मंडल-कमंडल पूरा जोर लगा रहे थे। 1991 में भाजपा ने 221 सीटें लाकर दिखा दिया था कि बिना मुसलमान वोट के भी यूपी में सत्ता पाई जा सकती है। इसी दौरान, कांशीराम की दूरदर्शी नजरों ने मुलायम में कुछ ऐसा खोजा जिसने आगे चलकर सत्ता से भाजपा को बेदखल कर दिया और कमंडल की राजनीति अपना असर खो बैठी।
1991 के इटावा लोकसभा सीट के उपचुनाव में बढ़ी कांशीराम-मुलायम की दोस्ती
1991 में भारतीय जनता पार्टी ने जिन कल्याण सिंह के नेतृत्व में चुनाव लड़ा था वो भी ओबीसी नेता थे। कांशीराम मानते थे कि अगर दलित, ओबीसी और मुसलमान को एक साथ लाया जाय तो उत्तर प्रदेश में इनकी सरकार बन सकती है जैसा कि वे 85-15 का समीकरण राजनीति में गिनाते थे। 85 प्रतिशत दलित, पिछड़ा और अल्पसंख्यक, 15 प्रतिशत सवर्ण। अक्टूबर 1990 में अयोध्या में जमा हुए कारसेवकों पर पुलिस से गोली चलवाकर मुलायम मुसलमानों के चहते बन गए थे हलांकि उनका यह फैसला भी एक वजह थी जिससे 1991 में भाजपा की बड़ी जीत हुई थी। 1991 में ही मुलायम के गढ़ इटावा लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुआ था। मुलायम के सहयोग से कांशीराम यहां से सांसद चुने गए थे। कांशीराम ने भाजपा प्रत्याशी को हराया था। मुलायम उस समय जनता दल (सोशलिस्ट) में थे। जीत के बाद कांशीराम मुलायम के साथ समीकरण बनाने पर सोचने लगे थे। उन्होंने 1991 में ही एक इंटरव्यू में कहा कि अगर मुलायम साथ देंगे तो विरोधी दलों को हराया जा सकता है।
इंटरव्यू पढ़कर मुलायम कांशीराम से मिलने पहुंच गए
इंटरव्यू में कांशीराम के विचार पढ़कर मुलायम सिंह यादव उनसे मिलने पहुंच गए और वहीं से उनको समाजवादी पार्टी बनाने का आइडिया मिला। मुलायम सिंह यादव ने अक्टूबर 1992 में समाजवादी पार्टी बनाई और इसके दो महीने बाद ही बाबरी मस्जिद विध्वंस की घटना हो गई। कल्याण सिंह सरकार बर्खास्त हो गई और प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लग गया। 1993 में विधानसभा चुनाव कराए गए जिसमें मुलायम और कांशीराम ने गठबंधन किया। मुलायम ने 256 सीट और कांशीराम ने 164 सीट पर उम्मीदवार उतारे। इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 177 सीट और सपा-बसपा गठबंधन को 176 सीट मिली। सपा के खाते में 109 सीट आई जबकि बसपा ने 67 सीट पर जीत हासिल की। कांशीराम के आइडिया से मुलायम यूपी की राजनीति में अपनी पार्टी के साथ स्थापित हो गए। सपा-बसपा गठबंधन ने अन्य दलों के सहयोग से सरकार बनाई थी और मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बन गए थे। इस तरह से कांशीराम की भविष्यवाणी सच साबित हुई और उन्होंने वह कर दिखाया जो वह सोचते थे। कांशीराम-मुलायम की जोड़ी की जीत के इस दौर में नारा उछला था- मिले मुलायम कांशीराम, हवा हो गए जय श्रीराम। कहा जाता है कि यह नारा कांशीराम के सहयोगी रहे खादिम अब्बास ने दिया था।
मुलायम-कांशीराम का समीकरण गेस्ट हाउस कांड ने किया ध्वस्त
1993 में बनी सपा-बसपा गठबंधन की सरकार के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव जरूर थे लेकिन बाहर से समर्थन दे रही बसपा उन पर दबाव बनाए रहती थी। जून 1995 में बसपा समर्थन वापसी की कोशिश में थी कि गेस्ट हाउस में विधायकों के साथ बैठक कर रही मायावती पर कुछ सपा विधायकों ने सैकड़ों समर्थकों के साथ हमला बोल दिया। बसपा विधायकों की पिटाई की गई और मायावती ने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया। कहा जाता है कि उनको भाजपा विधायक ब्रह्मदत्त द्विवेदी ने बचाकर निकाला था। इस गेस्ट हाउस कांड के बाद कांशीराम और मुलायम समीकरण का अंत हो गया। इसका फायदा भाजपा ने उठाकर मायावती की सरकार बनवा दी लेकिन वह भी ज्यादा दिन नहीं चल पाई। 1989 से लेकर 2007 के बीच का चुनावी इतिहास यूपी के लिए अस्थिरता से भरा रहा। 2007 में बसपा पूर्ण बहुमत के साथ सरकार में आई थी। बसपा के बाद 2012 चुनाव में सपा को बहुमत मिला। कहा जा सकता है कि कांशीराम का ही विजन था कि सपा और बसपा दोनों सत्ता पाने में कामयाब रही। 2014 के बाद देश में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा केंद्र में आई और 2017 में यूपी में भी प्रचंड बहुमत से सत्ता में आ गई। ऐसे में 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ फिर सपा और बसपा साथ आई लेकिन दोनों मिलकर कुछ खास नहीं कर पाई। लोकसभा चुनाव 2014 में बसपा को कोई सीट नहीं मिली थी, 2019 में सपा की मदद से उसके 10 सांसद हो गए। वहीं सपा के सिर्फ पांच सांसद ही बन पाए। इसके बाद फिर बसपा ने सपा का साथ छोड़ दिया। कांशीराम और मुलायम की मजबूती अकेले सत्ता चलाने की राजनीति में कमजोर होती चली गई और ताकत खो बैठी।
यूपी चुनावों में कांग्रेस के साथ गठबंधन कर बसपा और सपा ने क्या खोया, क्या पाया?