आखिर 6 दिसम्बर 1992 को पांच कॉलीदास मार्ग पर क्या थी हलचल, क्या कर रहे थे कल्याण सिंह; जानिए पूरी कहानी
लखनऊ, 21 अगस्त: उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम कल्याण सिंह का शनिवार को लंबी बीमार के बाद संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान में निधन हो गया। उनके निधन के बाद पीएम मोदी और सीएम योगी समेत कई नेताओं ने शोक जताया है। कल्याण सिंह तो नहीं रहे लेकिन उनके जाने के बाद उनके जीवन के अनसुने किस्से जरूर रह गए हैं। आइए आज हम आपको सुनाते हैं उनसे जुड़े कुछ रोचक किस्से। यह किस्से किसी और ने नहीं बल्कि उनके मंत्रिपरिषद में उनके साथ काम करने वाले पूर्व राजस्व राज्य मंत्री बालेश्वर त्यागी ने बताए हैं। उन्हीं की जुबाानी सुनिए कि आखिर 6 दिसम्बर को जब बाबरी का विवादित ढांचा गिराया गया तो लखनऊ में पांच कॉलीदास मार्ग स्थित मुख्यमंत्री कल्याण सिंह क्या कर रहे थे।
6 दिसम्बर 1992 को मुख्यमंत्री आवास में क्या हुआ, जानिए सबकुछ
''5 दिसम्बर 1992 को मैं देर रात सोया। अपने आवास पर हॉटलाइन पर जानकारी लेता रहा कि अयोध्या पहुंचने वाले प्रमुख नेता अपने निर्धारित आवासों में पहुंचे या नहीं। पांच की शाम को लखनऊ में सभा थी जिसमे अटल बिहारी वाजपेयी मुख्य वक्ता थे। सभा में आडवानी जी, उमाभारती व अन्य कई प्रमुख नेता थे। सभा समाप्ति के बाद अटल बिहारी वाजपेयी तो दिल्ली लौट गए और शेष सभी नेता अयोध्या चले गए। 6 दिसम्बर को प्रातः अपने आवास बी-19 दारुलशफा से स्नान आदि से निवृत होकर मैं मुख्यमन्त्राी-आवास 5 कालीदास मार्ग पर पहुंच गया। पता नहीं क्यों मुझे उस दिन लखनऊ की सड़कों पर रौनक नहीं दिख रही थी। जैसे ही मैं मुख्यमंत्री आवास पर पहुंचा स्वास्थ्य मंत्री सूर्यप्रताप शाही भी साथ-साथ वहां पहुंच गए। मुख्यमंत्री आवास पर नियुक्त अधिकारी धूप में कोठी के लान में खड़े थे। हम दोनों भी उस अधिकारी के पास चले गए। सुबह का समय था, गुलाबी सर्दी थी। हम मुख्यमंत्री जी के बारे में पूछ ही रहे थे कि मुख्यमन्त्राी कल्याण सिंह कोठी के अन्दर से अपने कुर्ते की आस्तीन सँवारते हुए निकले और यह कहते हुए कि अभी थोड़ी देर में आ रहा हूँ पोर्च में खड़ी गाड़ी में बैठकर आवास से बाहर चले गए। हमने उस अधिकारी से पूछा कि मुख्यमंत्री कहां गए हैं। उसने बताया कि उनको निज के लिए आबंटित आवास 2 माल ऐवेन्यू को देखने गए हैं। मेरे मुंह से अक्समात निकला ''अपशकुन हो गया है'' मुख्यमंत्री अपने लिए वैकल्पिक आवास देखने गए हैं। क्या कालीदास मार्ग वाला आवास छोड़ना पड़ेगा? थोड़ी देर में मुख्यमन्त्राी वापिस आ गए। उन्होंने अपने कालीदास मार्ग आवास के प्रथम मन्जिल पर एक टिनशैड टाइप खुला स्थान बनवाया था, हम वहां जाकर बैठ गए। मुख्यमंत्री जी ने पूछा कि क्या खाओगे? हमने कहा कुछ भी मंगवा लो। उन्होंने कहा कि आमलेट मंगवाते हैं। मैंने कहा कि मैं आमलेट नहीं खाता मेरे लिए काजू मंगवा लो। दो आमलेट और काजू तथा तीन काफी का आर्डर देकर बात ही कर रहे थे कि राजेन्द्र गुप्ता और लाल जी टंडन आ गए। राजेन्द्र जी को समाचार मिला था कि अयोध्या में कुछ कारसेवक गुंबद पर चढ़ गए हैं। समाचार की पुष्टि करने के लिए हम सब ऊपर से उतर कर मुख्य हाल में आ गए। सबसे पहले अयोध्या में कन्ट्रोल रूम में तैनात ए.डी.एम. से सम्पर्क हो पाया तो उसने कहा कि समाचार सत्य नहीं है लेकिन अन्य कई सूत्रों से तोड़-फोड़ के समाचार आने लगे। धीरे-धीरे मुख्यमन्त्राी आवास पर अन्य मंत्री भी पहुंचने लगे। मुख्यमंत्री जी को फोन आने लगे। अटल बिहारी वाजपेयी जी के तीन बार फोन आए सम्भवतः दो बार आडवानी जी का भी फोन आया। भारत के गृहंमंत्री एस.बी. चौहान का भी फोन आया। जैसा ध्यान पड़ता है प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव का भी फोन आया। मुख्यमन्त्राी जी ने मुझसे कहा कि सब आने वाले फोनों का समय नोट करता रहूं। मैंने ऐसा उस समय किया भी लेकिन बाद में उसे सुरक्षित नहीं रख सका। दो बजे के आस-पास तत्कालीन डीजीपी एस.वी.एम. त्रिपाठी आए और उन्होंने अयोध्या जाने के लिए हवाई जहाज मांगा। मुख्यमंत्री ने कहा आप हवाई जहाज ले जा सकते हैं लेकिन आप वहाँ जाकर वर्तमान परिस्थितियों में जैसा वहाँ के माहौल के बारे में समाचार आ रहे हैं, कुछ प्रभावी कार्यवाही कर पाऐंगे ऐसा मुझे नहीं लगता। मेरा सुझाव है आप यहीं से निर्देश जारी करें। इस बीच गृह सचिव भी आ गए, सम्भवतः मुख्य सचिव भी आ गए थे। क्या कार्यवाही होनी चाहिए उपस्थित लोगों ने सुझाव देने प्रारम्भ किए। सभी के विचार सुनने के बाद कल्याण सिंह जी ने निर्देश दिया कि 'गोली किसी कीमत पर नहीं।' इसके अतिरिक्त भीड़ को नियंत्रित करने के लिए जो भी कार्यवाही आवश्यक हो अमल में लाई जाए। साथ ही कहा कि आपको किसी कठिनाई का सामना न करना पड़े इसलिए हमारे यह आदेश लिखित में प्राप्त कर लो। गृह सचिव चले गए कुछ समय बाद फाइल लेकर आए उस पर कल्याण सिंह जी ने अपने हाथ से अपने कलम से अपना निर्देश अंकित कर दिया। सभी अधिकारी निर्देश का पालन कराने के लिए मुख्यमंत्री आवास से चले गए। धीरे-धीरे माहौल का तनाव घटने लगा। ढांचे का विध्वंस निश्चित जानकर सन्तोष का सा भाव बनने लगा। अयोध्या से भी अधिकतर अधिकारियों की मनोदशा के जो समाचार मिले वे भी कुछ ऐसे ही थे कि अब पता नहीं गिरफ्तार होंगे या बरखास्त होंगे, यह डर उनको सता रहा था लेकिन ढाँचे के विध्वंस हो जाने का सन्तोष तो उन्हें भी था। पहली गुम्बद गिरने का समाचार फिर दूसरी गुम्बद गिरने का समाचार फिर विचार होने लगा कि मन्त्राीमण्डल के त्यागपत्र में क्या कारण लिखा जाए। कई तरह के सुझाव के बाद निर्णय हुआ कि कोई कारण न लिखा जाए। महामहिम राज्यपाल के नाम त्यागपत्र लिखा गया। कल्याण सिंह जी ने हस्ताक्षर किए। इस बीच तीसरी गुम्बद गिरने का भी समाचार आ गया। सम्भवतः साढ़े पांच बजे कल्याण सिंह जी के नेतृत्व में उनके आवास पर उपस्थित सभी मंत्रर राजभवन गए। राज्यपाल महोदय को अपना त्यागपत्र सौंप दिया। राज्यपाल महोदय ने पूछा यह कैसे हो गया? पत्रकारों ने कल्याण सिंह जी से पूछा कि क्या बात हुई राज्यपाल से? कल्याण सिंह जी बिना कोई उत्तर दिए अपनी गाड़ी में बैठकर मुख्यमंत्री आवास के लिए रवाना हो गये। बाकी मंत्री भी उनके पीछे-पीछे चल दिए। बाद में समाचारों में आया कि कल्याण सिंह जी की सरकार को बरखास्त कर दिया गया है। यह भी पता चला कि उत्तर प्रदेश के साथ-साथ मध्यप्रदेश, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश की भाजपा की सरकारें भी बरखास्त कर दी गयी हैं।''
जब कल्याण सिंह बोले- बेटा मैं तो रोज झेलता हूं, कभी तुम भी तो झेलो
''एक सज्जन का उत्तरांचल के एक शहर में एक फ्लैट था। उस फ्लैट में एक किराएदार था। वह खाली नहीं कर रहा था, मकान मालिक को लगा कि पुलिस के सहयोग से इसे खाली कराया जा सकता है। उसने उस कार्य के लिए अपने कुछ प्रमुख व्यक्तियों को अपने मंतव्य के लिए सहमत कर लिया। अब वे मुझ पर दबाव बनाने लगे कि एस.एस.पी. से कहकर फ्लैट खाली कराऊ। मैं उनसे मना नहीं कर सकता था। मैंने एस.एस.पीसे फोन करके सहयोग करने के लिए कहा। एक दो बार तो उसने कहा कि देखता हूं। कोशिश करता हूं। लेकिन जब मैंने दो तीन बार कहा तो उसने कहा कि मैं खाली नहीं करा सकता है, क्योंकि वह भी कोई सामान्य आदमी नहीं है, वह एक अंग्रेजी पत्रिका का संवाददाता है। लेकिन अपने लोग मुझ पर दबाव बनाते थे। एकाध बार तो उन्होंने मुझे धमकाने के लहजे का भी प्रयोग किया। मैंने उनसे कहा कि मैं तो राज्य मंत्राी हूँ। एस.एस.पी. मेरी बात नहीं मान रहा है, आप मुख्यमंत्राी से बात कर लो। लेकिन जब मैं गाजियाबाद आता तभी वे दबाव बनाते। एक दिन मैं शाम को मुख्यमंत्राी जी के घर गया उनके पास एक और मंत्राी बैठे थे। मैंने अपनी व्यथा बताई। एस.एस.पी. ने इंकार कर दिया है लेकिन ये लोग मानने को तैयार नहीं हैं। मैं क्या करूँ, कुछ मेरी मदद करो।मेरी बात सुनकर मुख्यमंत्री जोर से हंसे और बोले बेटा मंत्री हो, मैं तो रोज झेलता हूं कभी-कभी तुम भी तो झेलो।''
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जब कल्याण सिंह ने दिखाया शासन व्यवस्था में सामंजस्य एक उदाहरण
''संभवतः नवंबर 1992 के अंतिम सप्ताह की बात है। मुख्यमंत्राी कल्याण सिंह ने पूरे मंत्रिमंडल की बैठक बुलाई जिसमें कैबनेट मंत्रियों के अलावा राज्यमंत्री और उपमंत्री भी शामिल थे। मुख्य सचिव सहित सभी विभागों के सचिव/प्रमुख सचिव थे। शासन के कार्यों को कैसे पारदर्शी, प्रभावी तथा शीघ्रता से संपन्न कराया जाये कुछ ऐसे ही विषयों पर गंभीर चर्चा हुई। कुछ विभागों की कठिनाईयों पर विचार हुआ था। अंत में एक विषय आया। केन्द्रीय योजना आयोग ने प्रदेश की योजना के परिव्यय में 15 प्रतिशत की कटौती कर दी है। निर्धारित फोरम द्वारा स्वीकृत जिला योजना जो पूर्व में ही स्वीकृत की जा चुकी है उसमें 15 प्रतिशत कटौती कैसे हो क्योंकि समय बहुत कम था। संभवतः प्रमुख सचिव मुख्यमंत्राी या मुख्य सचिव ने सुझाव रखा कि योजना विभाग जिला फोरम द्वारा स्वीकृत योजना में 15 प्रतिशत कटौती कर दे और उसका अनुमोदन जिलों के प्रभारी मंत्रियों से करा ले। सभी ने सुझाव का समर्थन किया। एकाएक सचिव नियोजन बक्शी खड़े हो गए और बड़ी शालीनता और दृढ़ता से बोले आप मुझे सचिव नियोजन रखें या हटा दें। जिस फोरम ने योजना पूर्व में स्वीकृत की है जब वही फोरम उसमें 15 प्रतिशत कटौती करेगा तो मैं योजना पर हस्ताक्षर कर सकूंगा अन्यथा नहीं। सभी लोग स्तब्ध रह गए और एक दूसरे का मुँह देखने लगे। तुरंत मुख्यमंत्राी कल्याण सिंह बोले बक्शी जी की बात ठीक है। कोई कठिनाई नहीं है सभी जिलों के प्रभारी मंत्राी आज यहां बैठे हैं वे आज ही अपने प्रभार वाले जिलों की बैठक बुलवा लें तथा योजना में 15 प्रतिशत की कटौती करके अनुमोदन एक सप्ताह में शासन को प्राप्त हो जाये। न कोई खीज, न कोई इगो हर्ट, न मान, न अपमान जितने सहज सुझाव उतने ही सहज संशोधन शासन की व्यवस्था में एक सुंदर सामंजस्य देखने को मिला।''