मां-बाप की हत्या कर छोटे भाई ने भैया-भाभी और दोस्त को फंसाया, बेगुनाह 8 साल जेल में रहे
आगरा। उत्तर प्रदेश के आगरा में 14 बीघा जमीन के लालच में अपने ही मां-बाप की हत्या के आरोप में अपने भाई-भाभी और उसके दोस्त को जेल भेजना आठ साल बाद वादी को भारी पड़ गया। अदालत ने झूठी गवाही और साक्ष्य प्रस्तुत करने पर वादी को 302 और 194 धाराओं में अभियोग दर्ज किया है। आठ साल बाद भले ही मुजरिमों को न्याय मिला हो और वो रिहा हो गए हों पर मुकदमे में जेल काट रहे दोस्त की जिंदगी अब तबाह हो चुकी है। एनसीसी में अव्वल सार्टिफिकेट धारक चेतन ग्रेजुएशन के बाद सरकारी नौकरी की तलाश में था और जेल में ही उसकी उम्र निकल गयी। जघन्य हत्याकांड में दो बार हाईकोर्ट से बेल नामंजूर हुई और आठ साल उसे सलाखों के पीछे रहना पड़ा। अब पीड़ित वादी पर मुकदमे की तैयारी कर रहे हैं।
आपको बता दें कि आठ साल पुराने हत्या के मामले में विवेचक व वादी स्वयं ही फंस गये हैं। अपर सत्र न्यायाधीश सुभाष चंद्र कुलश्रैष्ठ ने तीन अभियुक्तों राजवीर, कुसुमा और चेतन को बरी करते हुये एसएसपी को आदेश दिया है कि वह विवेचक घनश्याम सिंह व वादी रामवीर शर्मा के खिलाफ तीन निर्दोष व्यक्तियों को झूठा फंसाने और वादी को अनुचित लाभ पहुंचाने का दोषी होने के कारण उनके विरुद्ध धारा 194 आईपीसी में केस पंजीकृत कराकर उसकी विवेचना करायेंगे तथा विभागीय कार्रवाई भी करेंगे।
यह मामला थाना फतेहपुर सीकरी का है। वादी रामवीर शर्मा ने 27 नवम्बर 2009 को मुकदमा दर्ज कराते हुए कहा कि उसके बड़े भाई राजवीर और उसके पिताजी बद्रीप्रसाद में करीब 4 वर्ष से जमीन को लेकर विवाद चल रहा था। घटना से 3-4 माह पूर्व पिताजी ने गांव के मकान का वसीयतनामा उसकी पत्नी हेमलता के नाम कर दिया था। इसी बात पर राजवीर नाराज हो गया और पिताजी को धमकी देकर गया था। 27 नवम्बर 09 को शाम 6 बजे वादी उसके पिता, मां व अन्य परिजन घर पर मौजूद थे तभी राजवीर, उसकी पत्नी कुसुमा व राजवीर का दोस्त चेतन बाइक पर आये और जमीन नाम कर देने को कहा। राजवीर व चेतन ने तमंचों से फायर किये। राजवीर ने वादी के पिता व चेतन ने मां को गोली मार दी। शोर पर आरोपी भाग गये। बद्री प्रसाद व मां गया देवी की गोली लगने से मौके पर ही मृत्यु हो गयी। वादी की तहरीर पर अभियुक्तों के खिलाफ मुकदमा कायम हुआ था। पुलिस ने 10 गवाहों के बयान दर्ज कराये।
न्यायाधीश ने पत्रावली पर मौजूद साक्ष्य के आधार पर दम्पति सहित तीन अभियुक्तों को बरी करते हुए लिखा है कि प्रथमदृष्टया यह सिद्ध है कि वादी ने स्वयं पहले अपने पिता की हत्या की और माता की हत्या इसलिए की है क्योंकि वह वास्तविकता को पुलिस को न बता दें और वादी के खिलाफ गवाही न दे। वादी ने अपने पिता की 14 बीघा जमीन प्राप्त करने के आशय से अभियुक्तों को इस कारण झूठा फंसाया जिससे कि वह बद्रीप्रसाद की 14 बीघा जमीन को क्लेम न कर सके और हत्या के आरोप में दंडित होने के कारण राजवीर उत्तराधिकार से वंचित हो जाये। राजवीर के सामने यह विकल्प बिल्कुल भी नहीं था कि वह 14 बीघा जमीन की कोई वसीयत होने के बाद अपने पिता की हत्या करता। आरोपी दोषमुक्त होने योग्य है।
अदालत ने 51 पृष्ठीय निर्णय में लिखा है कि इस मामले के विवेचक घनश्याम सिंह ने गंभीर षडयंत्र वादी के साथ मिलकर रचाा है, जिसके कारण दो निर्दोष व्यक्ति नवम्बर 2009 से अब तक बिना अपराध किये जेल में निरुद्ध रहे और एक स्त्री करीब साढ़े तीन माह जेल में रही। विवेचक के भाग पर यह बहुत गंभीर आपराधिक षडयंत्र है।
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