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हार की 'हैट्रिक' लगा चुके अखिलेश, कब पिघलेगी शिवपाल के साथ रिश्तों पर जमी बर्फ; मुलायम ने भी दे दी है चेतावनी

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लखनऊ, 7 सितम्बर: उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले छोटे दल भी अपनी सियासी चाल चलने में जुटे हुए हैं लेकिन समाजवादी पार्टी के चीफ अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल यादव के रिश्तों पर जमी बर्फ पिघलने का नाम नहीं ले रही है। हालांकि शिवपाल यादव कई बार ये संकेत दे चुके हैं कि यदि उनको अखिलेश का बुलावा आता है तो वो उनसे मिलने जाएंगे। इसी कड़ी में इटावा में एक कार्यक्रम के दौरान उनका धैर्य जवाब देता नजर आया। उन्होंने कहा कि बहुत बार अनुरोध कर लिया। साथियों के साथ सम्मानजनक तरीके से नहीं बुलाया गया तो संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की अपने बूते ही यूपी में चुनाव लड़ेगा। हालांकि पार्टी के एक वरिष्ठ विधायक और मुलायम के करीबी ने दावा किया कि मुलायम सिंह ने भी अखिलेश को चेतावनी दे दी है कि यदि अभी परिवार एकजुट नहीं हुआ तो इसके गंभीर परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहें।

शिवपाल

हालांकि शिवपाल सिंह यादव का धैर्य बुलावा नहीं मिलने से टूटने लगा है। सोमवार को उन्होंने यह जाहिर किया। बोले-अब बहुत हो गया भतीजे के बुलावे का इंतजार। अगर सम्मानजनक साथियों के साथ जल्द नहीं बुलाया गया तो अब नहीं ही जाएंगे। वहीं दूसरी ओर समाजवादी पार्टी के सूत्र यह बता रहे हैं कि संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने अपने बेटे अखिलेश यादव से अपने चाचा शिवपाल यादव के साथ मिलकर बैठकर विवाद सुलझाने की नसीहत दी है ताकि चुनाव से पहले दोनों एकजुट होकर मैदान में उतर सकें।

सपा के विधायक ने दावा किया कि,

''शिवपाल यादव की एक बैठक में मौजूद पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव से मुलायम सिंह ने कहा था पारिवारिक विवाद को सुलझाएं या नष्ट होने के लिए तैयार रहें। 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव को देखते हुए यह बैठक अहम है। 2014 के लोकसभा चुनाव, 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनावों में सपा को बीजेपी के हाथों लगातार तीन हार का सामना करना पड़ा है। इसको देखते हुए परिवार में एकजुटता बहुत जरूरी है। नहीं तो इसका खामियाजा फिर उठाना पड़ा।''

मुस्लिम- यादव गठजोड़ पर फोकस करने की सलाह दी
कहा जाता है कि मुलायम सिंह यादव ने भी अपने बेटे को पारंपरिक मुस्लिम-यादव का गठजोड़ बनाकर चुनाव में उतरने की सलाह दी थी। यादव परिवार के करीबी एक वरिष्ठ सपा नेता ने कहा कि मुलायम सिंह यादव को राजनीति में अपने सक्रिय दिनों के दौरान एम-वाई गठबंधन का फायदा मिला था और ओबीसी में गैर-यादव समुदायों के नेताओं को पार्टी का आधार बढ़ाने के लिए तैयार किया था।

अखिलेश यादव

शिवपाल से अलग होकर दो चुनाव हार चुके हैं अखिलेश
अखिलेश से अलग हुए चाचा शिवपाल सिंह यादव ने 2017 के विधानसभा चुनावों और 2019 के लोकसभा चुनावों में अपनी नुकसान क्षमता साबित की, जिसकी कीमत यादव बेल्ट आगरा-इटावा क्षेत्र में सपा की सीटों पर चुकानी पड़ी। 2017 के यूपी विधानसभा चुनावों के तुरंत बाद, शिवपाल यादव ने अखिलेश के साथ अलग होकर अपनी पार्टी - प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) बनाई और सपा के खिलाफ उम्मीदवार उतारे।

शिवपाल से समझौता नहीं हुआ तो पार्टी को होगा नुकसान
सपा नेता ने कहा कि,

"अगर अखिलेश शिवपाल से समझौता नहीं करते हैं, तो यह घरेलू मैदान पर फिर से सपा की संभावनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। अखिलेश के दूसरे चाचा और राज्यसभा सांसद, रामगोपाल यादव के विपरीत, जिन्होंने अपने राजनीतिक जीवन का बेहतर हिस्सा दिल्ली में बिताया है। शिवपाल की तरह यहां की राजनीति की समझ उनमें नहीं है। इसलिए यह जरूरी है कि समय रहते विवाद सुलझे और दोनों लोग साथ आकर चुनाव लड़ें।''

राजभर

भागीदारी मोर्चा भी अहम साबित होगा
आठ दलों के गठबंधन, भागिदरी संकल्प मोर्चा का उदय, भी यूपी के चुनाव से काफी अहम साबित होगा। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (SBSP) के नेता ओम प्रकाश राजभर ने इस गठबंधन को बनाया था, जिन्होंने 2017 में भाजपा के साथ गठबंधन किया था और योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री बने थे। बाद में उन्हें 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद भाजपा आलाकमान के खिलाफ उनके बयानों के लिए बर्खास्त कर दिया गया था। पिछले दो वर्षों से, राजभर नए सहयोगियों की तलाश में है और उन्होंने कई छोटी पार्टियों को एक साथ करने में कामयाबी हासिल की है।

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English summary
Akhilesh has hit a hat-trick of consecutive defeats, when will the ice on the relationship with Shivpal melt; Mulayam has also given a warning of dire consequences/
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