Ranji Trophy: MP को जिताने वाला वो 'खड़ूस' कोच, जिसने जिस टीम को छुआ, उसका मुकद्दर बदल गया
बेंगलुरु, 26 जून: मध्यप्रदेश ने मुंबई को रणजी ट्रॉफी 2022 के फाइनल में 6 विकेट से हराकर पहली बार यह खिताब जीता है। रणजी ट्रॉफी देश का सबसे हाईप्रोफाइल लाल गेंद टूर्नामेंट है और मध्य प्रदेश के कोच चंद्रकांत पंडित इस जीत के बाद काफी चर्चित हो गए हैं। चंद्रकांत पंडित का रणजी ट्रॉफी में बतौर हेड कोच बड़ा ही जबरदस्त सफर रहा है। उन्होंने 2003 में मुंबई के साथ खिताब जीता, फिर अगले साल भी मुंबई को खिताब जिताया। इसके बाद एक लंबा अंतराल आया लेकिन 2016 में चंद्रकांत पंडित फिर से मुंबई को खिताब जिताते हैं।
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चंद्रकांत पंडित 1986 से 1992 तक भारतीय क्रिकेट टीम में थे
इसके साथ ही उनका मुंबई के साथ जुड़ाव यहीं पर समाप्त हो जाता है और वे विदर्भ के हेड कोच बन जाते हैं जिसको 2018 में रणजी ट्रॉफी जिताते हैं। वह ठीक अगले साल फिर से विदर्भ को चैंपियन बनाते हैं। बाद में कोरोना की मार पड़ती है और रणजी ट्रॉफी प्रभावित होती है लेकिन 2022 में इस प्रतियोगिता में चंद्रकांत पंडित फिर से जबरदस्त वापसी करते हैं और मध्यप्रदेश को उनके इतिहास में पहली बार चैंपियन बनाकर चले जाते हैं।
चंद्रकांत पंडित 1986 से 1992 तक भारतीय क्रिकेट टीम में भी सक्रिय रहे और इस दौरान उन्होंने पांच टेस्ट मैच व 36 वनडे इंटरनेशनल मुकाबले खेले। उन्होंने भारत की नेशनल क्रिकेट टीम में एक विकेटकीपर बल्लेबाज की भूमिका निभाई। पंडित ने पांच टेस्ट मैचों की 8 पारियों में 24.4 की औसत से 171 रन बनाए और एकदिवसीय मुकाबलों में 36 मैच की 23 पारियों में 20.7 की औसत से 290 रन बनाए।
23 साल बाद टूटा हुआ वह सपना फिर से पूरा हुआ
ये उनका कोचिंग करियर था जिसके चलते उनको एक खिलाड़ी से ज्यादा चर्चे मिले। 138 फर्स्ट क्लास मैच खेलने वाले पंडित ने जिस तरह से विदर्भ और अब मध्यप्रदेश को जिताया है उसके बाद घरेलू क्रिकेट में उनका दर्जा और बढ़ने वाला है क्योंकि यह दोनों ही टीमें बहुत मजबूत नहीं मानी जाती थी। मजे की बात यह है कि 1999 में मध्य प्रदेश की टीम चंद्रकांत पंडित की कप्तानी में ही फाइनल में पहुंची थी लेकिन तब कर्नाटक ने उसको हरा दिया था और अब 23 साल बाद टूटा हुआ वह सपना फिर से पूरा हुआ।
बड़े खड़ूस कोच हैं
चंद्रकांत पंडित के तौर तरीकों से वाकिफ लोग बताते हैं कि वह एक सख्त कोच हैं जो अपनी टीम में अनुशासन को बहुत महत्व देते हैं। वे कप्तान या किसी खिलाड़ी से भी ऊपर टीम के माहौल को तवज्जो देते हैं। यही वजह है जब वे विदर्भ के कोच थे तो उन्होंने एक सेमीफाइनल मुकाबले के दौरान अपने खिलाड़ियों का फोन खुद के पास रख लिया था। उनका मानना था कि महत्वपूर्ण समय में फोन जैसी चीजें खिलाड़ियों का ध्यान बंद कर सकती है।
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नतीजा फिर वही देते हैं जिसकी आप उनसे उम्मीद करें
बताया जाता है कि चंद्रकांत पंडित के काम करने का तौर तरीका एसोसिएशन भी जानती हैं इसी वजह से वे उनको टीम को चुनने की पूरी छूट देती हैं, बतौर कोच फ्री हैंड देती है। जब ऐसा कोई कोच होता है तो उसके इर्द-गिर्द अफवाहों का दौर भी चल पड़ता है। कहने वाले कहते हैं कि पंडित ने अपने कोचिंग करियर में गुस्से में आकर एक खिलाड़ी पर हाथ भी उठा दिया था लेकिन इस बात की पुष्टि नहीं है कि यह बात सच है। पर एक बात तो सच है कि पंडित अपने तरीके से काम करते हैं लेकिन नतीजा फिर वही देते हैं जिसकी आप उनसे उम्मीद करें।
जीत के बाद भावुक क्यूं हो गए थे
इस जीत के बाद चंद्रकांत पंडित काफी भावुक हो गए और उन्होंने बताया कि 23 साल पहले एक कप्तान के तौर पर वे इस मैदान पर बाजी मारने में नाकामयाब रहे थे, इस वजह से भावनाएं कुछ ज्यादा ही उमड़ गई। चंद्रकांत पंडित की घरेलू क्रिकेट में काफी मांग है और वह कहते हैं कि बाकी ऑफर भी उनके पास थे लेकिन उन्होंने मध्यप्रदेश को चुना क्योंकि 23 साल पहले जो छूटा था उसको पूरा करने का मौका मिल रहा था। उन्होंने आदित्य को एक बेहतरीन कप्तान बताया और कहा कि जो भी चीजें उन्होंने कप्तान के साथ मिलकर बनाई उसने उनको मैदान पर लागू किया। वे कहते हैं कि कप्तान अपनी टीम की जीत में 50% का योगदान दे सकता है और यहां पर आदित्य ने शानदार काम किया है, भले ही वह अपने बल्ले से अधिक रन नहीं बना पाए। चंद्रकांत कहते हैं कि उन्होंने यह ट्रॉफी मध्य प्रदेश के लिए जीती है। इस दौरान उन्होंने मध्यप्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन और माधवराव सिंधिया को धन्यवाद दिया।