आखिर क्यों सचिन पायलट को पसंद नहीं करते अशोक गहलोत?
जयपुर, 27 सितंबर। राजस्थान कांग्रेस में पिछले कुछ दिनों में सियासी ड्रामा चल रहा है। जिस तरह से आलाकमान के खिलाफ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मोर्चा खोल दिया है उसने पार्टी की मुश्किलों को बढ़ा दिया है। हालांकि अशोक गहलोत इस बात से इनकार कर रहे हैं कि विधायकों की बगावत से उनका कोई लेना-देना नहीं है, विधायक मेरे नियंत्रण में नहीं है लेकिन बावजूद इसके यह स्पष्ट है कि इस पूरे सियासी ड्रामा के पीछे अशोक गहलोत पर्दे के पीछे से अपने पत्ते चल रहे हैं।
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कांग्रेस के सामने दोहरी चुनौती
माना जा रहा था कि कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए अशोक गहलोत अपने आवेदन से पहले राजस्थान के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे देंगे और सचिन पायलट को प्रदेश का नया मुख्यमंत्री नियुक्त किया जाएगा। लेकिन कांग्रेस पार्टी के लिए यह पूरी प्रक्रिया सिरदर्द बन गई है। अशोक गहलोत के करीबी विधायकों की सचिन पायलट के खिलाफ बगावत ने आला कमान को अधर में लटका दिया है। एक तरफ पार्टी के सामने राजस्थान के सियासी संकट को दूर करने की चुनौती है तो दूसरी तरफ अशोक गहलोत के इस तेवर को संभालना है।
बैरंग लौटे पर्यवेक्षक
हालात उस वक्त और बिगड़ गए जब मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन राजस्थान के सियासी संकट का समाधान तलाशने में विफल रहे और बैरंग उन्हें दिल्ली लौटना पड़ा। गहलोत के करीबी विधायकों की बगावत को सिर्फ सचिन खेमे के खिलाफ बगावत के रूप में नहीं देखा जा रहा है बल्कि कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ भी बगावत के तौर पर देखा जा रहा है। लिहाजा आला कमान इस बात को भी जरूर सोच रहा है कि क्या ऐसे हालात में अशोक गहलोत को पार्टी का शीर्ष पद दिया जा सकता है।
किसी भी हाल में पायलट को सीएम की कुर्सी नहीं देना चाहते
इन तमाम उठापटक के बीच बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि आखिर अशोक गहलोत सचिन पायलट को इतना नापसंद क्यों करते हैं और क्या वजह है कि वह किसी भी हाल में उन्हे प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी नहीं सौंपना चाहते हैं। सचिन पायलट के खिलाफ अशोक गहलोत की खुन्नस आखिर इतनी ज्यादा क्यों कि उन्होंने गांधी परिवार के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया। गहलोत को राजस्थान की सियासत का जादूगर माना जाता है, 40 साल से अधिक समय से वह सियासत में हैं, तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं, केंद्र में भी मंत्री पद संभाल चुके हैं।
40 साल के अनुभव को चुनौती
अशोक गहलोत का राजनीतिक सफर 40 साल से अधिक का है,इस दौरान उनका वर्चस्व ना सिर्फ दिल्ली बल्कि राजस्थान में बरकरार रहा। गहलोत को पहली बार राजस्थान में किसी नेता ने खुलकर चुनौती दी तो उनका नाम सचिन पायलट है। इस पूरे विवाद की शुरुआत 2018 में हुई, जब सचिन पायलट टिकटों के बंटवारे से लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पर अपना दावा पेश किया। सचिन पायलट का यह बढ़ता हुआ कद अशोक गहलोत को बिल्कुल पसंद नहीं था।
राहुल को मनाने की कवायद फेल
हालांकि कांग्रेस आला कमान चाहता है कि राजस्थान के अगले मुख्यमंत्री सचिन पायलट बनें लेकिन अशोक गहलोत को यह बिल्कुल पसंद नहीं है, वह किसी भी सूरत में सचिन पायलट को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं देखना चाहते हैं। गहलोत खेमे ने यह साफ तौर पर स्पष्ट कर दिया है कि उन्हें सचिन पायलट स्वीकार नहीं हैं। दरअसल गहलोत को भी इस बात का अंदाजा था कि अगर वह पार्टी के अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ते हैं तो उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी को छोड़ना पड़ सकता है, यही वजह है कि गहलोत चाहते थे कि राहुल गांधी ही पार्टी के अध्यक्ष बनें, लेकिन जब राहुल गांधी इसके लिए तैयार नहीं हुए तो गहलोत अध्यक्ष पद के लिए नामांकन के लिए तैयार हो गए।
गहलोत के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई
अशोक गहलोत की रणनीति को लेकर राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि गहलोत इस पूरी लड़ाई को अपनी प्रतिष्ठा की लड़ाई मान रहे हं। वह किसी भी हाल में सचिन पायलट को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनते नहीं देखना चाहते हैं। गहलोत चाहते हैं कि पायलट को छोड़कर किसी को भी मुख्यमंत्री बना दिया जाए। गहलोत के करीबी शांति कुमार धारीवाल, प्रताप सिंह खाचरियावास, महेश जोशी व कई अन्य नेता कह चुके हैं कि मुख्यमंत्री किसी 102 विधायकों में से ही चुना जाए जो 2020 में गहलोत सरकार के साथ खड़े थे। इस पूरी बयानबाजी पर अशोक गहलोत ने चुप्पी साध रखी है, ऐसे में माना जा रहा है कि पर्दे के पीछे से पूरी पटकथा अशोक गहलोत की है।
2014 के बाद से ही आमने-सामने गहलोत-पायलट
सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच तकरार की बात करें तो पिछले विधानसभा चुनाव में ही यह खुलकर सामने आ गई थी। 2014 में सचिन पायलट को राजस्थान कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया था। सचिन पायलट मनमोहन सरकार में मंत्री पद थे, जिसकी वजह से गांधी परिवार से उनका सीधा संपर्क था। इस वजह से राजस्थान के पुराने नेता गांधी परिवार से संपर्क नहीं कर पाते थे, ऐसे समय में अशोक गहलोत ने इन नेताओं का सहारा बने थे। गहलोत ने 2018 में इन नेताओं को टिकट दिलाने से लेकर मंत्री पद दिलाने तक में अहम भूमिका निभाई थी।
क्यों गहलोत को पसंद नहीं सचिन पायलट
राजस्थान में जब 2018 में कांग्रेस पार्टी की वापसी हुई तो सचिन पायलट प्रदेश के मुख्यमंत्री पद पर दावेदारी ठोकने लगे। लेकिन गांधी परिवार के करीब होने की वजह से गहलोत मुख्यमंत्री बन गए, लेकिन दो साल के बाद तकरीबन 18-20 विधायकों ने गुरुग्राम में एक होटल में डेरा डालकर सत्ता पलटने की कोशिश की। लेकिन किसी तरह से गहलोत अपनी सरकार को बचाने में सफल रहे। हालांकि उस वक्त सचिन पायलट राहुल गांधी के हस्तक्षेप की वजह से मान गए थे, लेकिन समय-समय पर वह गहलोत सरकार को आईना दिखाने से नहीं चूकते थे। समय-समय पर जिस तरह से पायलट गहलोत सरकार को कटघरे में खड़ा करते थे, उसकी वजह से गहलोत पायलट को कतई पसंद नहीं करते थे।
आखिर क्यों मुख्यमंत्री पद पर बने रहना चाहते हैं गहलोत
राजस्थान में गहलोत ने जिस तरह से पर्दे के पीछे से खेल रचा उससे साफ है कि उन्होंने यह संदेश देने की कोशिश की है कि जिस व्यक्ति को आलाकमान प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाना चाहता है उसके पास विधायकों का समर्थन ही नहीं है। गहलोत जानते हैं कि अगर सचिन पायलट मुख्यमंत्री बनते हैं तो उनकी दोबारा वापसी मुश्किल हो जाएगी क्योंकि वह पार्टी के युवा नेता के तौर पर लोकप्रिय होंगे। जबकि पायलट की जगह अगर कोई और मुख्यमंत्री बनता है तो गहलोत की वापसी की संभावना बनी रहेगी। गहलोत को यह भी पता है कि कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद अगर पार्टी 2024 का चुनाव हारती है तो राजनीति में उनके सभी विकल्प खत्म हो जाएंगे।