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Balwant Singh: 97 साल के सैनिक ने नहीं मानी हार, 50 साल की लंबी लड़ाई बाद जीती पेंशन की जंग

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जयपुर, 10 नवंबर: राजस्थान के शेखावाटी अंचल का झुंझुनूं जिला जितना देश की रक्षा करने के लिए सैनिकों को सीमा पर भेजता हैं, उतने ही यहां के जवानों ने देश की सुरक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी है। यहां के हर घर से एक बेटा सेना में जाने का जज्बा रखता है और उसके लिए पूरी जी जान से मेहनत करता है। देश की सरहद पर दुश्मनों के छक्के छुड़ाने वाले शेखावाटी के लाल अगर कुछ करने की ठान ले तो फिर पीछे नहीं हटते, जिसका जीता जागता उदाहरण 97 वर्षीय बुजुर्ग फौजी बलवंत सिंह ने दिया है।

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Rajasthan: बुजुर्ग सैनिक ने 97 साल के उम्र में जीती Pension की जंग, जानें कहानी | वनइंडिया हिंदी
 युद्ध विकलांगता पेंशन की मिली अनुमति

युद्ध विकलांगता पेंशन की मिली अनुमति

जी हां, झुंझुनूं के रहने वाले 97 साल के फौजी बलवंत सिंह ने आखिरकार सिस्टम से चली अपनी लंबी लड़ाई को जीत लिया। पिछले 50 सालों से अपनी विकलांगता पेंशन का इंतजार कर रहे बलवंत सिंह ने मंगलवार को एक लंबी व्यक्तिगत लड़ाई जीती, अब सैन्य न्यायाधिकरण ने उन्हें सरकार की युद्ध विकलांगता पेंशन की अनुमति दे दी है। बलवंत सिंह ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 15 दिसंबर, 1944 को इटली में मित्र देशों की सेना के लिए भारतीय दल के साथ लड़ते हुए एक बारूदी सुरंग विस्फोट में अपना बायां पैर खो दिया, और दो साल बाद युद्ध के घावों के लिए उनके सेवा से बाहर कर दिया।

5 दशकों तक पेंशन का इंतजार

5 दशकों तक पेंशन का इंतजार

सेना से बाहर रहने के बाद जो सबसे दुखद था वो यह कि उनको अपना पैर गंवाने के बाद भी कई सालों तक पेंशन का इंतजार करना पड़ा, लेकिन वो सिस्टम से थक हार घर नहीं बैठें और उन्होंने खुद पर भरोसा रखते हुए सिस्टम से आर-पार की लड़ाई लड़ते हुए अपनी पेंशन की जंग जीतने में कामयाबी हासिल की। इधर, राज्य सरकार से भी उनके परिवार को कोई मदद नहीं मिली। लेकिन उन्होंने अपना हौसला बनाएं रखा और सिस्टम से जंग लड़ने के लिए अपनी लंबी लड़ाई को आखिर तक लड़ने की ठानी।

पेंशन में आखिर क्यों हो रही दिक्कत?

पेंशन में आखिर क्यों हो रही दिक्कत?

दरअसल, द्वितीय विश्व युद्ध के सैनिक बलवंत सिंह साल 1943 में 3/1 पंजाब रेजिमेंट में शामिल हुए और द्वितीय विश्व युद्ध से लौटने के बाद राजपूताना राइफल्स में ट्रांसफर हो गए, उन्होंने एक पेंशन के लिए अप्लाई किया था, जिसे सरकार ने 1972 में पेश किया था, जो सेवा से छुट्टी दे चुके भारतीय सैनिकों को आजादी के बाद से विभिन्न युद्धों में घावों के कारण आखिरी वेतन का 100% की गारंटी देता था। हालांकि, जिन सैनिकों ने अपने अंग खो दिए थे या दूसरे विश्व युद्धों में जीवन भर के लिए अपंग हो गए थे, उन्हें इस सेवानिवृत्ति योजना से बाहर रखा गया था। बता दें कि अकेले द्वितीय विश्व युद्ध में 2.5 मिलियन से अधिक भारतीय लड़े थे, लेकिन नियम नहीं होने की वजह से उन्हें बहुत मुसीबत झेलनी पड़ी, लेकिन कानूनी रूप से पेंशन के हकदार होने के चलते उन्हें आखिरकार इंसाफ मिल गया।

बकाया के साथ मिलेगी 2008 से 100% पेंशन

बकाया के साथ मिलेगी 2008 से 100% पेंशन

आपको बता दें कि सशस्त्र बल न्यायाधिकरण की नई दिल्ली खंडपीठ ने इस मामले को अपनी जयपुर इकाई से संभालते हुए, जो 2010 से इसकी सुनवाई कर रही थी ने मंगलवार को गैर-सैनिक के पक्ष में फैसला सुनाया। चेन्नई के एक प्रशासनिक सदस्य ने कहा कि सिंह को बकाया के साथ 2008 से 100% पेंशन मिलेगी, जो कि मामला दर्ज करने से तीन साल पहले की है। सिंह के वकील कर्नल (सेवानिवृत्त) एस बी सिंह ने कहा कि द्वितीय विश्व युद्ध के दिग्गज और उनका परिवार इस खबर से खुश हैं। बलवंत सिंह की विकलांगता 100% है, क्योंकि उन्होंने अपना बायां पैर खो दिया था।

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English summary
second World War 97 year old Jhunjhunu's Sepoy Balwant Singh wins pension battle
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