मांगणियार लोक कला : रेगिस्तान के धोरों में दफन होता रोजगार, कलाकारों के सामने रोजी-रोटी का संकट
बाड़मेर। कानों में मिश्री घोलती खड़ताल की आवाज खामोश है। कालबेलिया-घूमर डांस में थिरकने वाले कदम ठहर से गए हैं। घुंघरू शांत हो चुके हैं। कठपुतलियों को नचाने वाली उंगलियां भी बेजान-सी हैं। हम बात कर रहे हैं मांगणियार लोक कलाकारों की, जो राजस्थान की शान हैं।
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आजीविका के लिए संघर्ष कर रहे मांगणियार लोक कलाकार
देश-विदेश के कई मंचों पर राजस्थान की इस लोक कला को पहुंचाने का श्रेय इन्हीं को जाता है, मगर कोरोना महामारी इन पर काल बनकर बरपी है। इनके सामने रोजी-रोटी का संकट मंडरा रहा है। रोजगार तो मानों रेगिस्तान के धोरों में दफन होता जा रहा है। पश्चिमी राजस्थान में बहुतायत से रहने वाले मांगणियार लोक कलाकार पिछले कई महीनों से अपने जजमानों के घर बंद हो चुके आयोजनों की वजह से आजीविका के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
डेढ़ हजार लोक कलाकार हुए बेरोजगार
बता दें कि राजस्थान के अकेले बाड़मेर और जैसलमेर जिले में करीब 150 गांव-ढाणियों में डेढ़ हजार से ज्यादा मांगणियार लोक कलाकार हैं। इन कलाकारों के पास सबसे ज्यादा काम सर्दी और गर्मियों में आता है। सर्दियों का सीजन तो अच्छा निकला, लेकिन वर्ष 2020 की गर्मियां बिना रोजगार मिले जा रही हैं। जांगड़ा, मांड गायकी के उस्ताद गाज़ी खान बताते हैं कि 'हमें सरकारी कार्यक्रम भी काफी संख्या में मिला करते थे, लेकिन इस बार कोरोना के चलते ये भी नहीं हुआ।
रोशन गुणसार बने सहारा
कलाकार वर्ग के लिए कई संस्थाओं ने सोशल मीडिया पर लाइव प्रोग्राम करवाकर उनको क्राउड फंडिंग के जरिए सहायता के प्रयास भी किए हैं। द मांगणियार फ्यूजन शो के रोशन गुणसार अब तक करीब 60 एपिसोड कोरोना के समय में कलाकार वर्ग के साथ उनके लिए क्राउड फंडिंग जुटाने के लिए कर चुके हैं। रोशन के अनुसार वह कोशिश तो कर रहे हैं, लेकिन यह कोशिश अपर्याप्त है। सरकार को चाहिए कि लोक कलाकारों के लिए कोई विशेष कार्ययोजना तैयार करें ताकि यह कला काल में भी जिंदा रह सके।
क्या है मांगणियार लोक कला?
भारत में पीढी दर पीढ़ी चली आ रही पारंपरिक कलाओं को लोक कला कहा जाता है। इन्हीं में से एक है मांगणियार लोक कला। इस कला से जुड़े लोग भारत के बाड़मेर और जैसलमेर जिलों में तथा पाकिस्तान में सीमा से सटे सिंध प्रांत में पाए जाते हैं। यह वंशानुगत पेशेवर संगीतकारों का एक समूह हैं।
क्या है मांगणियार गायन शैली?
राजस्थान के पश्चिमी क्षेत्र विशेषकर जैसलमेर और बाड़मेर की प्रमुख जाति मांगणियार का मुख्य पैसा गायन और वादन है। मांगणियार जाति मूल सिन्ध जंक्शन की है। यह मुस्लिम जाति है। मांगणियार लोक कला का मुख्य उपकरण यंत्र कमायचा और खड़ताल है। इस गायन शैली में 6 रंग व 36 रागिनियों का प्रयोग होता है। यहां के कई लोक कलाकार झोपड़ों से निकलकर लंदन के अलबर्ट हॉल तक पहुंचने में सफल रहे हैं।
मांगणियार लोक कलाकारों के गीतों में इनका जिक्र
प्रकृति के विभिन्न उपादानों को इन गीतों में बड़ी करूण अभिव्यक्ति मिली है। चमेली, मोगरा, हंजारा, रोहिडा के फूल भी और कुरजा, कोआ, हंस, मोर (मोरिया), (तोता) सुवटिया, सोन चिड़िया, चकवा-चकवी जैसी प्रेमी-प्रेमिका प्रियतमाओं, विरही-विरहणियों आदि के सुख-दुख की स्थितियों में संदेश वाहक बने हैं। विश्व भर में अपनी जादुई आवाज़, खड़ताल वादन के माध्यम से अपनी धाक जमाने वाले कलाकारों ने थार नगरी का नाम दुनिया में ऊंचा किया है।
मांगणियार लोक कलाकारों के गीत
बाड़मेर जिले के कण-कण में लोकगीत रचे बसे हैं। माटी की सोंधी महक इन लोकगीतों के स्वर को नई ऊंचाइयां प्रदान करती है। फागोत्सव के दौरान फाग गाने की अनूठी परम्परा, बालकों के जन्म के अवसर पर हालरिया, विरह गीत, मोरूबाई, दमा-दम मस्त कलन्दर, निम्बुड़ा-निम्बुड़ा, बींटी महारी, सुवटिया, इंजन री सीटी में मारो मन डोले, बन्ना गीत, अम्मादे गाड़ी रो भाड़ो, कोका को बन्नी फुलका पो सहित सैंकडों लोकगीत राजस्थान की समृद्धशाली परम्पराओं का निर्वाह कर रहे हैं।
मांगणियार लोक कलाकारों ने बॉलीवुड में भी दी आवाज
बाड़मेर में मांगणियार वर्ग के कलाकारों ने कई बॉलीवुड फिल्मों में भी अपनी आवाज़ दी है। आजकल ममे खान, स्वरूप खान, मोती खान जैसे युवा कलाकार अपनी धमक और चमक जमाए हुए हैं तो पद्मश्री उस्ताद अनवर खान, उस्ताद गाज़ी खान, कुटले खान, भूंगर खान जैसिंधर जैसे कलाकार भी यहीं के रहने वाले हैं।
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