पंजाब में सिख फैक्टर ने कैसे बनाया और बिगाड़ा कैप्टन अमरिंदर सिंह का खेल ? जानिए
चंडीगढ़, 19 सितंबर: पंजाब में हुई पिछली जनगणना के मुताबिक वहां सिखों की आबादी 57.69 % है। जाहिर है कि यहां कोई भी पार्टी की सरकार बने सिखों का समर्थन बहुत ही जरूरी है। पिछले दो दशकों से भी ज्यादा वक्त तक कैप्टन अमरिंदर सिंह वहां कांग्रेस में सिखों के सबसे प्रभावशाली नेता रहे तो इसके पीछे सिख समाज में उनकी लोकप्रियता ही रही है। पिछले चुनाव में जब कैप्टन के कद को भुनाकर कांग्रेस ने अकाली दल को हटाकर सत्ता पाई तो यह इसलिए संभव हुआ कि कई कारणों से अकाली दल ने समुदाय में अपनी लोकप्रियता खो दी थी और उसकी पकड़ ढीली पड़ी थी। लेकिन, कैप्टन अमरिंदर सिंह को जिस स्थिति में अब मुख्यमंत्री का पद छोड़ना पड़ा है, उसके पीछे भी सिखों की उनसे मायूसी को ही एक बड़ा कारण माना जा रहा है।
सिख फैक्टर ने अमरिंदर के लिए कैसे काम किया ?
ऑपरेशन ब्लू स्टार के खिलाफ जब कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपनी लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया तो वह पूरे सिख समुदाय के एक सशक्त राजनेता के तौर पर उभरे थे। न सिर्फ पंजाब में बल्कि देश के बाकी हिस्सों और यहां तक की प्रवासी सिखों में भी उनका सम्मान बहुत बढ़ गया था। 1984 की सिख-विरोधी घटनाओं के 14 साल बाद जब 1998 में वे दोबारा वापस कांग्रेस में शामिल हुए, तो भी सिखों के बीच उनकी लोकप्रियता बरकरार रही। 2017 में जब अमरिंदर की अगुवाई में पंजाब में फिर से कांग्रेस सत्ता में काबिज हुई तो उसके पीछे भी सिखों से जुड़ा बरगारी बेअदबी मामला ही हावी रहा, जिसने शिरमणि अकाली दल-बीजेपी सरकार के खिलाफ अमरिंदर की वापसी का रास्ता साफ किया। लेकिन, पांच साल बाद अमरिंदर की बेरंग विदाई के पीछे भी वही घटना बहुत बड़ी वजह बन गई।
सिखों के बीच अमरिंदर की लोकप्रियता का कांग्रेस ने उठाया फायदा
पंजाब के सिखों पर कैप्टन की शख्सियत के जादू की वजह से ही 1999 में कांग्रेस खुद को फिर से जिंदा कर सकी। इससे पहले के तीन चुनावों में, यानी 1996 और 1998 के लोकसभा चुनावों और 1997 के विधानसभा चुनावों में पार्टी को भारी नुकसान हुआ था, क्योंकि वह सिख समुदाय के लिए पूरी तरह अछूत बनी हुई थी। इसी तरह से 2017 के चुनाव से पहले भी बेअदबी और पुलिस फायरिंग का मामला सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बन गया था। इसके अलावा उसी समय पंजाब में ड्रग्स के कारोबार के तूल पकड़ने और उसको लेकर आई बॉलीवुड की फिल्म 'उड़ता पंजाब' और अवैध खनन ने भी अकाली दल की सरकार को बहुत ज्यादा अलोकप्रिय करने में बड़ी भूमिका निभाई। नतीजा ये हुआ कि सत्ताधारी दल पिछले चुनाव में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बाद तीसरे नंबर पर पहुंच गई।
कांग्रेस को आधी से ज्यादा सीटें सिखों के प्रभाव वाले इलाकों में मिली
अगर 2017 के पंजाब विधानसभा का विश्लेषण करें तो राज्य की 117 सीटों में से कांग्रेस जिन 77 सीटों पर जीती उनमें से 40 ग्रामीण इलाकों में हैं और उन सबमें सिख समुदाय काफी ज्यादा प्रभावशाली भूमिका में है। जब पंजाब में कैप्टन की अगुवाई वाली सरकार बन गई तब भी बेअदबी का मामला सुर्खियों में बना रहा। अमरिंदर ने जांच के लिए जस्टिस रणजीत सिंह आयोग का गठन किया, जिसने एक विस्तृत रिपोर्ट भी दी। पंजाब में विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर उसपर चर्चा कराई गई। इससे कांग्रेस को सिख समुदाय में अपनी पैठ बनाने में और मदद मिली और अकाली दल के खिलाफ माहौल तैयार हुआ।
सिद्धू लगातार बिगाड़ते रहे कैप्टन का खेल!
2018 में बरगारी बेअदबी केस को सीबीआई से पंजाब को सौंपने के लिए विधानसभा से एक प्रस्ताव भी पास कराया गया, लेकिन यह हो नहीं पाया। हालांकि, बहबल कलां फायरिंग में जांच थोड़ी आगे भी बढ़ी, लेकिन बेअदबी के बाकी मामलों में ज्यादा प्रगति नहीं हो पाई। इस दौरान अमरिंदर को करतारपुर कॉरिडोर से संबंधित कुछ टिप्पणियों के लिए अपने ही समुदाय की आलोचनाओं का शिकार होना पड़ा, और सिद्धू को उसे हवा देने का बढ़िया मौका मिल गया।
कितनी संपत्ति के मालिक हैं सुखजिंदर सिंह रंधावा ?
पांच साल पहले के चुनावी हलफनामे के मुताबिक सुखजिंदर सिंह रंधावा के पास अपनी 29,39,894 रुपये की चल संपत्ति थी। जबकि, उनकी पत्नी के पास 13,56,804 रुपये की चल संपत्ति थी। इसके अलावा वे 2,55,00,000 रुपये की अचल संपत्ति के मालिक थे और उनकी पत्नी के पास 60 लाख रुपये की अचल संपत्ति थी।