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रेत के तूफानों से खाड़ी देशों में हर साल हो रहा है अरबों का नुकसान

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इराक में पिछले दो महीने में नौ बार आ चुके हैं रेत के तूफान

बगदाद, 06 जुलाई। पिछले दो महीने से इराक के लोग रेत की चादर तले रहने, काम करने और सांस लेने को मजबूर हैं. इस दौरान देश में रेत के कम से कम नौ तूफान आ चुके हैं. ये तूफान कई कई दिन तक रहते हैं और कंबल की तरह सब कुछ ढक लेते हैं.

इन तूफानों के चलते अस्पतालों में भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या बढ़ गई है. सांस की परेशानी के कारण डॉक्टरों के पास जाने वाले मरीजों की संख्या बढ़ गई है, स्कूल-कॉलेजों को बंद रखना पड़ा है और कई बार विमानों को देरी हुई अथवा वे उड़ ही नहीं पाए.

पर्यावरण के लिए काम करने वाली एक समाजसेवी संस्था नेचर इराक के संस्थापक आजम अलवाश कहते हैं, "बिना मुंह ढके मैं घर से बाहर निकल ही नहीं सकता. निकलूंगा तो खांसने लगूंगा. अभी हाल में ही जो तूफान आया था उसके कारण दो दिन तक मैं घर में ही बंद रहा. मुझे दमे की बीमारी है तो अपने फेफड़ों की खातिर मुझे अंदर रहना पड़ता है."

इराक, ईरान, सीरिया और अन्य खाड़ी देशों के लिए रेत के तूफान कोई नई चीज नहीं है. मई से जुलाई के बीच इनका आना सदा से आम बात रही है क्योंकि तब उत्तर-पश्चमी हवाएं चलती हैं जो भारी मात्रा में रेत लेकर आती हैं. लेकिन आजकल ये तूफान बहुत जल्दी-जल्दी आने लगे हैं और कभी जो इनकी संख्या साल में एक-दो हुआ करती थी, अब उनकी संख्या भी बढ़ गई है. अब ये तूफान मार्च में ही शुरू हो जाते हैं और बहुत बड़े क्षेत्र को प्रभावित करते हैं.

सरकारें इन तूफानों के कारण आईं आपदाओं से निपटने में काफी संघर्ष कर रही हैं. पर्यावरणविद और सरकारी अधिकारियों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन और जल संसाधनों के खराब प्रबंधन के कारण खतरा और ज्यादा बड़ा होता जा रहा है क्योंकि इनके कारण क्षेत्र की मिट्टी रेत में तब्दील हो रही है. वे लोग चेतावनी देते हैं कि बढ़ते तापमान और बदले मौसम का संकेत है कि हालात अभी और बुरे होंगे. विशेषज्ञों का कहना है कि इससे बचने का उपाय यही है कि सरकारें मिलकर काम करें और जलवायु परिवर्तन को बढ़ाने वाले उत्सर्जन को कम करें.

'ध्यान नहीं दे रहीं सरकारें'

न्यूयॉर्क के सिटी कॉलेज में शोध वैज्ञानिक कावे मदानी कहते हैं कि रेत के तूफानों के खतरों को स्थानीय सरकारें बहुत लंबे समय से टालती रही हैं. वह कहते हैं, "यह सीमाओं और पीढ़ियों के पार फैला एक मुद्दा है और हर साल खतरनाक होता जा रहा है."

ईरान के पर्यावरण विभाग के अध्यक्ष रह चुके मदानी बताते हैं, "यह बेहद निराशाजनक है कि 21वीं सदी की सबसे बड़ी पर्यावरणीय समस्याओं से एक को बड़ी सरकारों और वैज्ञानिक एजेंसियों उचित मान्यता तक नहीं दे रही हैं."

ये तूफान इतने खतरनाक होते हैं कि एक तूफान हजारों किलोमीटर की दूरी तय कर सकता है और अपने रास्ते में दर्जनों देशों में तबाही मचा सकता है. ये तूफान भवनों, बिजली की तारों और अन्य महत्वपू्र्ण ढांचों को नुकसान पहुंचाते हैं, फसलें तबाह कर देते हैं और वायु व सड़क परिवहन को प्रभावित करते हैं.

वर्ल्ड बैंक की 2019 की एक रिपोर्ट कहती है कि मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में रेत के तूफानों के कारण हर साल लगभग 13 अरब डॉलर यानी लगभग दस खरब रुपये का नुकसान होता है. विशेषज्ञ खराब जल प्रबंधन को इस नुकसान की बड़ी वजह मानते हैं. मध्य पू्र्व और उत्तरी अफ्रीका में 85 प्रतिशत पानी सिंचाई में प्रयोग होता है.

खेती का तरीका बदलना होगा

जलवायु विशेषज्ञ कहते हैं कि खेती की तकनीकें पर्यावरण के अनुकूल नहीं हैं. जैसे कि जरूरत से ज्यादा चराई, रसायनों व मशीनों का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल और अत्याधिक सिंचाई होती है जिसे अक्सर पानी पर मिलने वाली सब्सिडी से बढ़ावा मिलता है. ये नीतियां इलाके के मरुस्थलीकरण को बढ़ा रही हैं.

साथ ही मदानी क्षेत्र में बन रहे बांधों को भी एक बड़ी वजह मानते हैं. वह कहते हैं कि बड़ी-बड़ी नदियों पर बांध बनाए जा रहे हैं जिस कारण समस्या बढ़ रही है. मदानी कहते हैं, "इसे अगर आप जमीन का बदला इस्तेमाल, वनों की कटाई और खाली पड़े खेतों से मिला दें तो बार-बार आने वाले बड़े तूफान तैयार हो जाते हैं."

यूएन के आर्थिक और सामाजिक आयोग के उप महासचिव कावे जाहेदी कहते हैं, "इलाके में सूखे का बढ़ना खासतौर पर चिंता का विषय है." वह सलाह देते हैं कि प्रभावित देशों को पूर्व चेतावनी और पूर्वानुमान देने वाली तकनीकों में निवेश करना चहिए, ज्यादा दक्ष जल और भूमि प्रबंधन नीतियां बनानी चाहिए और सबसे कमजोर प्रभावित तबकों की मदद के लिए सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध करानी चाहिए.

वीके/सीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)

Source: DW

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English summary
ninth sandstorm in less than two months shuts down much of iraq
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