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ये वैज्ञानिक कामयाब रहे तो नहीं रहेगी इंसुलिन के इंजेक्शन की जरूरत

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Provided by Deutsche Welle

कैनबरा, 04 अगस्त। ऑस्ट्रेलिया की मोनाश यूनिवर्सिटी में हुए अपने तरह के इस पहले अध्ययन में एक ऐसा रास्ता खोजा गया है जिसके जरिए ऐसी प्रक्रिया तैयार की जा सकती है कि पेंक्रियाटिक स्टेम कोशिकाओं में इंसुलिन अपने आप बनने लगे. अगर ऐसा हो पाता है तो टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज के इलाज में यह क्रांतिकारी कदम साबित हो सकता है.

इस शोध में शोधकर्ताओं ने टाइप 1 डायबिटीज के मरीज द्वारा दान की गईं पेंक्रियाज कोशिकाओं पर अध्ययन किया. उन्होंने अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन द्वारा मंजूरशुदा एक दवा का इस्तेमाल किया, जो अभी डायबिटीज के इलाज में प्रयोग नहीं की जाती. शोधकर्ताओं ने इस दवा के जरिए पेंक्रियाज स्टेम कोशिकाओं को दोबारा सक्रिय करने और 'इंसुलिन एक्सप्रेसिंग' बनाने में कामयाब रहे.

शोधकर्ताओं का कहना है कि अभी इस दिशा में और शोध की जरूरत है लेकिन कामयाब होने पर इसका इलाज डायबिटीज को ठीक करने में हो सकता है. इस तरीके से टाइप 1 डायबिटीज के कारण नष्ट हो गईं कोशिकाओं की जगह नई कोशिकाएं ले लेंगी जो इंसुलिन का उत्पादन कर सकेंगी.

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ऑस्ट्रेलिया की मोनाश यूनिवर्सिटी में डायबिटीज विशेषज्ञ प्रोफेसर सैम अल-ओस्ता और डॉ. इशांत खुराना ने यह शोध किया है. पूरी तरह कामयाब होने पर यह शोध डायबिटीज के मरीजों की इंसुलिन का इंजेक्शन लेने की जरूरत को खत्म कर सकता है. सिर्फ ऑस्ट्रेलिया में ही हर रोज औसतन सात बच्चों में डायबिटीज का पता चलता है जिसके कारण उन्हें नियमित रूप से खून की जांच और इंसुलिन के इंजेक्शन पर निर्भर रहना पड़ता है, क्योंकि उनका पेंक्रियाज ठीक तरह से काम नहीं कर पाता और इंसुलिन नहीं बना पाता.

खतरनाक हो चुकी है डायबिटीज

दुनियाभर में डायबिटीज के मामले 50 करोड़ को पार कर चुके हैं और यह रोग सबसे खतरनाक बीमारियों में शामिल है. इस रोग के लिए समुचित इलाज भी उपलब्ध नहीं है जो दुनियाभर के शोधकर्ताओं के सामने एक बड़ी चुनौती है. प्रोफेसर अल-ओस्ता ने एक बयान में कहा, "हम समझते हैं कि हमारा शोध बहुत खास है और नया इलाज खोजने की दिशा में एक अहम कदम है."

नेचर पत्रिका में छपे इस शोध के मुताबिक पेंक्रियाज की मरी हुई कोशिकाओं की जगह नई कोशिकाओं को सक्रिय करने के लिए शोधकर्ताओं को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा. आमतौर पर माना जाता है कि एक बार खराब हो जाने के बाद पेंक्रियाज को ठीक नहीं किया जा सकता. प्रोफेसर अल-ओस्ता बताते हैं कि जब तक किसी व्यक्ति में टाइप वन डायबिटीज (टी1डी) का पता चलता है, तब तक इंसुलिन बनाने वाले उसकी बहुत सारी पेंक्रियाज बीटा कोशिकाएं नष्य हो चुकी होती हैं.

प्रोफेसर अल-ओस्ता बताते हैं, "इस अध्ययन से पता चला है कि डायबिटीज ग्रस्त पेंक्रियाज इंसुलिन बनाने के अयोग्य नहीं हो जाता." वह कहते हैं कि मरीजों को रोज इंसुलिन का इंजेक्शन लेने पर निर्भर होना पड़ता है, जो इंसुलिन उनके पेंक्रियाज में बन सकती थी. अल-ओस्ता कहते हैं, "इसका एकमात्र प्रभावी विकल्प पेंक्रियाटिक आइलेट ट्रांसप्लांट है. इससे डायबिटीज के मरीजों की सेहत के लिए नतीजे तो बेहतर मिले हैं लेकिन ट्रांसप्लांट किसी द्वारा दान पर निर्भर करता है, इसलिए इसका ज्यादा प्रयोग नहीं हो पा रहा है."

शोध में शामिल रहे एक अन्य विशेषज्ञ डॉ. अल-हसानी कहते हैं कि दुनिया की आबादी लगातार बूढ़ी हो रही है और टाइप 2 डायबिटीज को लेकर चुनौतियां बढ़ रही हैं जो मोटापे में वृद्धि से भी जुड़ा है, और इसलिए डायबिटीज के इलाज की जरूरत बहुत ज्यादा है.

डॉ. अल-हसानी कहते हैं, "मरीजों तक इसे पहुंचाने से पहले कई तरह के मसलों के हल की जरूरत है. इन कोशिकाओं को परिभाषित करने के लिए और ज्यादा काम करने की जरूरत है. मुझे लगता है कि इलाज अभी काफी दूर है. लेकिन यह एक पक्के इलाज की दिशा में अहम कदम हो सकता है."

Source: DW

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English summary
new discovery could pave the way for improved treatments for diabetes
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