बीजेपी-शिवसेनाः बहुत बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले...
मुंबई। शिवसेना के साथ जो अब घटित हुआ है उसको देख सुनकर मिर्जा गालिब की पंक्तियां याद आ रही हैं कि बहुत बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले। विधानसभा चुनाव से पहले के अड़ियल रुख के कारण शिवसेना को दिल्ली से हताश होकर ही लौटना पड़ा है। शिवसेना सरकार बनाना भी चाहती है लेकिन अपनी शर्तों पर। काफी देर तक भाजपा का इंतजार मुंबई में करने के बाद खुद शिवसेना के दो वरिष्ठ नेता दिल्ली भाजपा के वरिष्ठ नेताओं से मिलने पहुंच गए। हालत तो देखिए शिवसेना के नेताओं से भाजपा नेताओं ने मिलना भी सही नहीं समझा।
दरअसल, शिवसेना अनिल देसाई और सुभाष देसाई दिल्ली राजनाथ सिंह से मिलने के लिए गए थे। उनसे मुलाकात नहीं होने के कारण उन्हें ऐसे ही मुंबई लौटना पड़ा है।
धोखा मानती है शिवसेना
इसमें हैरान करने वाली बात तो यह है कि शिवसेना से पिछले पच्चीस साल से गठबंधन रखने का दावा करने वाली पार्टी भाजपा शिवसेना से खफा नजर आ रही है। गठबंधन टूटने औऱ दोनों पार्टियों के एजेंडे के इस तरह टूट जाने की शायद ही किसी ने कल्पना की होगी।
लोकसभा चुानव में शिवसेना ने नरेंद्र मोदी का समर्थन करते हुए उन्हें वहां जीतने में एक साथी के तौर पर मदद की थी। हो सकता है कि तब भाजपा ने गुप्त विचार-विमर्श के दौरान शिवसेना से कहा हो कि कभी टाइम आने पर हम आपके काम आएंगे और आप हमारे आइए।
इसी बात के संकेत खुद एक बार उद्धव ठाकरे ने भी दिए थे। उन्होंने मीडिया में कहा था कि शिवसेना ने नरेंद्र मोदी की मदद की थी और अब वह हमारा टारगेट महाराष्ट्र में पूरा करने के लिए मदद करें। इससे इस संभावनाओं को बल मिलता है कि लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा औऱ शिवसेना के बीच कई वायदे हुए होंगे।
जिसको पूरा नहीं होते देख शिवसेना ने भाजपा का कड़ा विरोध किया। शिवसेना कई बार इस बात को दोहराया कि भाजपा ने उन्हें धोखा दिया है।
इस धोखे की बात अगर सही है तो यह पंक्तियां फिर सही बैठेंगी- 'निकलना खुल्द से आदम का सुनते आये हैं लेकिन, बहुत बे-आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले' मतलब स्वर्ग (खुल्द) से इंसानियत का सुनते आए थे लेकिन तेरी रास्ते से हम बेआबरू होकर निकले। ठीक ऐसा ही अभी शिवसेना को महसूस हो रहा होगा।
भाजपा की हालत
गौरतलब है कि भाजपा को विधानसभा में 122 सीटें मिली हैं। वहीं 63 सीटें शिवसेना के पास हैं। भाजपा सबसे बड़ी पार्टी औऱ शिवसेना दूसरी बड़ी पार्टी बन गई है। ऐसे में शिवसेना वापस भाजपा के साथ आकर सरकार बनाना चाहती है। लेकिन भाजपा शिवसेना अलावा दूसरे विकल्प तलाश रही है। भाजपा को सरकार बनाने के लिए 23 सीटों की जरूरत है।