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भारतीय महिला को आठ साल गुलाम बनाकर रखने वाले पति-पत्नी को सजा

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नई दिल्ली, 22 जुलाई। विक्टोरिया राज्य की सर्वोच्च अदालत ने मेलबर्न में रहने वाले एक पति-पत्नी को एक भारतीय महिला को आठ साल तक गुलाम बनाकर रखने के आरोप में जेल की सजा सुनाई है. सजा सुनाते वक्त जज ने कहा कि यह "मानवता के खिलाफ अपराध" था.

Provided by Deutsche Welle

मेलबर्न के कांडासामी और कुमुथिनी कानन को विक्टोरिया की सुप्रीम कोर्ट ने जेल साल की सजा सुनाई है. 53 वर्षीय कुमुथिनी कानन को आठ साल जेल में बिताने होंगे और वह चार साल बाद परोल के लिए आवेदन कर पाएंगी.

57 वर्षीय कांडासामी कानन को छह साल की सजा हुई है और उन्हें तीन साल बाद ही परोल मिल सकेगी. यह पहली बार है जब ऑस्ट्रेलिया की अदालत में सिर्फ घरेलू दासता से संबंधित कोई मामला आया था. इस दंपति ने भारत की एक तमिल महिला को 2007 से 2017 के बीच आठ साल तक गुलाम बनाकर घर में रखा.

कुमुनिथि कानन को आठ साल की जेल हुई है

मुकदमे की सुनवाई के दौरान पति-पत्नी ने बार-बार अपने बेगुनाह होने की बात कही. उनके वकील ने संकेत दिया है कि वे इस फैसले के खिलाफ अपील कर सकते हैं. पति-पत्नी को अप्रैल में सुनवाई के बाद एक जूरी ने दोषी करार दिया था.

'घिनौनी मिसाल'

बुधवार को फैसला सुनाने की कार्रवाई लगभग तीन घंटे तक चली, जिसे देखने के लिए 200 से ज्यादा लोग मौजूद थे. फैसला सुनाते वक्त सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस जॉन चैंपियन ने कहा, "गुलामी को इंसानियत के खिलाफ अपराध माना जाता है. आपने जो किया है वह आपके बच्चों की मौजूदगी और समझ के दौरान रोज हुआ. आपने दूसरे लोगों के साथ कैसे बर्ताव किया जाना चाहिए, इसकी आपने उन लोगों के सामने एक बहुत घिनौनी मिसाल पेश की है.

आठ साल तक गुलाम बनाकर रखी गई महिला को कड़ा दुर्व्यवहार सहना पड़ा. उसे शारीरिक और मानसिक यातनाएं झेलनी पड़ीं और जब यह मामला सामने आया तब उसका वजन सिर्फ 40 किलो रह गया था.

जस्टिस चैंपियन ने कहा, "उसकी जिंदगी आपके घर तक ही सीमित थी और आप लोगों ने इस बात का ख्याल रखा कि उसकी हालत का समुदाय में बाकी लोगों को पता ना चले. यह आपका गंदा राज था. इस घिनौने व्यवहार के लिए अदालत आपकी सार्वजनिक तौर पर भर्त्सना करती है."

क्या है पूरी कहानी?

पीड़ित महिला अलग-अलग वक्त पर इस दंपती के लिए काम करने के वास्ते तीन बार भारत से ऑस्ट्रेलिया आई थी. दो बार वह भारत लौट गई थी. तीसरी बार 2007 में वह ऑस्ट्रेलिया आई और उसे गुलाम बना लिया गया.

उसे खाना बनाने, घर की सफाई करने और बच्चों के काम करने के लिए मजबूर किया गया. उसे सिर्फ 3.39 ऑस्ट्रेलियाई डॉलर यानी लगभग 185 रुपये रोजाना का मेहनताना दिया गया. ऑस्ट्रेलिया में मौजूदा न्यूनतम मजदूरी 20 डॉलर प्रतिघंटा यानी लगभग 1200 रुपये रोजाना है.

तस्वीरों मेंः आजाद भारत में आज सबसे ज्यादा गुलाम

उम्र के छठे दशक में पहुंच चुकी वह महिला वापस नहीं आई तो भारत में उसके परिवार को चिंता होने लगी. वे उससे संपर्क भी नहीं कर पा रहे थे तो 2015 में उन्होंने विक्टोरिया पुलिस से महिला की खबर लेने का आग्रह किया.

जब अधिकारी पूछताछ करने कानन दंपती के घर पहुंचे तो उन्होंने कहा कि उन्होंने तो महिला को 2007 से देखा ही नहीं है. जबकि तब महिला को एक फर्जी नाम से अस्पताल में भर्ती कराया गया था क्योंकि वह बेहोश होकर गिर पड़ी थी.

गुलामी की परिभाषा

बाद में महिला ने अधिकारियों को बताया कि उसे जमे हुए चिकन से पीटा गया था और उबलते पानी से जलाया गया था. जस्टिस चैंपियन ने फैसला सुनाते वक्त कहा, "वह एकदम कृशकाय हो गई थी और उसका वजन 40 किलो था."

कानन दंपती के वकीलों ने दलील दी कि महिला की शारीरिक प्रताड़ना के आरोपों को साबित नहीं किया जा सकता. उन्होंने कहा कि कानन दंपती ने उस महिला को परिवार के सदस्य की तरह रखा और उसे कभी बेड़ियों में नहीं जकड़ा.

जस्टिस चैंपियन ने कहा कि गुलामी की परिभाषा बदले जाने की जरूरत है. उन्होंने कहा, "हमें गुलामों की उस छवि को अपने मन से निकालने की जरूरत है जिसमें वे बेड़ियों में जकड़े या खेतों में बंधुआ काम करते नजर आते हैं. गुलामी उससे ज्यादा भी बहुत कुछ हो सकती है और हो सकता है कि उसमें शारीरिक बंधन न हों."

Source: DW

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English summary
melbourne couple who kept an indian womam as slave for eight years jailed
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