उद्धव की सरकार गिरते ही MVA में इस मुद्दे पर ठन गई, कांग्रेस बोली- शिवसेना के साथ गठबंधन स्थायी नहीं
नाशिक, 12 अगस्त: महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की सरकार गिरते ही महा विकास अघाड़ी में रार शुरू हो गया है। शिवसेना ने अपने एमएलसी को महाराष्ट्र विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष के लिए नामांकित किया है, लेकिन कांग्रेस को यह कतई मंजूर नहीं है। पार्टी ने यहां तक कह दिया है कि शिवसेना के साथ उसका गठबंधन खास परिस्थितियों में हुआ था और यह स्थायी नहीं है। एनसीपी ने भी शिवसेना के एकतरफा फैसले पर सवाल उठा दिया है। प्रदेश कांग्रेस ने कहा है कि वह इस मसले पर बड़े नेताओं से बात करेगी।
उद्धव की सरकार गिरते ही एमवीए में ठन गई
महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की सरकार गिरने के करीब डेढ़ महीने बाद महा विकास अघाड़ी गठबंधन के आपसी मतभेद खुलकर सामने आ गए हैं। मुद्दा है विधान परिषद में विपक्ष के नेता के पद का जिसके चलते कांग्रेस ने यहां तक कह दिया है कि ना तो उसका शिवसेना के साथ गठबंधन स्थायी है और ना ही यह स्वाभाविक गठबंधन है। महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष नाना पटोले ने शुक्रवार को विपक्ष के नेता के तौर पर शिवसेना के अंबादास दानवे की नियुक्ति को लेकर सख्त आपत्ति जताते हुए उद्धव ठाकरे की पार्टी को सीधी चेतावनी दे डाली है। उन्होंने कहा है कि शिवसेना के साथ जो गठबंधन हुआ था, वह 'अलग परिस्थितियों में ' हुआ था।
नेता विपक्ष का पद हमें मिलना चाहिए- कांग्रेस
दरअसल, पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे की पार्टी ने हाल ही में विधान परिषद में नेता विपक्ष के पद के लिए दानवे को चुना है, लेकिन कांग्रेस को यह बर्दाश्त नहीं हो रहा है। पार्टी का आरोप है कि यह कदम बिना उसे भरोसे में लिए उठाया गया है। नाना पटोले ने कहा, 'विधानसभा में नेता विपक्ष का पद राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को दिया गया है, जबकि काउंसिल में उपाध्यक्ष का पद शिवसेना को मिला। इसलिए हमारा यह मानना था कि कांग्रेस को यह (विधान परिषद में नेता विपक्ष) पद मिलना चाहिए था। लेकिन, हम पर गौर किए बिना ही यह फैसला ले लिया गया है। हम इस मुद्दे पर बात करेंगे।'
यह हमारा स्वाभाविक या स्थायी गठबंधन नहीं है-कांग्रेस
पटोले यहीं तक नहीं रुके। उन्होंने उद्धव ठाकरे की शिवसेना को सीधी चेतावनी दे डाली है। उन्होंने कहा, 'हम बातचीत के लिए तैयार हैं और आगे बढ़ने के लिए तैयार हैं। अगर वो (शिवसेना) बात नहीं करना चाहते तो यह उनका मसला है। हमने उनके साथ एक अलग परिस्थिति में गठबंधन किया था। यह हमारा स्वाभाविक या स्थायी गठबंधन नहीं है।' कांग्रेस के विधायक दल के नेता बालासाहेब थोराट ने भी शिवसेना के रवैए पर सवाल उठाया है।
शिवसेना के कदम पर एनसीपी को भी आपत्ति
ऐसा नहीं है कि शिवसेना के रवैए से सिर्फ कांग्रेस ही तमतमाई हुई है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक एनसीपी ने भी शिवसेना के कदम पर ऐतराज किया है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल ने कहा है कि शिवसेना को इस मसले पर शरद पवार से बात करनी चाहिए थी। उन्होंने कहा कि गठबंधन में पूर्ण तालमेल जरूरी है। वो बोले कि कांग्रेस के नेता ने इस पद को लेकर अपने उम्मीदवार का नाम हमारे सामने रखा था, लेकिन शिवसेना ने तो कोई संपर्क ही नहीं किया है।
ठाकने ने दानवे को दिया वफादारी का इनाम
78 सदस्यीय महाराष्ट्र विधान परिषद में बीजेपी के पास 24 एमएलसी हैं। जबकि, शिवसेना के 12 सदस्य हैं। वहीं कांग्रेस और एनसीपी के पास 10-10 एमएलसी हैं। जाहिर है कि जिस दल या गठबंधन के पास ज्यादा एमएलसी हैं, उन्हें चेयरमैन का पद मिलना आसान रहता है, जबकि दूसरे नंबर पर रहने वाली पार्टी या गठबंधन को नेता विपक्ष का पद मिलता है। अंबादास दानवे औरंगाबाद से हैं और शिवसेना के जमीनी नेता माने जाते हैं। शिवसेना में जब एकनाथ शिंदे गुट ने उद्धव ठाकरे के खिलाफ विरोध का झंडा उठाया तो क्षेत्र के पांच पार्टी एमएलए के उनके साथ जाने के बावजूद दानवे ने ठाकरे के साथ वफादारी दिखाई। (तस्वीरें-फाइल)