महाराष्ट्र में इस पद के लिए शिवसेना-एनसीपी में ठनी! उद्धव की पार्टी ने ठोंका दावा
मुंबई, 13 जुलाई: महाराष्ट्र में सत्ता जाते ही महा विकास अघाड़ी में शामिल दलों के बीच पहले वाली ट्यूनिंग का अभाव दिखने लगा है। अभी सरकार गिरते 15 दिन भी नहीं हुए हैं, लेकिन शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी के बीच विभिन्न गंभीर मुद्दों पर तालमेल का जबर्दस्त अभाव दिख रहा है। फिलहाल सभी दल सिर्फ अपने-अपने नजरिए से सोच रहे हैं। सत्ता का जो फेविकोल एक-दूसरे को जोड़े हुआ था, उसका असर खत्म हो चुका है। ताजा मामला महाराष्ट्र विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष का पद है, जिसपर एनसीपी की उम्मीदों को ठुकराते हुए उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली शिवसेना ने अपना दावा ठोक दिया है।
विधान परिषद में विपक्ष के नेता पद पर रेस
महाराष्ट्र विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष के पद के लिए महा विकास अघाड़ी गठबंधन की दो सहयोगी दलों शिवसेना और एनसीपी के बीच ही रेस लग गई है। एमवीए सरकार के सत्ता से बेदखल होने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने विधान परिषद में विपक्ष के नेता पद के लिए दावा ठोक दिया है। गौरतलब है कि विधानसभा में शिवसेना विधायकों की बगावत की वजह से उद्धव खेमे में विधायकों की संख्या पहले ही कम रह गई है, जिसकी वजह से विधानसभा में एनसीपी नेता और पूर्व डिप्टी सीएम अजित पवार को विपक्ष के नेता का पद मिला है। लेकिन, विधान परिषद में फिलहाल शिवसेना के सदस्यों की संख्या विपक्ष में सबसे ज्यादा है, फिर भी एनसीपी यहां भी नेता प्रतिपक्ष का पद चाहती है।
शिवसेना ने ठोका विपक्ष के नेता पद पर दावा
शिवसेना के एमएलसी के एक प्रतिनिधिमंडल ने विधान परिषद की उपसभापति नीलम घोरे से मिलकर नेता विपक्ष और चीफ व्हिप पद के पद के लिए दावा ठोका है। शिवसेना के प्रतिनिधिमंडल में पार्टी एमएलसी मनीषा कायंदे, सचिन अहिर, अंबादास दानवे, विलास पोटनिस और सुनील शिंदे शामिल थे। उन्होंने इस संबंध में उपसभापति को अपने दावे की एक चिट्ठी भी सौंपी है। हालांकि, शिवसेना एमएलसी में भी टूट का खतरा अभी बना हुआ है और कुछ विधान पार्षदों के एकनाथ शिंदे गुट में जाने की आशंका से इनकार नहीं किया जा रहा है।
विधान परिषद में अभी सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है शिवसेना
अगर महाराष्ट्र विधान परिषद में विपक्षी दलों के सदस्यों की संख्या को देखें तो शिवसेना के मुकाबले शरद पवार की पार्टी एनसीपी के दो सदस्य कम हैं। 8 जुलाई को 78 सदस्यीय महाराष्ट्र विधान परिषद में बीजेपी के 24, शिवसेना के 12 और एनसीपी-कांग्रेस के 10-10 सदस्य थे। इनके अलावा लोक भारती, पीजेंट्स एंड वर्कर्स पार्टी ऑफ इंडिया और राष्ट्रीय समाज पक्ष के 1-1 सदस्य थे। परिषद में 4 निर्दलीय सदस्य भी हैं, जबकि इस समय 15 सीटें खाली पड़ी हैं।
विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद एनसीपी को मिला है
दरअसल, विधानसभा में शिवसेना के 55 एमएलए थे। लेकिन, मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अगुवाई में 40 विधायक अलग हो गए और पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे के साथ सिर्फ 15 एमएलए बच गए, जिनमें से एक उनके बेटे आदित्य ठाकरे भी शामिल हैं। ठाकरे की पार्टी में हुई बगावत की वजह से ही शिवसेना-एनसीपी और कांग्रेस गठबंधन की सरकार करीब ढाई साल में गिर चुकी है। इसके बाद शिंदे गुट ने भाजपा के साथ हाथ मिलाकर सरकार बनाई है। विधानसभा में एनसीपी के 53 एमएलए हैं, इसी आधार पर विधानसभा में उसके नेता और पार्टी सुप्रीमो शरद पवार के भतीजे अजित पवार को नेता विपक्ष बनाया गया है।
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एमवीए गठबंधन में दरार शुरू
बता दें कि राष्ट्रपति चुनाव के मसले पर महा विकास अघाड़ी में दरार पहले ही पड़ चुकी है। शरद पवार और ममता बनर्जी की पहल पर यशवंत सिन्हा को राष्ट्रपति पद का साझा उम्मीदवार बनाने में जो शिवसेना साथ खड़ी थी, वही अब भाजपा की राष्ट्रपति पद की प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू को समर्थन दे रही है। महाराष्ट्र कांग्रेस के बड़े नेता बालासाहेब थोराट ने सार्वजनिक तौर पर नाराजगी जताई है। उन्होंने कहा है कि 'यह समझ से बाहर की बात है कि पार्टी (शिवसेना) मुर्मू का समर्थन क्यों कर रही है? जबकि, उसकी सरकार (महाराष्ट्र में) को गैर-लोकतांत्रिक तरीके से गिराया गया है।' उधर औरंगाबाद और उस्मानाबाद का नाम बदलने के पूर्व की उद्धव सरकार की घोषणा का अब शरद पवार ही विरोध करने लगे हैं। (इनपुट-पीटीआई)