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बुंदेलखंड में चमत्कारः प्रकृति ने खुद बनाया, सजाया भगवान भोलेनाथ का मंदिर

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सागर] 8 अगस्त। अभी तक आपने कई शिव मंदिर देखे होंगे और कई मंदिरों के बारे में सुना होगा, लेकिन हम आज आपको बुंदेलखंड के एक ऐसे अनोखे शिव मंदिर के बारे में बता रहे हैं, जिसमें खुद प्रकृति ने चमत्कार दिखाया है। जी हां, यह शिव मंदिर किसी प्रसिद्ध स्थान पर नहीं है, बल्कि बुंदेलखंड के सागर जिले के एक छोटे से गांव में है। हालांकि इसके इतिहास के बारे में तो कोई ज्यादा नहीं बता पाता, लेकिन यह मंदिर खुद इसकी प्राचीनता की कहानी बताता है।

जड़ें जमीन में सीधे जाने के बजाय दीवारों का निर्माण करती रहीं

जड़ें जमीन में सीधे जाने के बजाय दीवारों का निर्माण करती रहीं

पीपल की जड़ें सीधे जमीन में न जाकर पहले मंदिर की दीवारों का निर्माण करती हैं। जड़ें छत से चारों तरफ उतरीं] और इसकी प्रत्येक दीवार बनाती गईं। कुछ जड़ों ने मंदिर की दीवार को बाहर की ओर से कवर किया] तो कुछ जड़ों ने अंदर से दीवार बनाई। स्थिति यह है कि यदि सीमेंट कांक्रीट की दीवारें गिरा दी जाएं] तो भी मंदिर पूरी तरह बना हुआ है] यानी दीवार में कोई छेद तक नहीं बचेगा।

सागर से 66 किलोमीटर दूर स्थित है

सागर से 66 किलोमीटर दूर स्थित है

मप्र में सागर जिला मुख्यालय से 66 किलोमीटर दूर तहसील मुख्यालय केसली पहुंचिए। वहां से 17 किलोमीटर दूर सहजपुर जाना होगा। सहजपुर से नरसिंहपुर जिले के तेंदूखेड़ा के लिए जाने वाली सड़क पर करीब 5 किलोमीटर की दूरी पर कंजेरा महका गांव है। इसी गांव में सड़क किनारे यह मंदिर स्थिति है। इस मंदिर में आप प्रकृति का चमत्कार तो देखेंगे ही, गजब का सुकून भी महसूस करेंगे।

प्रकृति का चमत्कार ऐसा है कि आप इसे बार-बार देखना चाहेंगे

प्रकृति का चमत्कार ऐसा है कि आप इसे बार-बार देखना चाहेंगे

दरअसल, यहां विराजमान शिवजी के लिए कई वर्ष पूर्व एक मंदिर का निर्माण हुआ, कई सालों तक इसकी देखरेख हुई] लेकिन बाद के वर्षों में जब मंदिर की उचित मरम्मत नहीं की गई तो विधाता ने प्रकृति के माध्यम से इसका इंतजाम कर दिया। इस मंदिर की छत के एक कोने में अपने आप पीपल के एक पौधे ने जन्म लिया। धीरे- धीरे यह वृक्ष जितना ऊपर की ओर बढ़ा, उतनी ही इसकी जड़ें जमीन की तरफ गईं, लेकिन चमत्कार यहीं से शुरू हुआ।

मंदिर के दरवाजे की जगह को जडों ने छुआ तक नहीं

मंदिर के दरवाजे की जगह को जडों ने छुआ तक नहीं

इस मंदिर को किसी आर्किटेक्ट ने डिजाइन नहीं किया और न ही किसी व्यक्ति ने बनाया है, फिर भी जड़ों ने मंदिर के दरवाजे की जगह को व्यवस्थित तरीके से छोड़ा है। यानी मंदिर की जितनी दीवारें थीं, पीपल की जड़ों ने उतनी ही बनाई हैं और जिस साइज का दरवाजा था, उस साइज की जगह छोड़ी है।

पांच सौ साल से विराजे हैं भगवान भोलेनाथ

पांच सौ साल से विराजे हैं भगवान भोलेनाथ

इसकी प्राचीनता के बारे में गाँव के बुजुर्ग बताते हैं कि बचपन से उन्होंने इस मंदिर को ऐसा ही देखा है। अब अंदाजा पेड़ की उम्र से लगाया जा सकता है। लोग कहते हैं कि इस पीपल की उम्र 5 सौ साल से ज्यादा है] हालांकि यह अध्ययन का विषय हो सकता है।

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English summary
Miracle in Bundelkhand: Nature created itself, decorated the temple of Lord Bholenath
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