इन समीकरणों के दम पर भाजपा यूपी में कमल खिलाने को तैयार
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी जातीय समीकरणों को साधने के लिए नई योजनाएं बनाने में जुटी है। यूपी-बिहार ऐसे राज्य है जहां चुनाव में जातीय समीकरण काफी अहम भूमिका निभाते हैं। ऐसे में बिहार में जिस तरह से पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था उसे देखते हुए पार्टी यूपी में नए सिरे से योजना बना रही है।
फर्क है यूपी और बिहार के माहौल में
यूपी-बिहार के चुनावी माहौल पर नजर डालें तो एक तरफ जहां पार्टी को मोहन भागवत के आरक्षण पर दिए बयान का खामिजाया भुगतना पड़ा था तो यूपी में भाजपा उससे सीख लेते हुए सर्जिकल स्ट्राइक के मुद्दे को आगे करते हुए लोगों में नेशनलिज्म के मुद्दे को आगे बढ़ा रही है।
राष्ट्रीयता शीर्ष पर
बिहार की तुलना में यूपी चुनाव के दौरान के परिस्थितियां काफी बदली हुई हैं और इस बात को खुद भाजपा के नेता स्वीकार करते हैं। उनका कहना है कि राजनीतिक माहौल में काफी बदलाव है। देशभर में जिस तरह राष्ट्रीयता की भावना को जगाने का काम किया गया है उसे देखते हुए सर्जिकल स्ट्राइक जैस मुद्दे काफी अहम साबित हो सकते हैं।
आरक्षण पर लिया सबक
सर्जिकल स्ट्राइक से काफी समय पहले जिस तरह से आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण को लेकर बयान दिया था उससे पार्टी को काफी नुकसान उठाना पड़ा था। बिहार चुनाव में हार के पीछे भागवत के इस बयान को भी एक अहम वजह माना जा रहा था।
विकास बिहार में हुआ खारिज
भाजपा एक शीर्ष नेता की मानें तो बिहार में विकास और कानून व्यवस्था को लोगों ने दरकिनार कर सामाजिक न्याय का मुद्दा काफी अहम बना जिसके चलते पार्टी को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था।
यूपी-बिहार में शहरीकरण का भेद
ऐसे में भारतीय जनता पार्टी यूपी चुनाव में सवर्ण जाति और शहरी इलाकों के लिए खास रणनीति पर ध्यान दे रही है। 2011 की जनगणना पर नजर डालें तो यूपी में बिहार की तुलना में शहरीकरण काफी अधिक है।
यूपी
में
22.28
फीसदी
शहरी
इलाके
हैं,
जबकि
बिहार
में
यह
आंकड़ा
सिर्फ
11.30
फीसदी
है।
बिहार
के
शहरीकऱण
पर
ध्यान
दें
तो
एकमात्र
पटना
ऐसा
शहर
है
जहां
शहरी
आबादी
10
लाख
से
अधिक
है।
यूपी में 8 से अधिक शहरी इलाके 10 लाख से अधिक आबादी वाले
जबकि यूपी में लखनऊ, कानपुर, गाजियाबाद, आगरा, वाराणसी, मेरठ, इलाहाबाद, बरेली ऐसे शहर हैं जहां 10 लाख से अधिक की शहरी आबादी है। ऐसे में बिहार की तुलना में शहरी विधानसभा सीट उत्तर प्रदेश में कहीं अधिक है।
100 सीटों पर होगा भाजपा को लाभ
यूपी में 100 से अधिक विधानसभा सीटें शहरी क्षेत्रों में हैं। ऐसे में ये शहरी क्षेत्र भाजपा के लिए काफी अहम साबित हो सकते हैं। भाजपा को शहरी क्षेत्रों में पारंपरिक रूप से काफी मजबूत पार्टी के तौर पर देखा जाता है।
विषम समय में भी बनी रही पैठ
शहरी क्षेत्रों में भाजपा की पैठ को इस तरह से समझा जा सकता है कि विपक्ष में काफी कमजोर पार्टी कई शहरों की नगर निकाय पर पार्टी का कब्जा है। ऐसे में पार्टी इस बात को लेकर आगे बढ़ रही है कि आगामी चुनाव में ये शहरी क्षेत्र उसके पक्ष में चुनावी हवा को मोड़ने का काम करेगी।
सवर्ण वोट बैंक यूपी में कहीं आगे
सामाजिक संरचना के आधार पर बिहार की तुलना में भाजपा खुद को बेहतर पार्टी के तौर पर देख रही है। बिहार की तुलना में यूपी में सवर्ण वर्ग का वोट बैंक काफी अधिक है। 1931 की जनगणना के आंकड़ों पर नज़र डालें तो यूपी में 20 फीसदी अगणी जाति के लोग तो अविभाजित बिहार में यह आंकड़ा 15 फीसदी था।
भाजपा के शीर्ष नेता का मानना है कि यूपी में 25 फीसदी अगणा वोट बैंक उनकी पार्टी के लिए अहम साबित होगा, जिसमें ठाकुर, ब्राह्मण अहम साबित होंगे। लिहाजा भाजपा के लिए यह चुनाव काफी अहम साबित होगा।
बसपा-सपा की सवर्णों में घटी सेंध
2014
के
लोकसभा
चुनाव
में
भाजपा
को
मिली
अप्रत्याशित
जीत
के
बाद
पार्टी
की
अगणे
वोट
बैंक
में
पैठ
काफी
मजबूत
दिख
रही
है।
इसका
अंदाजा
इस
बात
से
भी
लगाया
जा
सकता
है
इस
बार
मायावती
अगणे
वोट
बैंक
की
बजाए
मुस्लिम
वोट
बैंक
को
साधने
में
लगी
है।
वहीं
2007
में
मायावती
ने
ब्राह्मण
वोट
बैंक
को
अपनी
ओर
करने
में
सफल
रही
थी।
पार्टी का मानना है कि इस बार खुद मायावती मुसलमानों को रिझाने की कोशिश कर रही हैं, सपा और बसपा दोनों ही पार्टियों से सवर्ण वोट बैंक पूरी तरह से खिसक गया है। भाजपा के एक अन्य नेता का मानना है कि यूपी में लोग बिहार की तर्ज पर वोट नहीं देंगे।
अलग होगा मतदान का रुझान
एक तरफ जहां बिहार में एनडीए को भूमिहार बाहुल्य से एक भी सीट नहीं मिली, जबकि ब्राह्मण बाहुल्य इलाके से नीतिश को वोट किया था। लेकिन बसपा और सपा इन इन जातियों के भीतर किसी भी तरह का बड़ा दावा नहीं कर रही हैं।
अन्य जातियों पर भी भाजपा की नजर
एक तरफ जहां भाजपा सवर्ण वोट बैंक पर अपनी पैठ मजबूत कर रही है तो दूसरी तरफ पार्टी लोध, कुशवाहा, कुर्मी, जात आदि जातियों को लुभाने के लिए पार्टी अहम कदम उठा रही है और इन जाति के नेताओं को पार्टी के भीतर प्रतिनिधित्व प्रदान कर रही है।