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West Bengal Election: भाजपा की जीत के लिए क्यों खास है मतुआ समुदाय जिसके लिए पीएम जाएंगे बांग्लादेश

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कोलकाता। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2021 की रणभेरी बज चुकी है और सभी दल नए वोटबैंक बनाने के साथ ही पुराने वोट बैंक को साधे रखने की जुगत भिड़ाने में जुटे हुए हैं। इसी वोटबैंक में है बंगाल का मतुआ समुदाय जिसे अपने साथ जोड़े रखने के लिए भाजपा कोई भी दांव चूकना नहीं चाहती। यही वजह है कि जब बंगाल में 27 मार्च को विधानसभा चुनाव के लिए मतदान शुरू होगा उसके एक दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बांग्लादेश की यात्रा पर जाएंगे। आप सोच रहे होंगे कि प्रधानमंत्री की बांग्लादेश यात्रा का बंगाल चुनाव और मतुआ समुदाय से क्या कनेक्शन है ? दरअसल इसका कनेक्शन तो बहुत गहरा है लेकिन इस कनेक्शन को समझने से पहले बंगाल में मतुआ समाज के असर को समझ लेना चाहिए।

बंगाल के सियासी समीकरण में मतुआ समुदाय

बंगाल के सियासी समीकरण में मतुआ समुदाय

बंगाल की राजनीति के सियासी गणित में मतुआ मतों का बड़ा ही महत्व है। 70 सीटों पर असर रखने वाले मतुआ समुदाय के बारे में कहा जाता है कि यह जिधर जाता है बंगाल की राजनीति का ऊंट उस करवट ही बैठता है। इसमें उत्तर 24 परगना और दक्षिण 24 परगना क्षेत्र के आस-पास आने वाली 40 सीटों पर मतुआ समुदाय का सीधा असर है। इसके साथ ही हुगली और उत्तर बंगाल में भी ये समुदाय अपना असर रखता है।

बंगाल की सियासत में मतुआ समुदाय के महत्व को इस बात से भी समझ सकते हैं कि जब 2019 में लोकसभा चुनाव में मतुआ समुदाय के गढ़ बनगांव सीट से चुनाव प्रचार की शुरुआत की थी। इससे पहले प्रधानमंत्री मतुआ समुदाय की 100 वर्षीय बीनापानी देवी से मिलने पहुंचे थे और उनका आशीर्वाद लिया था। बीनापानी देवी को मतुआ समाज में बोरो मां के नाम से जाना जाता था। भाजपा सांसद शांतनु ठाकुर इन्हीं बोरो मां के पोते हैं।

बांग्लादेश में मतुआ समुदाय का सबसे बड़ा तीर्थ

बांग्लादेश में मतुआ समुदाय का सबसे बड़ा तीर्थ

मतुआ समाज पर अभी और बात बाकी है लेकिन अब फिर वापस चलते हैं पीएम मोदी के बांग्लादेश दौरे पर जहां वह 26 जनवरी को पहुंचने वाले हैं। इस दौरे के तहत प्रधानमंत्री 27 मार्च को गोपालगंज के तुंगीपाड़ा जाएंगे जहां वह बांग्लादेश के संस्थापक और पहले राष्ट्रपति शेख मुजीबुर्रहमान के पैतृक घर को देखने जाएंगे।

इसके साथ ही प्रधानमंत्री गोपालगंज में ही स्थित मतुआ समाज के धर्मगुरु हरिचांद ठाकुर जन्मस्थली और मतुआ समुदाय के तीर्थस्थल के रूप में प्रसिद्ध उड़ाकांदी भी जाएंगे। उड़ाकांदी और हरिचांद ठाकुर का मतुआ समुदाय में बड़े ही श्रद्धाभाव की नजर से देखा जाता है। ऐसे में अगर प्रधानमंत्री इस तीर्थस्थल पर पहुंचते हैं तो चुनाव में मतुआ समाज के साथ भाजपा के रिश्ते को मजबूती देंगे। ये इसलिए भी खास है कि आज तक कोई भी भारतीय प्रधानमंत्री मतुआ समाज के इस तीर्थस्थल पर नहीं गया है।

उड़ाकांदी मतुआ समाज का सबसे बड़ा तीर्थ

उड़ाकांदी मतुआ समाज का सबसे बड़ा तीर्थ

मतुआ समाज के लिए उड़ाकांदी का महत्व इसलिए है क्योंकि यह स्थल इस समाज के दो गुरुओं की जन्मस्थली है। 1812 में मतुआ समुदाय के पहले गुरु हरिचांद ठाकुर का जन्म उड़ाकांदी में हुआ था। उन्होंने अछूत समझे जाने वाले मतुआ समुदाय का उद्धार और सम्मान दिलाने का बीड़ा उठाया। बाद में उनके विचारों को उनके पुत्र गुरुचांद ठाकुर ने बंगाल में फैलाया। उस समय बांग्लादेश भी बंगाल का ही हिस्सा हुआ करता था। इस उड़ाकांदी गांव में एक मंदिर बना हुआ है जिसे मतुआ समाज का सबसे प्रमुख तीर्थ गिना जाता है।

अपनी यात्रा में प्रधानमंत्री में जिन प्रमुख स्थलों को देखने की इच्छा बांग्लादेश प्रशासन से जताई है उनमें उड़ाकांदी का मतुआ मंदिर भी है।

अभी तक की जानकारी के मुताबिक इस दौरे में प्रधानमंत्री के साथ मतुआ समाज से भाजपा के सांसद शांतनु ठाकुर भी रह सकते हैं। प्रधानमंत्री की इस प्रस्तावित यात्रा से मतुआ समाज में उत्साह देखा जा रहा है। कहा जा रहा है कि पीएम मोदी ऐसा करते हैं तो मतुआ समाज के दिल में जगह बना लेंगे।

नागरिकता के सवाल पर बीजेपी के साथ

नागरिकता के सवाल पर बीजेपी के साथ

अब एक बार फिर से पश्चिम बंगाल की राजनीति में मतुआ समाज के इतिहास को समझते हैं। मतुआ समाज को अनुसूचित जाति में गिना जाता है। 2011 की जनगणना को देखें तो पश्चिम बंगाल में अनुसूचित जाति की आबादी एक करोड़ 80 लाख के करीब है। ऐसा माना जाता है कि इसमें 50 फीसदी मतुआ मतदाता हैं। हालांकि मतुआ समुदाय के लोगों का कहना है कि उनकी संख्या 3 करोड़ है। इस संख्या को लेकर जो समस्या है वही मतुआ समुदाय की प्रमुख समस्या है।

दरअसर मतुआ समुदाय में अधिकांश वे हैं जो पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) से हिंदू शरणार्थी के रूप में भारत में पहुंचे हैं। इन्हें अनुसूचित जाति श्रेणी में रखा गया है और इनका एक दूसरा नाम नामशूद्र भी है। इनमें से अधिकांश के पास वोटर आईडी कार्ड, पहचान पत्र जैसे चीजें हैं लेकिन जब भाजपा से सीएए लागू करने की बात कही तो इस समुदाय को लगा कि ऐसा हुआ तो उन्हें नागरिकता भी मिल जाएगी। इसे मुद्दे पर मतुआ समुदाय और भाजपा में नजदीकी बनी।

हमने ऊपर बताया था कि 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मतुआ समाज का आशीर्वाद लेने बोरो मां के पास पहुंचे थे। उस आशीर्वाद मिलने की वजह भी यही सीएए था। यही वजह है कि गृहमंत्री अमित शाह लगातार बंगाल में जोर देकर कह रहे हैं कि सीएए को लागू किया जाएगा। वजह भी है क्योंकि 2019 में जिस तरह से मतुआ समुदाय का साथ मिला था भाजपा उसे गंवाना नहीं चाहती। राज्य की 42 लोकसभा सीटों में 10 सीटें आरक्षित हैं। इनमें से 4 सीटों पर भाजपा को जीत मिली थी।

क्या टीएमसी मतुआ समाज को फिर साथ ला पाएगी ?

क्या टीएमसी मतुआ समाज को फिर साथ ला पाएगी ?

लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद टीएमसी भी सतर्क हो गई है और बीजेपी के नागरिकता संशोधन अधिनियम को धोखा बताने में लग गई है। ममता बनर्जी ने तो कह दिया कि मतुआ समाज के लोग बंगाल के नागरिक हैं और उन्हें पहचान साबित करने की जरूरत ही नहीं है।

टीएमसी की पूरी कोशिश होगी कि वह एक बार फिर उसी तरह मतुआ समुदाय को अपने साथ ला सके जैसे 2010 में ले आई थी। तब ममता बनर्जी बोरो मां से मिलने पहुंची थीं और बोरो मां ने ममता बनर्जी को मतुआ समुदाय का संरक्षक घोषित किया था। नतीजा सामने था पश्चिम बंगाल की सत्ता ममता बनर्जी के पास आ गई। उसके बाद भी ममता बनर्जी पर मतुआ समुदाय ने भरोसा किया और वे दोबारा सत्ता में आईं लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में मतुआ समुदाय ने अपने लिए नया खेवनहार चुना। अब देखना है कि प्रधानमंत्री का बांग्लादेश दौरा मतुआ समुदाय को अपने साथ जोड़े रखने में कामयाब होगा या नहीं।

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English summary
west bengal assembly election pm modi visit matua community pilgrimage in bangladesh
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