Navratri 2022 : 6000 साल पुराने रजरप्पा मंदिर की महिमा जानिए, मां दुर्गा के छिन्नमस्तिके स्वरूप की उपासना
जगत जननी जगदंबा की उपासना का पर्व नवरात्र सोमवार से शुरू हो रहा है। श्रद्धालुओं के बीच भगवती दुर्गा भक्तों के बीच मां छिन्नमस्तिके को लेकर विशेष आस्था है। जानिए 6000 साल पुराने इस मंदिर की महिमा navratri 2022 goddess
रामगढ़
(झारखंड),
25
सितंबर
:
जगत
जननी
जगदंबा
की
उपासना
का
पर्व
नवरात्र
सोमवार
से
शुरू
हो
रहा
है।
श्रद्धालुओं
के
बीच
भगवती
दुर्गा
भक्तों
के
बीच
मां
छिन्नमस्तिके
को
लेकर
विशेष
आस्था
है।
दरअसल,
नवरात्र
में
देवी
दुर्गा
के
नौ
स्वरूपों
की
पूजा
की
जाती
है।
भगवती
दुर्गा
के
भक्तों
के
लिए
आगामी
नौ
दिन
काफी
अहम
हैं।
साधना
करने
वाले
श्रद्धालु
इन
नौ
दिनों
में
देवी
की
उपासना
के
लिए
कलश
स्थापना
करते
हैं।
नवरात्रि
में
झारखंड
के
मंदिरों
में
भी
विशेष
अनुष्ठान
होता
है।
इन्हीं
मंदिरों
में
एक
है
रामगढ़
जिले
का
माता
छिन्नमस्तिके
का
मंदिर।
महाभारतकालीन
इस
मंदिर
की
महिमा
विशेष
है।
जानिए
6000
साल
पुराने
छिन्नमस्तिके
मंदिर
की
महिमा
(सभी
फोटो
सौजन्य-
ramgarh.nic.in)
रात्रि के पूर्ण एकांत में मां छिन्नमस्तिके
भैरवी और दामोदर नदी के संगम पर स्थित माता छिन्नमस्तिके का मंदिर पौराणिक महत्व वाला है। वेद-पुराण में भी इस मंदिर का उल्लेख मिलता है। शक्तिपीठ के रूप में जाना जाने वाला यह मंदिर तंत्र साधना करने वाले लोगों के बीच विशेष रूप से लोकप्रिय है। तंत्र साधना करने वाले श्रद्धालुओं के बीच लोकप्रिय इस मंदिर में प्रतिदिन करीब 150-200 पशुओं की बलि दी जाती है। मान्यता है कि रात्रि के पूर्ण एकांत में मां छिन्नमस्तिके मंदिर परिसर में टहलती हैं। मंदिर परिसर में बने 13 हवन कुंडों में तंत्र साधक सिद्धि हासिल करने का प्रयास करते हैं। धर्म के साथ विज्ञान का शानदार सामंजस्य करते हुए सरकार ने कहा है कि पशु अपशिष्ट से 25 से 35 किलोवाट बिजली उत्पादन की योजना तैयार की गई है।
छिन्नमस्तिके स्वरूप की पूजा
मां दुर्गा के भक्तों की आस्था है कि मां छिन्नमस्तिके की महिमा अपरंपार है। देवी के दर्शन से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। झारखंड के अलावा पड़ोसी राज्य बिहार और पश्चिम बंगाल के भक्त इस मंदिर में दर्शन करने आते हैं। बड़े पैमाने पर इस मंदिर में नवदंपती विवाह रचाने और देवी दुर्गा का आशीर्वाद लेने भी आते हैं। मां कामाख्या के बाद इसे दूसरा शक्तिपीठ माना जाता है। पौराणिक कथा के मुताबिक मां भवानी एक बार अपनी दो सहेलियों के साथ मंदाकिनी नदी के में स्नान करने गईं। सहेलियों को भूख लगने पर देवी ने तलवार से अपना सिर काट लिया। मां की गर्दन से निकली खून की तीन धाराओं में एक खुद मां के मुख में जबकि दो माता की सहेलियों के मुख में गई। दोनों सखियों की भूख शांत हुई। तब से छिन्नमस्तिके स्वरूप की पूजा होती है।
धर्म के साथ पर्यटन की भी भरपूर संभावनाएं
रजरप्पा मंदिर की वास्तुकला असम में स्थित शक्तिपीठ कामाख्या मंदिर की तरह है। रजरप्पा में छिन्नमस्तिके मंदिर परिसर में मां काली के अलावा अलग-अलग देवता, सूर्य भगवान और देवाधिदेव महादेव के 10 मंदिर हैं। सर्दियों के मौसम में इस मंदिर के आसपास पर्यटन की भी भरपूर संभावनाएं मौजूद हैं, बड़ी संख्या में लोग यहां पिकनिक मनाने आते हैं। धार्मिक कथा का एक पहलू ये भी है कि माता छिन्नमस्तिके को आदिशक्ति दुर्गा का अंतिम विश्राम स्थल माना जाता है। चैत्र नवरात्र के समय सप्तमी तिथि को मां कालरात्रि स्वरूप की पूजा होती है। बकरे की बलि दी जाती है। बकरे के कटे हुए सिर पर कपूर रखकर आरती करने की मान्यता है।
आदिशक्ति दुर्गा ने खुद अपना सिर क्यों काटा ?
देवी छिन्नमस्तिके को माता सती की 10 महाविद्या में एक माना जाता है। रौद्र स्वरूप में विराजमान मां छिन्नमस्तिके का विकराल रूप ऐसा है जिसमें माता राक्षस का वध करने के अलावा खुद अपना सिर अपने हाथ में पकड़ रखा है। मां के गले से तीन धाराएं निकलती दिखाई देती है। छिन्नमस्ता दो शब्दों से मिलकर बना है। छिन्न का अर्थ है अलग होना और दूसरा शब्द मस्ता अर्थात मस्तक। इसलिए माता का नाम छिन्नमस्तिके पड़ा। एक अन्य कथा के मुताबिक असुरों से संग्राम के बाद देवी की सखियों- जया-विजया ने खप्पर भरकर रक्तपान किया, सभी दैत्यों का विनाश होने के बावजूद सखियां भूखी रह गईं। उनकी जठराग्नि शांत करने के लिए माता ने स्वयं अपना सिर काट दिया।
छिन्नमस्तिके कलियुग की देवी ?
मां छिन्नमस्तिके की पूजा कलियुग की देवी के रूप में भी की जाती है। धर्म ग्रंथों के जानकारों के अनुसार मां छिन्नमस्तिके का स्वरूप ऐसा है, जिसमें मां के कटे हुए स्कंध से खून की तीन धाराएं निकल रही हैं। मान्यता के मुताबिक एक रक्त की धारा माता के मुख में जाती दिखती है, दूसरी धाराओं से माता की सहेलियों जया और विजया की भूख शांत होती है। कुछ कथाओं में इन दोनों को डाकिनी और शाकिनी के रूप में भी पहचाना जाता है। मान्यता है कि मां के दरबार में मांगी गई हर मुराद पूरी होती है। मन्नत मांगने के लिए लोग मंदिर परिसर में एक स्थान पर धागा बांधते हैं। मुराद पूरी होने के बाद लोग दोबारा मां के दर्शन करने जाते हैं। माता का स्वरूप कमल पुष्प पर खड़ा है। आदिशक्ति के चरणों के नीचे रति और कामदेव का स्वरूप शयनावस्था में देखा जा सकता है।
6000 साल पुराना और महाभारतकालीन मंदिर
रजरप्पा में भैरवी-भेड़ा और दामोदर नदी के संगम पर छिन्नमस्तिका मंदिर में पूरे साल मां दुर्गा के भक्तों की भीड़ लगी रहती है। शारदीय नवरात्र में लाखों श्रद्धालु माता का दर्शन करने आते हैं। छिन्नमस्तिका मंदिर लगभग 6000 साल पुराना और महाभारतकालीन बताया जाता है। मंदिर की उत्तरी दीवार पर बने शिलाखंड पर मां छिन्नमस्तिका का दिव्य स्वरूप अंकित है। नवरात्रि की अवधि में इस स्थान पर छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों से भी भक्त बड़ी संख्या में दर्शन-पूजन करने आते हैं।
भगवती दुर्गा की उपासना से मनोकामना पूरी
मां छिन्नमस्तिका को आदिशक्ति दुर्गा के मां काली का ही एक स्वरूप कहा जाता है। छिन्नमस्तिका मंदिर में मां का स्वरूप विकराल है। दाएं हाथ में तलवार और बाएं हाथ कटा हुआ सिर पकड़े मां छिन्नमस्तिके के गले में सर्पमाला और मुंडों की माला है। मां के केश खुले हुए हैं और आभूषणों से सजी मां छिन्नमस्तिका रक्तपान करती दिखाई दे रही हैं। तंत्र साधना करने वालों के अतिरिक्त भगवती दुर्गा की उपासना करने वाले श्रद्धालु बड़ी संख्या में दर्शन करने आते हैं। उनकी मनोकामना पूरी होती है।