राजस्थान CM अशोक गहलोत को क्यों कहते हैं 'जादूगर', इस बार सचिन पायलट के सामने दिखा पाएंगे जादूगरी?
जयपुर। जुलाई 2020 में राजस्थान की राजनीति में घमासान मचा हुआ है। कांग्रेस के अशोक गहलोत की सीएम की कुर्सी संकट में है, क्योंकि विधायकों की खरीद-फरोख्त की कथित कोशिशों का मामला राजस्थान एसओजी-एसीबी में जाने के बाद से सियासी घटनाक्रम तेजी से बदल रहा है। राजस्थान सरकार में उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट अपने जिगरी दोस्त मध्य प्रदेश के ज्योतिरादिग्ध सिंधिया की तर्ज पर बागी हो गए हैं।
गुटबाजी का फायदा उठाने को तैयार बैठी भाजपा
यूं तो अशोक गहलोत को राजस्थान की राजनीति का लंबा अनुभव है। यहां उनके सियासी दांव पेच का जादू अक्सर सिर चढ़कर बोलता है। अन्य प्रदेशों में भी कई बार कांग्रेस सरकार सियासी भंवर में फंसी तो अशोक गहलोत ने ही संकट मोचक की भूमिका निभाई है, मगर इस बार खुद गहलोत सरकार पर अल्पमत में आ जाने के संकट के बादल मंडरा रहे हैं और सामने हैं डिप्टी सीएम सचिन पायलट। राजस्थान कांग्रेस की इस गुटबाजी का फायदा उठाने को भाजपा तैयार बैठी सो अलग।
तो आइए जानते हैं आखिर अशोक गहलोत को जादूगर क्यों कहा जाता है। क्या इस बार वे सचिन पायलट के सामने अपनी सियासी जादूगरी दिखा पाएंगे? साथ ही वो वाक्या भी जानिए जब अशोक गहलोत को चुनाव लड़ने के लिए अपनी मोटरसाइकिल बेचनी पड़ी थी।
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गहलोत के पिता दिखाते थे जादूगरी
राजस्थान के जोधपुर के लक्ष्मण सिंह के घर 3 मई 1951 को अशोक गहलोत का जन्म हुआ। खुद लक्ष्मण सिंह बेहतरीन जादूगर थे। देश में घूम-घूमकर जादू दिखाया करते थे। अशोक गहलोत भी अपने पिता के साथ घूमे और कई स्टेज पर जादू भी दिखाया। इन्होंने विज्ञान और कानून में स्नातक तथा अर्थशास्त्र विषय में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त कर रखी है। गहलोत का विवाह 27 नवम्बर, 1977 को सुनीता गहलोत के साथ हुआ। गहलोत के एक पुत्र वैभव गहलोत और एक पुत्री सोनिया गहलोत हैं।
बसपा विधायकों को शामिल कर दिखाई सियासी जादूगरी
अशोक गहलोत सियासत के सबसे बड़े जादूगर हैं। उनका कोई विकल्प नहीं। इस बात को अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि राजस्थान विधानसभा चुनाव 2018 में कांग्रेस को 200 में से 99 सीटें मिली थी। अशोक गहलोत मुख्यमंत्री और सचिन पायलट उप मुख्यमंत्री बने। खुद की सरकार को मजबूत बनाने के लिए अशोक गहलोत ने एक बार फिर सियासी सूझबूझ के दम पर सितम्बर 2019 में बसपा के सभी छह विधायकों को कांग्रेस में शामिल कर लिया था। वर्तमान में कांग्रेस सरकार के पास कुल 107 विधायकों का समर्थन हैं। इससे पहले गहलोत ने वर्ष 2009 में भी सीएम रहते हुए बसपा के सभी छहों विधायकों को कांग्रेस में शामिल कर सियासी जादूगरी दिखाई थी।
जब गहलोत ने बाइक बेचकर लड़ा चुनाव
यह बात तब की है जब अशोक गहलोत की उम्र महज 26 साथ थी। गहलोत राजनीति में कदम रख चुके थे। संजय गांधी के करीबी थे। आपातकाल के बाद कांग्रेस की लोकसभा चुनाव में बुरी तरह हार हुई थी। तब राजस्थान विधानसभा चुनाव 1977 में अशोक गहलोत जोधपुर के सरदारपुरा सीट से चुनाव लड़ने के लिए संजय गांधी से टिकट ले आए। उस वक्त गहलोत के जमा पूंजी खास नहीं थी। ऐसे में चुनाव लड़ने के लिए अपनी मोटरसाइकिल चार हजार रुपए में बेची। जनता पार्टी के माधोसिंह के सामने चुनाव लड़ा और 4 हजार 329 के अंतर से हार गए।
इस बार साथी की बाइक से चुनाव प्रचार
राजस्थान विधानसभा चुनाव 1977 में अशोक गहलोत अपना पहला चुनाव हार चुके थे। फिर केंद्र की जनता पार्टी की सरकार तीन साल हिचकोले खाने के बाद डूब गई। वर्ष 1980 में देश में मध्यावधि चुनाव हुए। इस बार संजय गांधी ने गहलोत ने जोधपुर लोकसभा सीट से टिकट थमाया। गहलोत के सामने इस बार आर्थिक तंगी थी तो गहलोत ने जोधपुर के सोजती गेट स्थित अपने दोस्त रघुवीर सैन के सैलून में चुनाव कार्यालय खोला। खुद की बाइक बेच देने के कारण रघुवीर सैन की बाइक से ही चुनाव प्रचार किया। इस चुनाव में उन्होंने जनता पार्टी के बलबीर सिंह कच्छावा को 52,519 वोट से हराया।
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