Chhattisgarh में आज भी है Dinosaur का भोजन, लाखों साल पहले धरती पर थे Tree Fern Plant
आपको यह जानकर अचरज होगा कि करोड़ों साल पहले जो पौधा डायनासोर का भोजन हुआ करता था,वह अब भी धरती पर मौजूद है। मिली जानकारी के मुताबिक छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जुरासिक काल का टी फर्न प्लांट आज भी मौजूद है।
दंतेवाड़ा,05 सितंबर। हमारी धरती पर एक वक़्त डायनासोर का राज था। कहा जाता है कि अंतरिक्ष से गिरी विशालकाय चट्टानों ने डायनासोर के अस्तित्व को भी समाप्त कर दिया था,लेकिन आपको यह जानकर अचरज होगा कि करोड़ों साल पहले जो पौधा डायनासोर का भोजन हुआ करता था,वह अब भी धरती पर मौजूद है। मिली जानकारी के मुताबिक छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जुरासिक काल का टी फर्न प्लांट आज भी मौजूद है।
डायनसोर का मुख्य आहार था यह पौधा
छत्तीसगढ़ का बस्तर संभाग घने जंगलों के लिए खास पहचान रखता है। दंतेवाड़ा जिले की बैलाडीला पहड़ियों में आज भी जुरासिक काल का ट्री फर्न का पौधा मौजूद है। जैव विविधता से भरपूर बस्तर के वनांचल में प्रकृति के कई रहस्य दबे हुए हैं। बैलाडीला पहाड़ पर कई विलुप्त प्रजाति के पादप और जीव जंतु पाए जाते हैं। इसी पहाड़ी के घने जंगलो में जुरासिक युग के ट्री फर्न के पौधे पाए जाते हैं। विलुप्ति के कगार पर खड़ा यह पौधा लाखों बरस पहले डायनोसोर का मुख्य आहार था।
बैलाडीला में मिल चुका है 30 लाख साल पुराना पौधा
बैलाडीला की पहाड़ी में मिलने वाले ट्री फर्न के पौधों की उम्र हज़ारों साल से ज्यादा मानी जाती है। वैसे रिसर्च के दौरान जैव विविधता बोर्ड को बैलाडीला पहाड़ में किरंदुल के आकाशनगर के करीब गली नाला के आसपास ट्री फर्न के 30 लाख वर्ष पुराने पौधे भी मिल चुके हैं। यह पादप नम और दलदली इलाके में पाया जाता है।
वन विभाग और NMDC नहीं दे रहा संरक्षण पर ध्यान
वन विभाग और नेशनल मिनरल डवलपमेंट कार्पोरेशन की लापरवाही की वजह से बेशकीमती टी फर्न को नुकसान पहुंच रहा है। हाल ही में लगभग 30 लाख साल पुराना ट्री फर्न का पौधा टूटने की सूचना मिली थी, जिसको वन विभाग बचेली के परिक्षेत्र दफ्तर में लाकर फेंक दिया गया था। स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि एनएमडीसी और वन विभाग की लापरवाही की वजह से इतना बेशकीमती पौधा नष्ट हुआ है। वन विभाग के अफसरों ने तब दलील दी थी कि बरसात के सीज़न पहाड़ी नाले में तेज बहाव के कारण ट्री फर्न का पौधा टूट गया था।
छत्तीसगढ़ के अलावा मध्यप्रदेश के पचमढ़ी में भी मिल चुका है फर्न
मिली जानकारी के अनुसार भारत में ट्री फर्न प्रजाति के पौधे केवल मध्यप्रदेश के पचमढ़ी और छत्तीसगढ़ के बैलाडीला में ही मिले हैं। बैलाडीला इलाके में फर्न की 2 प्रजाति अलसोफिला स्पिनुलोसा और अलसोफिला जिएन्ट मौजूद है। यह पौधा एक साल में ढाई सेंटीमीटर तक बढ़ता है। इन पौधों की ऊंचाई मापकर ही उनकी उम्र का आंकलन किया जाता है।
यह भी है रोचक तथ्य
बढ़ने की धीमी गति के कारण टी फर्न प्लांट बड़ी मुश्किल से पेड़ बन पाता है। यह बेहद ही रोचक तथ्य है कि हम छत्तीसगढ़ की बैलाडीला पहाड़ियों में पाए जाने वाले जिन टी फर्न पौधों का ज़िक्र कर रहे है कि वह पेड़ का आकार ले चुका था। करीब 10 फीट के इस बेशकीमती पौधे की आयु दो हजार वर्ष आंकी गई थी।
छत्तीसगढ़ की इस पहाड़ी में टी फर्न के 400 से अधिक पौधे मौजूद
ट्री-फर्न प्लांट को उसके वैज्ञानिक नाम क्याथेल्स से भी जाना जाता है,जो कि लेप्टोसपोसेंगिएट फर्न है। इस प्राचीन पौधे में जड़, तना और पत्ता होता है,लेकिन फूल नहीं लगता। इसकी पत्तियां लंबी, नुकीली और कोमल होती हैं। कुछ बरस पहले ही बैलाडीला में राष्ट्रीय औषधि पादप मंडल द्वारा 450 से अधिक फर्न के पौधों की गणना की गई थी।
यह पूरा इलाका विलुप्त प्रजाति के पादपों के संरक्षण के लिए संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया है,लेकिन दुर्भाग्य है कि एनएमडीसी प्रबंधन और वन विभाग इन पौधों को नहीं बचा पा रहा है। बहरहाल उम्मीद जगाने वाली बात यह भी है कि बैलाडीला की हरीघाटी के पास हाल ही में भी एक ट्री-फर्न का एक बगीचा देखा गया है। .
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