स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद की नियुक्ति पर गहराया विवाद, अखाड़ा परिषद् ने शंकराचार्य मानने से किया इंकार
जबलपुर, 25 सितंबर: शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के निधन के बाद स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद की नए शंकराचार्य के रूप में नियुक्ति विवादों में घिर गई है। अखाड़ा परिषद् के अध्यक्ष रवींद्र पुरी ने उन्हें ज्योतिष बद्रिकाश्रम पीठ का नया शंकराचार्य मनाने से इंकार कर दिया है। अखाड़ा परिषद् की दलील है कि षोडशी परंपरा के निर्वहन के बगैर नियुक्ति जायज नहीं ठहराई जा सकती। साथ ही अखाड़ों की सहमति भी नहीं ली गई। उधर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद अपनी नियुक्ति को शास्त्र परंपरा के तहत विधि सम्मत करार दे रहे हैं।
ज्योतिष बद्रीकाश्रम पीठ के नए शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद की नियुक्ति को लेकर विवाद गहराता जा रहा हैं। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के निधन के बाद द्वारिका और ज्योतिष बद्रीकाश्रम पीठ के नए शंकराचार्य की घोषणा की गई। संत परंपरा के अनुसार स्वरूपानंद जी दोनों पीठ के उत्तराधिकारियों को नामित किया था। जीवनकाल समाप्ति के बाद समाधिस्थल पर यह नाम सार्वजनिक किए थे। बाद में समाराधना कार्यक्रम में दोनों पीठ के शंकराचार्य के निज सचिव ने वसीयत पढ़ी, लेकिन सार्वजनिक नहीं की। जिसके बाद अखाड़ा परिषद् के अध्यक्ष रवींद्र पुरी के विरोध के स्वर बुलंद हुए।
वसीयत,
शंकराचार्य
की
नियुक्ति
का
आधार
नहीं
नए
शंकराचार्य
की
नियुक्ति
पर
आपत्ति
जताने
वाले
अखाड़ा
परिषद्
के
अध्यक्ष
रवीन्द्र
पुरी
का
कहना
है
कि
नए
शंकराचार्य
की
नियुक्ति
में
अखाड़ों
का
अभिमत
अनिवार्य
होता
है।
इसके
अलावा
समाधिस्थल
पर
षोडशी
पाठ
होता
है।
इस
परंपरा
का
भी
निर्वहन
नहीं
हुआ।
सिर्फ
वसीयत
के
आधार
पर
नए
शंकराचार्य
की
नियुक्ति
को
सही
नहीं
ठहराया
जा
सकता
है।
वही
नामित
उत्तराधिकारी
के
तौर
पर
नियुक्त
हुए
नए
शंकराचार्य
अविमुक्तेश्वरानंद
ने
अखाड़ा
परिषद्
की
दलीलों
को
खारिज
किया
है।
उनका
कहना
है
कि
अखाड़ों
की
परंपरा
से
मठों
की
प्रक्रिया
अलग
होती
है।
उनकी
नियुक्ति
विधि
सम्मत
शास्त्र
परंपरा
के
अनुसार
है।
अखाड़ा
परिषद्
अध्यक्ष
का
दावा
है
कि
जूना,
अग्नि,
आह्वान,
निरंजनी
और
आनंद
अखाड़ों
ने
भी
इस
नियुक्ति
को
गलत
बताया
हैं।