World AIDS Day: मैंने उस लड़की से कहा कि HIV ग्रस्त हूं तो उसका जवाब था...
इस साल जब पूरी दुनिया का ध्यान कोरोना महामारी पर है, विश्व एड्स दिवस पर क्रिस्टोफ़र अपनी कहानी याद कर रहे हैं.
"एक स्ट्रेट, व्हाइट, पश्चिमी यूरोपीय व्यक्ति होने के नाते, मैंने कभी नहीं सोचा था कि ये टेस्ट पॉजिटिव होगा."
क्रिस्टोफर केटरमेयर उर्फ़ फिलिप स्पीगल 38 वर्षीय ऑस्ट्रियाई हैं, जिन्हें 2014 में पता चला कि वो एचआईवी ग्रस्त हैं.
आज भी वो इसे ऐसे याद करते हैं जैसे कि ये कल ही बात हो.
तब वो ऑस्ट्रिया में नहीं बल्कि भारत में एक फ़ोटोजर्नलिज़्म असाइनमेंट पर काम कर रहे थे और उस दिन उन्होंने एक आश्रम या हिंदू मठ में जाने की योजना बनाई थी.
वहाँ प्रवेश पाने के लिए उन्हें एचआईवी का टेस्ट कराना अनिवार्य था.
क्रिस्टोफर ने बीबीसी को बताया, "बिल्कुल, इससे मैं सहमत था. व्हाइट और स्ट्रेट होने के नाते, मुझे लगा कि इसका नतीजा नकारात्मक ही होगा." "लेकिन यह नहीं था."
एचआईवी पॉजिटिव होने को वह समलैंगिकों, नसों में ली जाने वाली ड्रग्स या अफ़्रीकी देशों से जुड़ा हुआ मानते थे.
कुछ महीने पहले, ऑस्ट्रिया में, क्रिस्टोफर ने ख़ुद को बहुत बीमार महसूस किया था, लेकिन तब किसी ने भी एचआईवी के बारे में सोचा तक नहीं था.
वे कहते हैं, "कोई भी डॉक्टर मेरा टेस्ट नहीं करेगा क्योंकि मैं ऐसे किसी रिस्क ग्रुप से नहीं आया था. महज़ संयोग से मेरा टेस्ट भारत में हुआ और मैं हक्का-बक्का रह गया."
"वास्तव में मैं भाग्यशाली था, क्योंकि बगैर जाँच मैं आगे कई वर्ष बिता सकता था."
'बढ़ी चुनौतियां'
इस साल जब पूरी दुनिया का ध्यान कोरोना वायरस महामारी पर है लेकिन विश्व एड्स दिवस पर क्रिस्टोफर अपनी कहानी याद कर रहे हैं.
संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि कोविड-19, इलाज में मौजूदा असमानता को और बिगाड़ते हुए एचआईवी के इलाज में बाधा बन रही है.
2019 में एड्स से जुड़ी बीमारियों के कारण 6,90,000 मौतें हुईं.
यूएनएड्स का कहना है कि इसमें 1,20,000 से 3,00,000 और जोड़े जा सकते हैं क्योंकि कोविड-19 ने इसके इलाज को प्रभावित किया है.
अनुमानित 3.8 करोड़ एचआईवी पीड़ितों में से जून 2020 तक क़रीब 1.2 करोड़ लोगों को आज भी एंटी-रेट्रोवायरल थेरेपी मुहैया नहीं है.
अंतरराष्ट्रीय एड्स सोसाइटी की कार्यकारी निदेशक डॉक्टर बिरगित पोन्तोवस्की ने बीबीसी को बताया, "हालांकि हमने बीते 40 वर्षों में असाधारण प्रगति की है, लेकिन हमें इसमें लगातार निवेश करते रहने की ज़रूरत है. अगर हम ऐसा नहीं करेंगे तो अब तक जो लाभ मिला है वो सब ख़त्म हो जाएगा."
वे कहती हैं, "एचआईवी विकासशील देशों को विषम रूप से प्रभावित करता है, लेकिन यह मानना कि कुछ ख़ास समूहों के ही इससे संक्रमित होने की आशंका है, यह एक ग़लत धारणा है."
''एचआईवी को लेकर पिछले 40 सालों में एक चीज़ बिल्कुल साफ़ हो गई है कि यह किसी से भेदभाव नहीं करती है. एचआईवी से पीड़ित लोग हर देश, सभी आयु वर्ग, नस्ल, लिंग, प्रोफ़ेशन, धर्म और अलग-अलग सेक्शुअसल ओरिएंटेशन में हैं.''
असुरक्षित सेक्स अब भी संक्रमण का अहम ज़रिया है. दक्षिण अफ़्रीका अब भी एचआईवी के बोझ से मुक्त नहीं हो पाया है.
केवल असुरक्षित सेक्स ही एचआईवी से पीड़ित होने का ज़रिया नहीं है. डॉ पोनिअतोव्सकी कहती हैं कि नीडल्स का दोबारा इस्तेमाल भी एचआईवी फैलाने का अहम ज़रिया है. वैश्विक स्तर पर कुल एचआईवी संक्रमितों में 10 फ़ीसदी लोग नीडल्स के दोबारा इस्तेमाल से संक्रमित हुए हैं.
क्रिस्टोफ़र कहते हैं, ''एचआईवी को लेकर मेरे मन में कई सवाल थे. मैं डरा हुआ था. मुझे यह सवाल परेशान करता था कि एचआईवी क्या है?'' मैंने महसूस किया कि 80 और 90 के दशक में एचआईवी को लेकर मेरे मन में जो धारणा थी वो 21वीं सदी में बदल गई. एक स्ट्रेट पुरुष के लिए एचआईवी पीड़ित होने की बात को स्वीकार करना आसान नहीं होता है. ऐसा मर्दानगी से जुड़े विचारों के कारण है.''
क्रिस्टोफर कहते हैं, ''ज़्यादातर स्ट्रेट पुरुष एचआईवी पीड़ित होने की बात कहने से डरते हैं कि कहीं उन्हें समलैंगिक या ड्रग एडिक्ट ना समझ लिया जाए.''
उनके मन में भी डर था और वो इलाज को लेकर भी डरे हुए थे. ऐसे में उन्होंने अपना नाम फ़िलिप स्पिगल रख लिया ताकि एचआईवी को लेकर बात करने में आसानी हो. उन्हें इसे मदद भी मिली और अपनी शख़्सियत को किनारे रख दिया.
वो कहते हैं, ''मेरे भीतर ख़ुद से ही एक टकराव चलता रहा. सेक्शुअलिटी और मर्दानगी की धाराणओं को लेकर कई चीज़ें स्पष्ट हुईं. मैंने इन्हें हावी होने से रोका. मैं उस मुकाम पर पहुँचा जहां मैं ख़ुद को कह सका कि यह दुनिया का अंत नहीं है.''
हालांकि अब भी एचआईवी का इलाज नहीं है. वर्तमान में जो इलाज मौजूद है उससे वायरस को कमज़ोर किया जा सकता है. इस इलाज को एंटीरेट्रोवायरल कहा जाता है. इससे ज़्यादातर एचआईवी पीड़ित लोग वायरस के साथ लंबे समय तक ज़िंदा रह पाते हैं.
डॉ पोनिअतोव्सकी कहती हैं कि इस इलाज के बाद जो वायरस को कमज़ोर करने में कामयाब होते हैं उनमें एचआईवी को फिर से खोजना आसान नहीं होता और उनसे कोई एचआईवी भी नहीं फैलती. यहाँ तक कि सेक्स से भी नहीं. अगर आपमें एंटीरेट्रोवाइरल काम कर रहा है तो आपसे कोई एचआईवी संक्रमित नहीं हो सकता.
इलाज शुरू होने के बाद क्रिस्टोफर को भी अहसास हुआ कि इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है. हालांकि मनोवैज्ञानिक स्तर पर उन्हें ठीक होने में लंबा वक़्त लगा.
क्रिस्टोफर कहते हैं कि डेटिंग जैसी चीज़ें तो लगभग असंभव हो जाती हैं क्योंकि एचआईवी आपके आत्मविश्वास को नष्ट कर देती है.
वो कहते हैं, ''ऐसा लगता है कि अपने भीतर कुछ अजीब है. मैं भीतर से टॉक्सिक हो गया था. ऐसा लगता था कि ख़ून और स्पर्म ज़हरीला हो गए हैं. मानो मैं दूसरों के लिए ख़तरा हूं. ख़ास कर उनके लिए जिनसे मैं प्रेम करना चाहता था.''
आख़िरकार क्रिस्टोफ़र ने फ़ैसला किया कि उन्हें ऐसे देश में रहना चाहिए जहां एचआईवी पीड़ित होना बड़ी समस्या नहीं है और वो इस मामले में लोगों को जागरूक कर सकें.
क्रिस्टोफर कहते हैं, ''मुझे लगा कि अगर मैं यह नहीं स्वीकार कर सकता है कि एचआईवी पीड़ित हूं तो कौन करेगा? एचआईवी पीड़ित होने के बाद आप कभी नहीं जान पाते कि लोग आपके बारे में क्या कहते हैं. यह एक लॉटरी की तरह है. मैंने कई तरह की प्रतिक्रियाओं को देखा है. मेरे साथ इस मामले में एक अच्छा अनुभव है. मैंने एक लड़की से पूछा था कि तुम्हारी प्रतिक्रिया क्या होगी अगर पता चले मैं एचआईवी पीड़ित हूं? उसने मुस्कुराते हुए कहा कि इससे चीज़ें और दिलचस्प होंगी. लेकिन ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने मुझसे तत्काल पूछा कि क्या किस करने से भी एचआईवी संक्रमण का डर रहता है?''
एचआईवी संक्रमण ख़ून के ज़रिए पहुंचता है और यह थूक, छींक, कफ या चूंबन या फिर सामान्य संपर्क से नहीं फैलता.
क्रिस्टोफर के लिए प्यार में पड़ना डर और बदनामी से बाहर निकालने में अहम रहा. वो कहते हैं, ''मैंने देखा कि मेरे प्रति उसके व्यवहार ने वायरस के डर को ख़त्म कर दिया. बस हर दिन एक दवाई लेनी पड़ती है.''
क्रिस्टोफर कहते हैं कि एचआईवी में ग़लतफ़हमी सबसे भारी पड़ती है.
वो कहते हैं, ''ऐसा कई बार हुआ जब मेरे परिवार और दोस्त भूल गए मैं एचआईवी ग्रस्त हूं क्योंकि एचआईवी मेरे जीवन का एक हिस्सा है लेकिन मैं केवल एक एचाआईवी ग्रस्त इंसान नहीं हूं. मैं एचआईवी ग्रस्त होने के बाद पहले से ज़्यादा ख़ुश हूं.''
क्रिस्टोफर कहते हैं कि उन्हें एचआईवी के अनुभव से जीवन को बड़े फलक में देखने का मौक़ा मिला. वो कहते हैं, ''मैं आज अब वर्तमान में ज़्यादा जीता हूं.''
एचआईवी के साथ जीना कैसा होता है पर क्रिस्टोफर एक किताब लिखना चाहते हैं. कोई एचआईवी पीड़ित है तो उसे क्या अपनी स्थिति स्पष्ट कर देनी चाहिए? क्रिस्टोफर अब इस मुद्दे पर हाँ या ना में जवाब नहीं देते हैं.
वो कहते हैं, ''इस पर मेरी सलाह देश या इलाक़े के आधार पर अलग-अलग होगी. यह इस पर भी निर्भर करता है कि आपका परिवार कैसा है. मुझे पता है कि एचआईवी पीड़ित होने के बाद लोगों को परिवार से भी बाहर कर दिया जाता है.''
क्रिस्टोफर कहते हैं कि एचआईवी पीड़ित होने पर पापबोध या शर्मिंदा महसूस करने का कोई मतलब नहीं है.
वो कहते हैं, ''पूरा टाइम लीजिए. सब्र रखिए. स्वीकार कीजिए कि आपमें एचआईवी है और साथ रहेगा.'' क्रिस्टोफर की आख़िरी सलाह है कि आप इसके बारे में सब कुछ जानिए क्योंकि ज्ञान डर को कम करता है.