अमरीका दक्षिण चीन सागर में शी जिनपिंग की ये 'दीवार' गिरा पाएगा?
चीन ने दक्षिण चीन सागर में समुद्री इंजीनियरिंग और सैन्य निर्माण का, 'दुनिया का सबसे बड़ा कारनामा' कर दिखाया है. 3,000 मीटर का रनवे, नौसेना के बर्थ, हैंगर, गोला-बारूद के बंकर, मिसाइलें और सब कुछ.
इस साल चीन पहले ही कई मुद्दों की वजह से चर्चा में हैं, जैसे- कोरोना वायरस, अमरीका के साथ व्यापारिक युद्ध, हॉन्ग-कॉन्ग का राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून, लद्दाख में भारत के साथ तनाव और कुछ आर्थिक संकट जिनकी मेज़बानी चीन ने की.
इन सब के बीच, दक्षिण चीन सागर को भी हाल के महीनों में एक गंभीर तनाव क्षेत्र के रूप में पुनर्जीवित किया गया है.
अमरीका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने अब पहली बार साफ़तौर से यह कहा है कि 'दक्षिण चीन सागर में चीन के क्षेत्रीय दावे पूरी तरह ग़ैर-क़ानूनी हैं.'
मगर इस क्षेत्र में अपनी पहुँच बढ़ाने के लिए चीन की योजना क्या है? एलेक्ज़ेंडर नील से समझिए-
दक्षिण चीन सागर पोतपरिवहन का एक महत्वपूर्ण रूट रहा है, जिसे लेकर बीते कई वर्षों से तनातनी है.
इंडोनेशिया और वियतनाम के बीच पड़ने वाला समंदर का ये हिस्सा क़रीब 35 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है जिस पर चीन, फ़िलीपींस, वियतनाम, मलेशिया, ताइवान और ब्रूनेई अपना दावा करते रहे हैं.
क़ुदरती ख़ज़ाने से लबरेज़ इस समुद्री इलाक़े में जीवों की सैकड़ों प्रजातियां पाई जाती हैं.
हाल के वर्षों में चीन ने इस बात पर और अधिक ज़ोर देना शुरू किया है कि इस इलाक़े पर उसी का दावा है क्योंकि वो इस क्षेत्र में सदियों से है.
माना जाता है कि अपने इसी दावे को मज़बूती देने के लिए चीन दक्षिण चीन सागर में अपनी सैन्य उपस्थिति को बढ़ा रहा है.
एक दशक पहले तक इस इलाक़े को लेकर इतनी तनातनी नहीं थी. लेकिन फिर चीन समंदर में खुदाई करने वाले जहाज़, बड़ी तादाद में ईंट, रेत और बजरी लेकर दक्षिणी चीन सागर पहुँचा. उन्होंने एक छोटी समुद्री पट्टी के इर्द-गिर्द रेत, बजरी, ईंटों और कंक्रीट की मदद से बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य शुरू कर दिया.
अमरीकी पैसिफ़िक कमांड के पूर्व कमांडर, एडमिरल हैरी हैरिस ने एक बार 'द ग्रेट वॉल ऑफ़ सैंड' के रूप में इसका वर्णन करते हुए कहा था कि 'चीन ने समंदर में अपने क्षेत्र के चारों ओर एक सुरक्षात्मक रिंग तैयार कर लिया है जो बहुत हद तक ज़मीन पर बनी दीवार जैसा है.'
लेकिन जब चीन और अमरीका एक दूसरे के साथ व्यापार तेज़ कर रहे थे, तब भी दक्षिण चीन सागर जैसे मुद्दों पर कभी-कभार तीखी बयानबाज़ी होती रही, पर दोनों देशों ने इस पर खुलकर मतभेद ज़ाहिर नहीं किए.
दोनों के बीच व्यापारिक संघर्ष के बावजूद, अमरीका ने चीन के क्षेत्रीय विवादों में अन्य देशों के साथ खुलकर कोई पक्ष लेने से हमेशा परहेज ही किया. हालांकि अमरीका यह ज़रूर कहता रहा कि इस क्षेत्र से जहाज़ों की आवाजाही पर कोई रोक ना लगे.
और फिर कोविड-19 महामारी ने दस्तक दी. 'चीन ने महामारी को ठीक से नहीं संभाला'- अमरीका के नेतृत्व में चीन की यह आलोचना शुरू हुई, जिसने चीन को नाराज़ कर दिया.
कई पश्चिमी देशों ने अमरीकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो के इस तर्क पर सहमति दिखाई कि 'चीन अपने दमनकारी रवैये का प्रभाव बढ़ाने के लिए कोविड-19 महामारी का भी फ़ायदा उठा रहा है.'
इन सब का नतीजा है कि दक्षिण चीन सागर में अब तनाव बढ़ रहा है.
चिंताजनक समय में सैन्य तनाव
अप्रैल की शुरुआत में, एक चीनी तटरक्षक पोत ने पैरासेल द्वीप समूह के निकट मछली पकड़ने वाले एक वियतनामी जहाज़ को टक्कर मारी और डुबा दिया. ये वो क्षेत्र है जिस पर चीन और वियतनाम, दोनों अपना दावा करते हैं.
फिर चीनी नौसेना और तटरक्षक बल द्वारा समर्थित एक चीनी समुद्री सर्वेक्षण पोत ने बोर्नियो के तट पर एक मलेशियाई तेल खोज परियोजना के काम को भी बाधित किया.
नतीजतन, अमरीकी नौसेना को एक युद्धपोत जिसे एक ऑस्ट्रेलियाई युद्धक जहाज़ का समर्थन भी प्राप्त था, उन्हें इस इलाक़े में तैनात करना पड़ा.
इसके बाद अमरीका ने दो और बड़े युद्धपोत पैरासेल और स्प्रैटली द्वीप के पास तैनात कर दिए थे.
हाल ही में चीन ने पैरासेल द्वीप समूह के आसपास का क्षेत्र नौसैनिक अभ्यास करने के लिए बंद कर दिया.
जिस पर ग़ुस्साए अमरीका ने कहा कि 'विवाद ना बढ़े, इसके लिए जो चीनी प्रतिबद्धताएं हैं, चीन ने क्षेत्र बंद करके उनका उल्लंघन किया है.'
इस बीच अमरीकी नौसेना ने इस क्षेत्र में जॉइंट ऑपरेशन के लिए एक नहीं, बल्कि दो विमान वाहक युद्धपोत उतार दिए.
इनके अलावा अमरीकी वायुसेना ने 'स्ट्रैटिजिक बॉम्बिंग' के लिए मशहूर बी-52 विमान भी इस क्षेत्र का चक्कर काटने के लिए भेजा.
इसके बाद जैसी उम्मीद की गई थी, चीन के सरकारी मीडिया ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी.
अमरीकी नौसेना के दक्षिण चीन सागर में उतरने का सबसे बड़ा ख़तरा यह है कि इन दो प्रतिद्वंद्वी शक्तियों में शत्रुता और भी तेज़ी से बढ़ सकती है जिसके बीच कोई बड़ी घटना होने का ख़तरा भी है.
देखा गया है कि चीन अपनी 'मुख्य चिंताओं' के प्रति पहले से ज़्यादा मुखर हुआ है और रवैया पहले से ज़्यादा अडियल, ऐसे में यह स्थिति विशेष रूप से ख़तरनाक है.
भारत के साथ हाल ही में अपनी विवादित सीमा पर चीन ने घातक बल का प्रयोग किया.
साथ ही हॉन्ग-कॉन्ग में भी बलपूर्वक उसने राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून लागू किया.
ऐसे में यह सवाल बनता है कि दक्षिण चीन सागर के मामले में चीन कितना संयमित हो सकता है?
दक्षिण चीन सागर में चीन का मक़सद क्या है?
चीन दक्षिण चीन सागर को अपने समुद्री क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मानता है.
उसके लिए यह एक महत्वपूर्ण व्यापारिक रूट है और इसे चीन के उस सपने का हिस्सा भी समझा जाता है जिसे 'चीनी बेल्ट एंड रोड परियोजना' का नाम दिया गया है.
चीन ने पहले दक्षिण चीन सागर में एक बंदरगाह बनाया था. फिर हवाई जहाज़ों के उतरने के लिए हवाई पट्टी. देखते ही देखते, चीन ने दक्षिणी चीन सागर में एक आर्टिफ़िशियल द्वीप तैयार कर के उस पर सैनिक अड्डा बना लिया है.
चीन के 'ग्रेटर बे एरिया इकोनॉमिक डिवेलपमेंट प्लान' के लिए भी दक्षिण चीन सागर महत्वपूर्ण है. इसी प्लान के अंतर्गत चीन ने हॉन्ग-कॉन्ग को भी शामिल किया है.
दक्षिण चीन सागर को आबाद करने की चीन की योजना को साल 2012 में लॉन्च किया गया था.
उस समय वुडी द्वीप पर स्थित सांशा सिटी को जिसे इस क्षेत्र में चीनी प्रशासनिक संचालन का केंद्र माना जाता है, उसे काउंटी से बड़ा दर्जा दिया गया था.
चीनी सरकार ने मछुआरों के एक समुदाय को यहाँ आधुनिक आवासों में फिर से बसाया, एक प्राथमिक स्कूल खोला, एक बैंक और एक अस्पताल बनाया. इसके अलावा वहाँ मोबाइल संचार स्थापित किया और तभी से पर्यटक भी इन द्वीपों पर नियमित रूप से घूमने जाते रहे हैं.
इन द्वीपों को आबाद करने की योजना का दूसरा चरण इस साल अप्रैल में शुरू किया गया था, जब चीन ने दो और काउंटी स्तर के प्रशासनिक जिलों का निर्माण किया.
छह वर्षों में, जब से चीन ने दक्षिण चीन सागर के द्वीपों को आबाद करने की शुरूआत की है, उपग्रहों और हवाई निगरानी के ज़रिये यही समझ आता है कि चीन ने इस क्षेत्र में समुद्री इंजीनियरिंग और सैन्य निर्माण का, 'दुनिया का सबसे बड़ा कारनामा' कर दिखाया है.
द्वीपों पर सैन्य सुविधाओं के अलावा- 3,000 मीटर का रनवे, नौसेना के बर्थ, हैंगर, गोला-बारूद के बंकर, मिसाइलों के कोष्ठागार, रडार साइटें, व्यवस्थित आवासीय ब्लॉक, प्रशासनिक भवन जो नीले सिरेमिक टाइलों से बने हैं, अस्पताल और यहाँ तक कि खेल परिसर भी बनाए गए हैं.
ऊपर से देखने पर ये द्वीप अब पहले से ज़्यादा हरे दिखते हैं.
कुछ क्षेत्र जहाँ पर कोरल रीफ़ हैं, वहाँ अब खेती हो रही है. द्वीपों के कुछ हिस्सों में चीन से लाए गए सुअरों के पालन केंद्र बनाए गए हैं. साथ ही मुर्गी और मछली पालन भी किया जा रहा है.
इस बीच, चीन अकेडमी ऑफ़ साइंसेज़ ने जनवरी 2019 में वहाँ समुद्रविज्ञानीय अनुसंधान केंद्र की भी स्थापना की.
वहाँ रह रहे लोगों को 5जी नेटवर्क की सुविधा पहले ही मिल चुकी है. उनके लिए ताज़े फल-सब्ज़ियाँ जहाज़ों से भेजे जाते हैं.
कुछ रीफ़ के इलाक़े मछली पालन के लिए बहुत विकसित किए जा चुके हैं. हो सकता है कि बहुत जल्दी ही मछली पालन करने वाले परिवार इन दक्षिणी द्वीपों पर हमेशा के लिए बस जाए और उनके बच्चे पार्टी और चीन के सरकारी अफ़सरों के बच्चों के साथ स्कूलों में पढ़ें.
एक 'अपरिवर्तनीय' चीनी जलमार्ग?
दक्षिण चीन सागर पर चीन का कितना ज़ोर है, इसका सबसे प्रतीकात्मक प्रमाण चीन से लाकर लगाए गए पत्थर हैं.
अप्रैल 2018 में, स्प्रैटली द्वीप समूह के तीन सबसे बड़े द्वीपों पर 200-200 टन के विशालकाय स्मारक स्मृति चिन्ह स्थापित किए गए और बड़ी ही गोपनीयता के साथ उनसे पर्दा उठा दिया गया.
ताईशान की शिलाओं से निकाले गए और बड़े जहाज़ों के ज़रिए स्प्रैटली द्वीपों पर भेजे गए, ये विशालकाय स्मारक स्मृति चिन्ह चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के चीनी कायाकल्प के सपने का प्रतीक बताए जाते हैं.
माउंट ताईशान को चीन के पहाड़ों में सबसे पवित्र पहाड़ के रूप में देखा जाता है जो हज़ारों वर्षों से अखंड चीनी सभ्यता का प्रतीक है.
यह सब दिखाता है कि चीन दक्षिण पूर्व एशिया के इस महान रणनीतिक जलमार्ग को एक अपरिवर्तनीय चीनी स्थल बनाने की योजना के दूसरे चरण में चला गया है.
दक्षिण चीन सागर में अमरीकी नौसेना के हालिया अभ्यासों का उद्देश्य 'समुद्र की स्वतंत्रता' की रक्षा के लिए अमरीकी संकल्प का प्रदर्शन करना था.
अमरीकी नौसेना के युद्धाभ्यास के साथ-साथ, अमरीकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो की यह घोषणा कि दक्षिण चीन सागर में चीन के दावे 'पूरी तरह से ग़ैर-क़ानूनी' हैं, यह सवाल खड़ा करती है कि अमरीका आगे क्या करने के लिए तैयार है.
बयानबाज़ी से लगता है कि पोम्पियो कम से कम चीन के आत्म-अलगाव को प्रदर्शित करने के लिए कुछ अन्य दावेदारों के साथ ही नहीं, बल्कि बड़ी शक्तियों के साथ भी एक राजनयिक गठबंधन का निर्माण करना चाहता है.
अमरीका बहुत ही कम वक़्त में चीन ने नए नानशा ज़िले को एक कंक्रीट और कोरल के मलबे में बदल सकता है - लेकिन हक़ीक़त ये है कि युद्ध झेलने की स्थिति में ना तो चीन है और ना ही अमरीका.
(लेखक एलेक्ज़ेंडर नील एक सैन्य विश्लेषक हैं और सिंगापुर में एक रणनीतिक सलाहकार समूह के निदेशक भी हैं)