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सिंधी, बलूची, पंजाबी और पठान में क्यों बँटी है पाकिस्तान की राजनीति?

पाकिस्तान के उर्दू शायर और व्यंग्यकार इब्ने इंशा ने 'उर्दू की आख़िरी किताब' में दिलचस्प सवाल-जवाब किए हैं- इटली में कौन रहता है? इतालवी. जर्मनी में कौन रहता है? जर्मन. पाकिस्तान में कौन रहता है? जवाब था: पंजाबी, सिंधी, बलोच, पठान.

अगला सवाल है तो फिर पाकिस्तान बनाया ही क्यों? जवाब था -- ग़लती हो गई, आइंदा नहीं बनाएंगे.

इब्ने इंशा का ये जवाब पाकिस्तान के राजनीतिक दलों पर भी सटीक बैठता है, जो मुल्क के गठन के सात दशक बाद भी 

By BBC News हिन्दी
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पीएमएलएन
Reuters
पीएमएलएन

पाकिस्तान के उर्दू शायर और व्यंग्यकार इब्ने इंशा ने 'उर्दू की आख़िरी किताब' में दिलचस्प सवाल-जवाब किए हैं- इटली में कौन रहता है? इतालवी. जर्मनी में कौन रहता है? जर्मन. पाकिस्तान में कौन रहता है? जवाब था: पंजाबी, सिंधी, बलोच, पठान.

अगला सवाल है तो फिर पाकिस्तान बनाया ही क्यों? जवाब था -- ग़लती हो गई, आइंदा नहीं बनाएंगे.

इब्ने इंशा का ये जवाब पाकिस्तान के राजनीतिक दलों पर भी सटीक बैठता है, जो मुल्क के गठन के सात दशक बाद भी जातीय, भाषाई और क्षेत्रीय पहचान के दायरों में बंधे दिखते हैं.

पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) को ही लें तो उसका जनाधार मुख्यत: पंजाबी भाषा बोलने वाले पंजाबियों के बीच है. पीएमएल (एन) पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ और उनकी बेटी मरियम नवाज़ की भ्रष्टाचार मामले में गिरफ्तारी को लेकर चर्चा में है.

नवाज़ शरीफ़ के धुर विरोधी इमरान ख़ान की पार्टी तहरीके इंसाफ का जनाधार ज़्यादातर पठानों में हैं और उनके वोटरों की बड़ी तादाद ख़ैबर-पख्तूनख़्वाह में है. जहां सूबे में उनकी सरकार भी मौजूद है.

इमरान ख़ान नियाज़ी ख़ुद पठान हैं.

यूं तो 25 जुलाई को देश में होनेवाले चुनावों में दर्जनों सियासी जमातें हिस्सा ले रही हैं लेकिन उनमें तीन सबसे अहम मानी जा सकती हैं. इनमें से दो यानी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) और मुस्लिम लीग (नवाज़) पहले केंद्र और सूबों में सरकारें बना चुकी हैं. इमरान ख़ान की पाकिस्तान तहरीके इंसाफ़ हालांकि नई पार्टी है लेकिन कहा जा रहा है कि परदे के पीछे से उसे पाकिस्तानी फ़ौज का समर्थन हासिल है.

इमरान ख़ान
AFP
इमरान ख़ान

पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) - साल 1993 में पाकिस्तान मुस्लिम लीग से अलग बनी पार्टी के मुखिया नवाज़ शरीफ़ इन दिनों भ्रष्टाचार के एक मामले में जेल में हैं. पाकिस्तान के बड़े उद्योगपतियों में से एक नवाज़ शरीफ़ लाहौर, पंजाब, के रहने वाले हैं, जो पार्टी के मुख्य जनाधार वाला सूबा भी है. हालांकि कुछ दूसरे राज्यों में भी दल को समर्थन हासिल है.

पार्टी को 2013 आम चुनाव में मिली कुल 148 सीटों में से 116 सीटें पंजाब से हासिल हुई थीं.

पंजाब सूबे में तो उन्होंने सरकार बनाई ही.

पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) - तक़रीबन पांच दशक पहले 1967 में बनी इस पार्टी ने देश को दो प्रधानमंत्री दिए हैं. ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो और उनकी बेटी बेनज़ीर भुट्टो. अपनी वेबसाइट पर पार्टी ख़ुद को वामपंथी विचारधारा की तरफ़ रुझान रखनेवाला बताती है.

पिछले आम चुनावों में वो मुख्य विरोधी दल के तौर पर उभरी थी और वो सिंध प्रांत में उसकी सरकार है. हालांकि बाक़ी दलों की तुलना में उसका जनाधार बड़ा है लेकिन उसका समर्थन सिंध में सबसे अधिक है.

पाकिस्तान तहरीके इंसाफ़ -पाकिस्तान की इस सबसे नई राजनीतिक पार्टी का गठन पूर्व क्रिकेटर इमरान ख़ान ने साल 1996 में किया था. कहा जाता है कि इस चुनाव में उन पर सेना का हाथ है.

ये महज़ इत्तेफ़ाक़ नहीं है कि उस देश में जहां सेना और एक कमज़ोर नौकरशाही हुकूमत के हर क्षेत्र में दख़ल रखते हैं, नवाज़ शरीफ़ कभी ख़ुद भी सेना के बलबूते ही सत्ता में ऊपर चढ़े थे, ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो भी इससे परे नहीं थे. ये अलग बात है कि बाद में सेना ने ही उन्हें सत्ता से बेदख़ल किया और फिर उन्हें फांसी दे दी गई.

बिलावल भुट्टो
EPA
बिलावल भुट्टो

लेखक और वरिष्ठ पत्रकार आकार पटेल ने हाल ही में प्रकाशित एक लेख में लिखा था कि किस तरह पहले भुट्टो ने जनरल अय्यूब ख़ान को भारत से युद्ध के लिए उकसाया और फिर उनके बारे में कहा कि उन्होंने पाकिस्तान के लोगों के साथ धोखा किया है.

भारत-पाकिस्तान के बीच 1965 की जंग जनरल अय्यूब ख़ान के समय में लड़ी गई थी जिसमें पाकिस्तान की हार हुई थी.

भुट्टो पाकिस्तान के राष्ट्रपति और फिर प्रधानमंत्री बने और उनकी पार्टी पीपीपी को सिंध से बाहर भी बड़ा जनाधार मिला, कुछ इस तरह का कि उसे जानी-मानी पाकिस्तानी पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक मरियाना बाबर 'सारे सूबों को साथ बांधने वाली मज़बूत ज़ंजीर' के नाम से बुलाती हैं.

लेकिन फिर उदय हुआ पीपीपी के जनाधार में सेंध लगाने वाले पंजाबी 'उप-राष्ट्रवाद' और 'मुहाजिर पहचान,' का. मरियाना कहती हैं कि पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेतृत्व में भी कई कमज़ोरियाँ रहीं.

वो कहती हैं, "सेना मुख्यालय में किसी को ख़्याल आया कि कराची और हैदराबाद में मौजूद उर्दू बोलनेवाले और सिंधियों के बीच ज़बान और रहन-सहन का फर्क़ है और इसका इस्तेमाल पीपीपी को कमज़ोर करने के लिए किया जा सकता है."

मरियाना बाबर के मुताबिक़ कोई ढँकी-छुपी बात नहीं है कि मुहाजिरों की पार्टी मुत्तहिदा क़ौमी मूवमेंट (एमक्यूएम) को जनरल ज़िया-उल-हक़ ने पीपीपी को कमज़ोर करने के लिए तैयार किया था.

इसका नतीजा ये हुआ है कि ज़ुल्फ़िक़ार भुट्टो की पार्टी जिसकी एक आवाज़ पर सिंध और पंजाब से लेकर बलूचिस्तान तक के लोग सड़कों पर निकल आते थे, अब सिंध के देहाती इलाक़ों तक की सियासी जमात रह गई है.

लेकिन पाकिस्तान के राजनीतिक विशेलषक और कई किताबों के लेखक ज़ाहिद हुसैन इस बात से सहमत नहीं हैं कि पाकिस्तान के प्रमुख राजनीतिक दलों का आधार महज़ अलग अलग सूबों तक ही सीमित है. वो कहते हैं कि पिछले 10 साल से ऐसा हो रहा है पर इस बार के चुनाव में उसमें भी बदलाव आएगा और राजनीतिक दलों का विस्तार उनके परंपरागत क्षेत्रों से बाहर भी होगा.

उघर मुत्तहिदा क़ौमी मूवमेंट पार्टी में भी बँटवारा हो चुका है. माना जा रहा है कि इमरान ख़ान की तहरीके इंसाफ़ और पीपीपी का सिंध के कराची और हैदराबाद में विस्तार होगा.

पाक में इलेक्शन नहीं सेलेकश्न

कश्मीर चुनाव में मुद्दा नहीं

BBC Hindi
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English summary
Why is Pakistans politics in Sindhi Baluchi Punjabi and Pathan
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