लोग 'बुरी नज़र' की रहस्यमय शक्ति पर अंधविश्वास क्यों करते हैं?
बुरी नज़र सभ्यताओं के शुरुआती दौर के अवशेषों में से है, जो इंसान के कुछ सबसे स्थायी और गहन विश्वासों की ओर इशारा करता है.
प्राचीन मिस्र में सुरक्षा, शाही शक्ति और अच्छे स्वास्थ्य के प्रतीक घोड़े की आंख से लेकर अमेरिकी मॉडल जीजी हदीद तक, आंखों ने हज़ारों वर्षों से इंसान की कल्पना पर अपनी पकड़ बनाई हुई है.
जब दुनिया की रहस्यमय शैतानी ताक़तों से बचने की बात आती है, तो शायद 'बुरी नज़र' से ज़्यादा जानी पहचानी चीज़ और कोई नहीं है जिस पर यक़ीन किया जाता है. इसका पता लगाने और इससे बचने के लिए, इसके लिए प्रभावी समझे जाने वाले टोटकों का इस्तेमाल हर जगह किया जाता है.
नीले रंग की आंख की तस्वीर न केवल इस्तांबुल के बाज़ारों में, बल्कि हवाई जहाज़ों से लेकर कॉमिक किताबों के पन्नों तक हर जगह दिखाई देती है.
पिछले दशक में फ़ैशन की दुनिया में ऐसी तस्वीरें अक्सर सामने आती रही हैं. अमेरिकी मॉडल किम कार्दाशियां ने कई मौक़ों पर खेलों के कड़े और हेडपीस पहने हुए तस्वीरें बनवाईं हैं, जिनमें ये प्रतीक (शैतानी आँख) मौजूद हैं. जबकि जीजी हदीद ने 2017 में आई लव नामक एक जूतों का ब्रांड पेश करके इस ट्रेंड को और बढ़ावा दिया.
सेलिब्रिटी शख़्सियतों के रूझान के बाद बुरी नज़र से बचने के कड़े (ब्रेसलेट), हार और चाबियों के छल्ले बनाने के तरीक़े ऑनलाइन साझा किए गए हैं. सच्चाई यह है कि हज़ारों वर्षों से आंख के इस प्रतीक ने इंसानी कल्पना पर अपनी एक मज़बूत पकड़ बनाई हुई है.
बुरी नज़र का क्या है आधार?
बुरी नज़र के आधार को समझने के लिए सबसे पहले तावीज़ और बुरी नज़र के बीच के अंतर को समझना होगा.
नीली आँख वाले तावीज़ को अक्सर 'शैतानी आँख' कहा जाता है, लेकिन असल में इसका उद्देश्य बुरी नज़र से बचना होता है. ऐसा माना जाता है कि किसी दुश्मन की बुरी निगाह से 'नज़र' लग सकती है.
ये तावीज़ हज़ारों वर्षों से अलग अलग शक्ल में मौजूद रहे हैं और बुरी नज़र की अवधारणा इतनी पुरानी है कि इसकी शुरुआत का पता लगाना एक मुश्किल काम है.
संक्षेप में यह है कि बुरी नज़र और इसके संभावित प्रभावों पर विश्वास करना कोई बहुत जटिल अवधारणा नहीं है. यह इस विश्वास से पैदा होता है कि जब कोई भी व्यक्ति बड़ी सफलता या बड़ा नाम हासिल करता है, तो वह अपने आस-पास के लोगों की ईर्ष्या को भी अपनी तरफ़ आकर्षित करता है.
माना जाता है कि ये ईर्ष्या किसी की अच्छी क़िस्मत के लिए नुक़सानदेह होती है. इस अवधारणा को प्राचीन यूनानी (ग्रीक) रोमांटिक उपन्यास एथियोपिका में हेलियोडोरस ऑफ़ एमेसा में कुछ इस तरह लिखा गया है, कि 'जब कोई व्यक्ति ईर्ष्या की नज़रों से किसी अच्छी चीज़ को देखता है, तो वह अपने आस-पास के वातावरण को एक हानिकारक गंध से भर देता है और वातावरण में अपनी ज़हरीली सांसें फैला देता है.'
बुरी नज़र का यह विश्वास विभिन्न संस्कृतियों के साथ-साथ कई पीढ़ियों तक फैला हुआ है. आज तक बुरी नज़र के बारे में पौराणिक कथाओं की सबसे व्यापक कृतियों में से एक फ्रेडरिक थॉमस एलवर्थी की 'द ईविल आई' है.
यह अंधविश्वास की एक प्राचीन कहानी है. एलवर्थी कई संस्कृतियों में प्रतीक के उदाहरणों को तलाश करते हैं. ग्रीक गोरगुनों की 'दिल दहला देने वाली नज़र' से लेकर आयरिश लोक कथाओं तक जिसमें वहां के पुरुष एक ही इशारे से घोड़ों को वश में कर सकते हैं, हर संस्कृति में उदाहरण के लिए 'बुरी नज़र' के बारे में एक काल्पनिक कहानी मौजूद होती है.
आंख का प्रतीक हर संस्कृति में इतनी गहराई से समा गया है कि इसका उल्लेख बाइबिल और क़ुरान सहित कई धार्मिक किताबों में भी मिलता है.
आंख के बदले आंख
बुरी नज़र पर विश्वास करना अंधविश्वास से बढ़कर है. कई प्रसिद्ध विचारक इसकी सच्चाई की पुष्टि करते हैं.
सबसे ज़्यादा मशहूर उदाहरणों में से एक ग्रीक दार्शनिक प्लूटार्क थे, जिन्होंने अपनी किताब सिम्पोज़िक्स में एक वैज्ञानिक व्याख्या का प्रस्ताव रखा था कि इंसानी आंख में ऊर्जा की अदृश्य किरणों को उत्सर्जित करने की शक्ति होती है जो कुछ मामलों में बच्चों या छोटे जानवरों को मारने के लिए काफ़ी ताक़तवर होती हैं.
प्लूटार्क इसका उदाहरण देते हुए कहते हैं कि काला सागर के दक्षिण में कुछ गिरोह बुरी नज़र का इस्तेमाल करते हैं. यह भी माना जाता है कि नीली आंखों वाले लोगों में हिप्नोटाइज करने की क्षमता होती है.
ये सिद्धांत बहुत आम है कि कुछ लोगों के पास ज़्यादा ताक़तवर नज़र होती है जो नुक़सान पहुंचाने की क्षमता रखती हैं. लेकिन इसमें यह ज़रूरी नहीं है कि बुरी नज़र का संबंध किसी के बुरा चाहने से हो.
कुछ संस्कृतियों में इसे एक बोझ माना जाता हैं, यानी कि बदशगुनी फैलाने की क्षमता अपने आप में बदशगुनी का ही एक रूप है.
उदाहरण के लिए, एलवर्थी ने पौलेंड की एक प्राचीन लोककथा का हवाला दिया है, जो एक ऐसे व्यक्ति के बारे में बताती है जिसकी निगाहों में इतनी ज़्यादा बदशगुनी थीं कि उसने अपने प्रियजनों को बदनसीबी से बचाने के लिए अपनी आँखें ख़ुद ही फोड़ ली थीं.
यह विश्वास भी ख़ूब फैला हुआ है कि किसी की एक बुरी नज़र आपको बर्बाद कर देने वाली बदकिस्मती से दोचार कर सकती है.
लेकिन इसमें हैरानी की कोई बात नहीं है कि इन प्राचीन सभ्यताओं के लोगों ने इसका समाधान भी खोजा, जिसकी वजह से बुरी नज़र को दूर करने के तावीज़ों की शुरुआत हुई. लोग आज भी इनका इस्तेमाल करते हैं.
तावीज़ों का इस्तेमाल कब से शुरू हुआ?
इस्तांबुल में स्थित कला इतिहास के प्रोफ़ेसर डॉक्टर नेशे यिलदरान ने बीबीसी कल्चर को बताया कि 'बुरी नज़र से बचाने के लिए तावीज़ का सबसे प्राचीन रूप 3,300 ईसा पूर्व का है.'
ये तावीज़ मेसोपोटामिया के सबसे पुराने शहरों में से एक, तल बराक में खुदाई के दौरान निकले थे, जो आज के दौर में सीरिया है. वहां कटी हुई आँखों से बनी मूर्तियां निकली थीं.
तल बराक की प्राचीन अलबस्टर से बनी हुई मूर्तियां उन नीले शीशों वाले तावीज़ों से अलग हैं जिन्हें हम आज देखते हैं. इसके शुरुआती रूप 1500 ईसा पूर्व तक ज़ाहिर नहीं हुए थे. तो विकास की यह प्रक्रिया कैसे हुई?
'जहां तक नीले रंग का संबंध है, यह निश्चित रूप से सबसे पहले मिस्र की चमकदार मिट्टी से आता है, जिसमें ऑक्साइड की ज़्यादा मात्र होती है. जब इसे पकाया जाता है तो कॉपर और कोबाल्ट इसे नीला रंग देते हैं.'
आंख को निगरानी और जासूसी के डर का प्रतीक भी माना जाता है. यिलदरान ने मिस्र में खुदाई के दौरान मिलने वाले होरस पेंडेंट्स की कई नीली आंखों का हवाला देते हुए कहा, कि इन्हें एक तरह से प्रारंभिक दौर की आधुनिक बुरी नज़र को दूर करने वाले तावीज़ के ज़्यादा प्रभावशाली पूर्ववर्ती के रूप में देखा जा सकता है.
यिलदरान के अनुसार, शुरुआती तुर्क क़बीलें अपने आकाश देवता 'तंजेरी' (टेंगरी) के साथ जुड़े होने की वजह से नीले रंग के इस साय के साथ एक गहन दिलचस्पी रखते थे और संभावित तौर पर इसके नतीजे में कोबाल्ट और तांबे के इस्तेमाल का चुनाव करते थे.
इस क्षेत्र में नीली आँखों के मोतियों की माला का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर किया जाता था, जिसका इस्तेमाल फोनीशियन, असीरियन, ग्रीक, रोमन और शायद सबसे ज़्यादा उस्मानी दौर के लोग करते थे.
इसके अर्थ से अनजान?
नीली आंख के बारे में जो चीज़ सबसे ज़्यादा आकर्षक है, वह केवल इसकी लंबी उम्र नहीं है, बल्कि सच्चाई यह है कि इसके इस्तेमाल में हज़ारों साल के दौरान थोड़ा सा बदलाव हुआ है.
हम अभी भी अपने हवाई जहाज़ों के चारों तरफ़ नीली आंख उसी तरह लगा रहे हैं जैसे मिस्र और एट्रस्कैन ने सुरक्षित मार्ग सुनिश्चित करने के लिए इसे अपने पानी के जहाजों पर लगाया था. यह अभी भी तुर्की में एक परंपरा है कि नवजात शिशुओं को बुरी नज़र से बचाव का निशान लगाया जाये, क्योंकि यह माना जाता है कि छोटे बच्चे अक्सर इसका सबसे ज़्यादा शिकार होते हैं.
लेकिन कोई भी हैरान होने के सिवाय कुछ नहीं कर सकता है, कि क्या आधुनिक दुनिया के साधनों के साथ इसका रूप बदल रहा है, इसका अर्थ और इतिहास नए रंगों में ढल रहा है.
आंख का इतिहास बहुत पुराना है और यह बहुत से लोगों की संस्कृति से जुड़ा हुआ है. इसलिए नीली आँख के प्रतीक का इस्तेमाल करने वाले बहुत से आधुनिक उपयोगकर्ता असल में विरासत की वजह से इससे संबंध रखते हैं.
उदाहरण के लिए, किम कार्दाशियां और जीजी हदीद, दोनों का ही संबंध ऐसी संस्कृतियों से है जिनमें बुरी नज़र की अवधारणा मौजूद है.
यिलदरान को विश्वास नहीं है कि यह कोई समस्या है. "बुरी नज़र उस चिंता से ऊपर है, क्योंकि यह एक बड़े भूगोल का हिस्सा रही है और हम बुरी नज़र से प्राप्त तावीज़ों के विभिन्न रूपों को देखते रहेंगे."
हालांकि एक प्रतीक में सीमाओं को लांघने की क्षमता हो सकती है, चाहे वो सांस्कृतिक, भौगोलिक या धार्मिक हों, यह केवल एक रूप या फ़ैशन स्टेटमेंट से हटकर नए अर्थ बनाता है.
बुरी नज़र सभ्यताओं के शुरुआती दौर के अवशेषों में से है, जो इंसान के कुछ सबसे स्थायी और गहन विश्वासों की ओर इशारा करता है. अगर यह सच में ऐसी चीज़ है जिस पर आप विश्वास करते हैं, तो इस तरह के ज्ञान के बिना तावीज़ पहनना न केवल इसकी रक्षात्मक क्षमता को बेकार बना सकता है, बल्कि इससे भी ज़्यादा शक्तिशाली बदशगुनी की वजह बन सकता है.
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